पहले पहर की सुबह। ख़बर अपडेट की कार.. बीकानेर से कोलायत की दूरी को कम करती जा रही थी। हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहे थे, त्यों-त्यों कई चीज़ें पीछे छूटती जा रही थी, जैसे- बीकाजी के दीपक अग्रवाल का शहर की बदहाली को लेकर दिया गया एक वास्तविक बयान, नेताओं-मंतरी द्वारा लोकार्पण की औपचारिक ख़बरें, खाना-पूर्ति के लिये लिखी जा रही रपटें..आदि। हमारी टीम ख़बर अपडेट एक नई यात्रा पर थी। यात्रा.. पूर्ण तीर्थ श्री कपिल मुनि धाम की ‘पूर्णता’ के खोज की। यात्रा.. इक नये नज़रिये से कोलायत को देखने-समझने की। यक्ष प्रश्न तो यही था कि ‘क्या वाकई श्रीकोलायत पूर्ण है?’ लेकिन इसके जवाब की तलाश में.. हमारा ऐसे अनेक प्रश्नों से साक्षात्कार हुआ, जिनके जवाब आपको भी ‘लाजवाब’ लगेंगे। आइये न, साथ में यात्रा करते हैं।
कोलायत धाम से पहले
कोलायत में 5 दिनों का कार्तिक मेला भरा था। हमारी तरह जातरियों के जत्थे आगे बढ़ रहे थे। कपिल मुनि धाम से एक-डेढ़ किलोमीटर पहले से पुलिस के डंडाधारी जवान मुस्तैद खड़े थे। उनसे भी जियादा तादाद में तैनात थे- भाटी और उनके समर्थकों के पोस्टर। हर 50 मीटर के बाद लगे इन पोस्टर्स को कोई चाहकर भी अनदेखा नहीं कर सकता था। जातरियों के जत्थे आगे चलकर 100 से ज़ियादा धर्मशालाओं में बंट रहे हैं, लेकिन हम सीधे धाम की तरफ बढ़ रहे थे। हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहे थे, त्यों-त्यों मेले का आकार भी बढ़ रहा था, कोलाहल बढ़ रहा था, रंग बढ़ने लगे थे।
ये सब वे चीजें थीं, जिन्हें हर कोई देख-समझ सकता था। ..मगर हम वो समझना-जानना चाहते थे, जिसमें कोलायत की पूर्णता समाहित है। ..और अगले 30 मिनट हमें यह समझ हासिल करने में लग गये कि ये सब देखकर नहीं, महसूस करके बेहतर समझा जा सकता है। ..और महसूस करने के लिये कोलायत से कनेक्टिविटी ज़रुरी है, विलायती का कोलायती होना ज़रुरी है। उसके बाद ही कोलायत की नैसर्गिक सुंदरता को देखा-समझा जा सकता है। सो हम कुछ समय के लिये कोलायती हो गये।
कपिल मुनि धाम में..
धाम के मुख्य गेट के पास ‘पूर्ण तीर्थ श्री कपिल मुनि धाम’ का बोर्ड लगाया गया था। इसके पीछे शायद कोलायत को ‘पूर्ण तीर्थ’ के नाम से प्रचलित करवाने की कवायद रही होगी। ..लेकिन इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को क्या ही मालूम होगा कि किसी सुंदर सजे फ्रेम में ‘पूर्ण तीर्थ’ लिख देनेभर से ऐसा थोड़े ही संभव हो जाएगा। इसकी पूर्णता के लिये तो सबको साझा प्रयास करने होंगे। करेंगे.. जरूर करेंगे लेकिन पहले ज़रा इस उम्दा फ्रेम के आगे खड़े होकर एक फोटो तो क्लिक कर लिया जाए। यही भाव लिये श्रद्धालु इस फ्रेम के आगे मुस्कुराते हुए तसवीरें खिंचवा रहे थे। हमने भी खिंचवाई। ये मुस्कुराहट इसलिये भी कि कोलायत बहुत सुंदर सजाया गया था। खास तौर पर साधु-संतों के अप्रतिम पोस्टर्स ने कोलायत को काशीमय कर दिया।
ये दीगर है कि इन पोस्टर्स के इतर असली साधुओं की अपनी व्यथा-कथाएं थीं। जिसे जानने में सबको न के बराबर दिलचस्पी थी। लेकिन हमें देखकर वे अपने दु:ख बताने लगे। कुछेक को कपिल मुनि और दत्तात्रेय मुनि की नगर परिक्रमा नहीं निकालने का मलाल था तो कुछ मेले के मॉडर्न रूप को कम पसंद कर रहे थे। ..लेकिन अधिकतर जो था, जितना था..भीड़ के लिहाज से सारे इंतजामात मुकम्मल थे। दुकानों से लेकर बाज़ार तक, सैंड आर्ट से लेकर सजावट तक, लाइटिंग से लेकर आरती तक। सब।
वाहे गुरुजी…
यहां पंजाब समेत कई राज्यों के सरदार जी, पा’जी अपने परिवार के साथ आए हुये थे। इसके अलावा, आसपास के गांवों से कई युवकों को सेवा के लिये बुलाया गया है। गुरुद्वारे के पास ही हमें गुरुप्रीत नाम का एक सेवादार मिला। जिनसे हमने गुरुद्वारे के पदाधिकारियों से मिलाने की फरमाइश की। तिस पर पा’जी बोला कि “पेलै हमारे साथ चाह पीयो, तभी मिलवाएंगे।” अपने मेहमानों को ऐसी अपणायत शायद उनके गुरु के आदर्शों को जताने का तरीका रहा होगा। हमने हामी भर ली।
भीतर पहुंचे तो लंगर में सिखों के साथ हिंदुओं को भी एक ही पंक्ति में प्रसाद पाते देखा। अब इस बात पर कौन लिखेगा कि श्रीकोलायत में इतनी मुहब्बत के साथ 2 धर्मों का समागम होता है। इस गुरुद्वारे में इसी तरह 12 मासी भोजन प्रसाद चलता है। कौन बताएगा कि श्रीकोलायत में ही संत गुरुनानक ने कई दिनों तक आवास किया था।
इतनी ख़ासियतों से सराबोर है श्रीकोलायत
यह भी बेहद कम लोग जानते होंगे कि श्रीकोलायत में 100 से अधिक मंदिर हैं। मंदिरों का इतना बड़ा आंकड़ा इसे बनारस के बराबर खड़ा करता है। इसके इलावा, बनारस में 88 घाट हैं तो हमारे श्रीकोलायत में 84 घाट (लिखित में 52 घाट) घाट हैं। जहां 36 कौम के श्रद्धालु अमावस-पूर्णिमा को स्नान के लिये पहुंचते हैं। यह अद्भुत बात भी कम ही लोग जानते होंगे कि श्रीकोलायत में एक साथ बारह ज्योर्तिलिंग मंदिर हैं। यहां के पंच मंदिर की भव्यता और दिव्यता देखने 36 कौम के श्रद्धालु पहुंचते हैं।
यहां 8 कोस की परिधि में सप्त ऋषियों के आश्रम हैं। डेह में देवहूति का प्राचीन मंदिर, जागेरी में याज्ञवलक्य, टेचरी में काग ऋषि, जोगीरा में जोग ऋषि, दियातरा में दतात्रैय ऋषि, चानी में च्यवन ऋषि और बीठनोक सिध्द महात्माओं के आश्रम हैं। एक प्रचलित किवदंती यह भी है कि कोलायत जी के दर्शन के बाद ही सब तीर्थों की यात्रा पूर्ण मानी जाती है। इसीलिये इसे ‘पूर्ण तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है। मगर.. अफसोस कि ये बात फकत हम ही जानते हैं, पूरा देश थोड़े ही जानता है। देश तो 100 मंदिरों वाले, 88 घाट वाले बनारस को जानता है। विडंबना की बात है कि हमारे कोलायत की इतनी ख़ासियतों को न तो नेता जानते हैं, न ही जनता। क्या हो.. अगर हमारी तरह कोलायत की ये ख़ासियतें.. सरकार भी समझ लें।
..तो शायद यह भी बनारस की तरह विख्यात हो जाएगा।
..तो यहां भी काशी की तरह कोरीडोर बन जाएगा।
..तो कोलायत भी ‘धार्मिक-तीर्थाटन’ का केंद्र बन जाएगा।
..तो हमारा कोलायत भी वाकई पूर्णता को प्राप्त कर लेगा।
प्रिय पाठकों/दर्शकों ! आपका ‘ख़बर अपडेट’ पिछले कई महीनों से इस मुद्दे को लेकर प्रयासरत है। इस मुद्दे पर हमने राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के ओंकार सिंह लखावत से (यहां CLICK कर देखें) बात की, हमने पूर्व सिंचाई मंत्री देवी सिंह भाटी से (यहां CLICK कर देखें) बात की। हमने इसी मेले के दौरान कोलायत के वर्तमान विधायक अंशुमान सिंह भाटी (यहां CLICK कर देखें) से भी बात की। सबने इस मसले पर हमारा सहयोग करने की बात कही है।
विधायक अंशुमान ने विश्वास दिलाया
कोलायत में कोरीडोर की मांग उठाने और धार्मिक-पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित करने के मसले पर ख़बर अपडेट ने युवा विधायक अंशुमान सिंह भाटी से (यहां CLICK कर देखें) बात की। तब उन्होंने कहा कि “जो भी जनता की सोच है, हम उसका सम्मान करेंगे। उसे धरातल पर उतारकर दिखाएंगे। हम सरकार से आह्वान करेंगे। चाहे विधायक फंड हो, चाहे डीएमएफटी का फंड हो, चाहे सीएसआर का फंड हो और जितने भी भामाशाह हैं, माइनिंग वाले हैं, सब शक्तियों को संगठित करके एफर्ट करेंगे और इसे धरातल पर उतारकर दिखाएंगे।”
वैसे, यह कहने में गुरेज नहीं कि इस बार कोलायत मेले को नये ढंग से दिखाना-सजाना..युवा विधायक की नई सोच को दर्शाता है.. मैं यह मानकर चलता हूं कि इस इंटरव्यू में उन्होंने जो कहा, वे वाकई में ऐसा करेंगे। भाटी ने जैसा कहा, अगर वे वैसा कर देते हैं तो कोलायत की तकदीर, तसवीर और तदबीर तीनों बदल जाएंगी। कोलायत उन्हें इतिहास रचने के लिये जानेगा।
बिल्कुल सही कहते हैं लालेश्वर महादेव के महंत विमर्शानंद गिरि जी महाराज कि- “कोलायत को धार्मिक-तीर्थाटन केंद्र के तौर पर स्थापित करने में सबका सहयोग जरुरी है। हम साधु-संतों को तो सबसे पहले आगे आना चाहिये।”
सही कहते हैं समाजसेवी राजेश चूरा.. कि “कोई इस नेक मुद्दे पर आगे आकर काम तो करे, फिर देखना कैसे रास्ते बनने लगेंगे।”
सही कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार हेम शर्मा कि “कोलायत को धार्मिक-पर्यटन क्षेत्र के तौर पर स्थापित करने की दिशा में अब तक कोई प्रयास नहीं हुए, कोई तो कोशिश करे।”
बहरहाल, कई दिनों की कोलायत यात्रा के बाद आज लौट आया हूं। तन-मन अभी भी कोलायतमय है। मेरे कमरे में नितांत शांति है मगर दिल-औ-दिमाग़ में कोलायत की आयतें चल रही हैं। आंखें बंद करता हूं तो कोलायत की कायनात नज़र आती है, कान लगाता हूं तो मंदिरों की घंटियां सुनाई देती हैं। लेकिन इस यात्रा का हासिल यह रहा कि हम जो सवाल लेकर गये थे, उनके जवाब मिल गये। हमें लगता है कि कोलायत ‘अहं से वयं तक की यात्रा का नाम है’। हमें लगता है कि जिस दिन कोलायत की ख्याति जन-जन तक पहुंच जाएगी, जिस दिन कोलायत धार्मिक-पर्यटन का केंद्र बन जाएगा, जिस दिन कोलायत अपने इस अधिकार को पा लेगा, उस दिन कोलायत धाम अपनी पूर्णता को प्राप्त कर लेगा।
Note- इस आर्टिकल पर अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।
shree kolayat guru bhumi ko naman or aap ki sandar lekhni or report ke liye aap ko sadhuwad ..
आपका बहुत धन्यवाद। आपका संस्मरण भी किसी रिपोर्ट से कम न था।
लाजवाब कवरेज
पवन जी,
आपका बहुत धन्यवाद। हमें आपकी प्रतिक्रियाएं अक्सर मिलती रहती हैं। अच्छा लगा कि आपने ये आर्टिकल भी पूरा पढ़ा। आप पाठकों/दर्शकों का ये प्रोत्साहन हमें ऊर्जा से लबरेज रखता है।
कोलायत की अहम् से वहम् तक यात्रा …।
इस बार कोलायत कपिल धाम की मानसिक यात्रा आपने करवा दी, शारीरिक रूप से जाना न हो सका।
सही मुद्दे और सही सुझाव रखे हैं।
शुभकामनाएं।