“आजकल किसी को भी बीकानेर लाते हैं तो बेइज़्ज़ती सी फील होती है। यह फीलिंग जितनी कम होगी, उतना अच्छा होगा। बीकानेर का इंफ्रास्ट्रक्चर तो लाजवाब हो रखा है इन दिनों। पूरे भारत में प्लास्टिक बैन है लेकिन हमारे यहां बीकानेर में प्लास्टिक पर कोई बैन नहीं है। इसी तरह बीकानेर के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी मैं ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहूंगा। ज्यादा नाम लूंगा तो बदनाम हो जाऊंगा।”
बीते बुधवार को बीकानेर में ‘राजस्थान इनवेस्टमेंट समिट’ के मंच से बीकाजी के एमडी दीपक अग्रवाल ने यह खरी-खरी सुनाई थी। इस कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री सुमित गोदारा, चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर (वीडियो कॉन्फ्रेंस से), विधायक जेठानंद व्यास, विधायक ताराचंद सारस्वत, मेयर सुशीला कंवर, संभागीय आयुक्त, ज़िला कलेक्टर, जिला उद्योग महाप्रबंधक समेत कई व्यापारी मौजूद थे। उनका यह बयान सुनकर शासन से लेकर प्रशासन तक सब असहज हो गये। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन मेघवाल वीडियो कॉन्फ्रेंस से कर रहे थे।
बुधवार से बुधवार.. आज इस बात को 7 रोज़ हो गये हैं। लेकिन विडंबना देखिये- ‘बीकानेर की बदहाली’ वाले दीपक अग्रवाल के इस बयान पर न तो किसी का रिएक्शन आया और न ही कोई एक्शन हुआ। बीते 7 दिनों में सब सामान्य की तरह चलता रहा। गोया कुछ हुआ ही न हो, गोया किसी को कुछ फर्क भी न पड़ा हो। सिवाय इस बयान के सुर्खियों में तब्दील होने के। वैसे युवा उद्यमी दीपक की इस बात की सराहना की जानी चाहिये कि उन्होंने पूरे बीकानेर की तकलीफ को एक माकूल मंच से जगजाहिर किया। लेकिन.. शायद उन्हें इल्म नहीं कि बीकानेर की बदहाली से यहां के नेताओं-मंतरियों को ज़रा भी फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता तो अब तक कोई एक्शन हो चुका होता। मुझे लगता है कि 7 क्या.. 700+ दिन भी बीत जाए तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। चलिये, एक ऐसे ही वाकये से इस बात को साबित करता हूं।
दीपक जी ! आपने तो फकत 1-2 ही मुद्दे रखे थे। ख़बर अपडेट ने 2-3 साल पहले बीकानेर की सभी समस्याओं को एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म में पिरोया था। ‘बीकानेर का समग्र विकास’ वाली इस डॉक्यूमेंट्री के लिये हमने 4 अलग-अलग सम्मेलन रखे। जिसमें अलग-अलग क्षेत्र के क़रीब 225-250 प्रबुद्ध लोगों को बुलाकर बीकानेर की सभी समस्याएं जानी थीं। प्रासंगिक बात यह है कि इस डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग के पहले ही दिन.. आपके पिता शिवरतन जी अग्रवाल ने हमारे दफ्तर में.. कमोबेश वही बात कही थी, जो हफ्तेभर पहले आपने कही थी (यहां CLICK कर 11.40 पर सुन सकते हैं)। हमने इन सभी 225-250 में से चुनिंदा बाइट्स को इस डॉक्यूमेंट्री में पिरोया था। शहर के विकास को समर्पित इस फिल्म को बनाने में निजी ख़र्च और क़रीब 100 दिनों की मेहनत लगी थी। फिल्म बनकर तैयार हुई तो हमने बीकानेर के तत्कालीन चारों मंत्रियों (एक केंद्रीय और तीन राज्य मंत्रियों) को आमंत्रित किया, ताकि वे 1 घंटे में बीकानेर की तमाम समस्याएं जान सकें।..लेकिन हाय री राजनीतिक शून्यता ! पूर्व सूचना के बावजूद… हामी भरने के बावजूद.. ऐन मौक़े पर हमारे मंत्रीगण नदारद रहे। बीकानेर राजुवास का खचाखच भरा सभागार ‘बीकानेर के विकास’ पर उनकी प्रतिक्रियाओं/घोषणाओं की राह तकता रह गया। आये सिर्फ- राजस्थान के तत्कालीन शिक्षा मंत्री- डॉ. बुलाकी दास कल्ला। उन्हें भी बदहाली की बजाय बीकानेरियों के सच से ज्यादा तकलीफ हुई थीं। हालांकि उन्होंने कुछ घोषणाएं जरूर कीं। (आप यहां CLICK करके पूरी डॉक्यूमेंट्री देख सकते हैं)
वैसे, हमने तो तब भी मंत्रियों की इस बेरुखी पर सवाल पूछे थे। चूंकि अब जब आपका बयान गर्माया हुआ है, तब भी उनसे सवाल पूछना तो लाजमी समझते हैं। अब कांग्रेस के तत्कालीन तीनों मंत्रियों के जिक्र का कोई फायदा नहीं लेकिन तब के केंद्रीय मंत्री अब भी केंद्रीय मंत्री हैं। वे 7 दिन पहले आयोजित ‘राजस्थान इनवेस्टमेंट समिट’ के अध्यक्ष भी थे। उनके अलावा, इस कार्यक्रम में कई कैबिनेट मंत्री और कई विधायक भी मौजूद थे। आज बारी उन सबसे सवाल की है। बीकाजी के दीपक अग्रवाल व्यापारी हैं, उनकी अपनी सीमाएं हैं, वे ज्यादा बोल नहीं सकते। लेकिन हम पत्रकारों को तो भारतीय संविधान ने नाम लेकर पूछने का अधिकार दिया है। ‘ख़बर अपडेट’ तो वैसे भी नाम लेकर सवाल पूछने के लिये ही बदनाम है। इसलिये उन सब जनप्रतिनिधियों से सवाल है।
-केंद्रीय क़ानून मंत्री और बीकानेर के सांसद अर्जुन राम जी ! आपके संसदीय क्षेत्र ‘बीकानेर की बदहाली’ बीकाजी के दीपक की इस चिंता पर आप क्या कहेंगे? बीकानेर की जो बदहाली बीते 16 सालों में भी दूर नहीं हो सकी, उसे अब कितने सालों में दूर कर देंगे? क्या कभी हमें भी यह कहने का मौक़ा मिलेगा कि पीएम मोदी के पीछे दिखने वाला पगड़ी वाला मंत्री हमारे बीकानेर का सांसद हैं? या बीकानेर की जनता यूं ही बड़े-बड़े मंचों से आपसे सरेआम सवाल पूछती रहेगी?
-बताइये कैबिनेट मंत्री सुमित गोदारा जी ! क्या आपको भी हमारी तरह किसी को बीकानेर लाते समय ‘बेइज्जती’ महसूस होती है?
-बताइये बीकानेर पश्चिम के विधायक जेठानंद जी ! क्या आपसे भी कोई पूछता है कि आपके शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर की हालत इतनी ख़राब क्यों है?
-बताइये बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी जी ! आख़िर कब तक आपके बीकानेर की जनता बुनियादी विकास को तरसती रहेगी?
-बताइये श्रीडूंगरगढ़ के विधायक ताराचंद जी ! क्या हमारा बीकानेर भी कभी जयपुर, जोधपुर, कोटा सरीखा चमाचम करेगा? या यहां की जनता को ऐसे सुनहरे सपने देखने छोड़ देने चाहिये?
-बताइये बीकानेर के प्रशासनिक अधिकारियो ! क्या आपकी भी जिम्मेदारी नहीं बनती कि बीकानेर के इंफ्रास्क्चर को सुधारने के लिये राजस्थान सरकार को प्रस्ताव भेजें और इस दिशा में तेज़ी से काम करें? आख़िर बीकानेर की जनता कब तक इन छोटी-छोटी बुनियादी जरुरतों के लिये तरसती रहेगी? बताइये।
यहां पूछा गया एक-एक सवाल.. जनता के ‘मन की बात’ है। ठकुरसुहाती करने वाले और मौक़ापरस्त तो आपको 100 मिल जाएंगे लेकिन आपके हित में, आपके संसदीय और विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिये इतनी खरी कहने वाले कहां मिलेंगे? आपमें से कई तो हर रोज़ ‘इंट्रोस्पेक्ट’ करने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने पहले भी कई ‘इंट्रोस्पेक्ट’ किये हैं। आप सब ज़रा उपरोक्त सवालों पर भी ‘इंट्रोस्पेक्ट’ कर लीजिएगा। ..और जब आप सबका ‘इंट्रोस्पेक्ट’ पूरा हो जाए तो बीकानेर के लिये कुछ ऐसा कीजियेगा, जिससे जनता आपको शाबाशी दे, न कि बड़े-बड़े मंचों से सरेआम ऐसे सवाल पूछे, जिनके जवाब में आपकी चुप्पियां भी न टूट सके। यक़ीन मानिये, आप सब चाहें तो मिलकर कुछ ही महीनों में पूरे बीकानेर की तसवीर-तकदीर बदल सकते हैं। बस ! इसके लिये ईमानदारी से काम करना पड़ेगा।
बहरहाल, दीपक बाबू ! जाते-जाते एक बेशक़ीमती राय लेते जाइये। वो ये कि वे अगली बार बीकानेर के विकास की बात यूं सरेआम मत कीजियेगा। वो क्या है न कि हमारे कुछ नेताओं को ये सब अच्छा नहीं लगता। बीकानेर के विकास की बात पर कई मृदुभाषी ‘राज’नेता हम पत्रकारों पर भी सरेआम ग़ुस्सा हो जाते हैं, फिर आप तो व्यापारी हैं। आख़िर आप ही को तो बीकानेर का नाम दुनिया तक पहुंचाना है।
सवाल पूछने के लिये हम हैं न बंधु !
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अच्छी खिंचाई की है सुमित आपने हर चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे और बड़े बड़े दावे करने वाले जननेताओं और उनके पिछलग्गू बनकर अपनी नौकरी का समय पूरा करने वाले सरकारी बाबुओं की जो चाहे कितने भी बड़े अफ़सर बन जाएं, मानसिकता बाबुओं वाली ही रहेगी।
सुमित जी आपके लिखे हर लेख को में पढ़ता हूं
कमाल की लेखनी है आपकी
आपका हर एक शब्द झकझोर कर देने वाला है
आगे भी यूं ही जनता की आवाज अपनी लेखनी के जरिए नेताओं तक पहुंचाते रहिए