सांसद अर्जुन राम मेघवाल जब साइकिल से संसद भवन जाने का उपक्रम करते रहे थे तब शायद उनका कोई गहरा मकसद ही रहा होगा। संभवत:, वाहनों से पर्यावरण प्रदूषण की तरफ देश का ध्यान आकर्षित करना। इसके बाद उन्होंने ‘हेपीनेस इनडेक्स’ बढ़ाने के लिए अपनी जीवनी लिखकर युवाओं का ध्यान (हैपीनेश इनडेक्स बढ़ाने) ख़ुश रहने की तरफ दिलाया। फिर पूर्णिमा को चंद्रमा की रोशनी में रात बिताकर संदेश दिया कि कार्बन उत्सर्जन कम करें। वैसे ही पगड़ी पहनकर भारतीय परिधान परंपरा की तरफ युवा पीढ़ी का ध्यान खींचा। इतना ही नहीं, वे बीच-बीच में अपने भाषणों में जीवन मूल्यों और संस्कारों की बात भी करते हैं। यह भी सच है उनका व्यक्तित्व परंपरागत भारतीय जीवन शैली को इंगित करता है। यह भी राष्ट्र की कम सेवा नहीं है।
बहरहाल, अर्जुन राम मेघवाल ने जिस साइकिल से संसद जाकर पूरे देश को प्रतीकात्मक संदेशकर प्रसिद्धि पाई, ठीक वैसी ही साइकिल लेकर राजस्थानी के साहित्यकार 21 फरवरी से राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर संसद भवन के लिए रवाना हुए हैं। साइकिल जातरों का ‘जै राजस्थान.. जै राजस्थानी…’ के नारों के साथ स्वागत हो रहा है। मगर अफसोस ! साइकिलमैन कहे जाने वाले मेघवाल इस साइकिल यात्रा के स्वागत में नहीं आए है। शायद संसद भवन के आगे स्वागत करें या हो सकता है- न भी करें। अगर वे राजस्थानी भाषा की मांग को लेकर संसद तक की ‘साइकिल यात्रा’ का सम्मान नहीं करते हैं तो वे सत्ता पाने के सारे नैतिक अधिकार खो रहे हैं। फिर भले ही वे सांसद बने या मंत्री बने, लेकिन उनकी नैतिकता बनी नहीं रहेगी।
खैर, मेरे एक मित्र जो नोखा नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष बाबूलाल जैन ने मेरे आलेख ‘विमर्श- अर्जुन राम जी ! राजस्थानी की मान्यता के मुद्दे पर क्या मुंह दिखाएंगे?’ पर मुझे एक संदेश भेजा-
“आज-कल आप मंत्री महोदय के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं।”
तिस पर मैंने उनको बताया कि- “ऐसा नहीं है। मैं उनकी अच्छी बातों को एप्रिसेएट भी करता हूं। कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट डायमंड जुबली समारोह में जब अर्जुन राम जी ने शानदार भाषण दिया तो मैंने उन्हें कॉल करके उनके शानदार भाषण के प्रजेंटेशन, एक्सप्रेशन की तारीफ की थी। एक बार जब बीकानेर में उनकी ही पार्टी में उनका विरोध हुआ, तब भी मैंने कहा था कि कोई ऐसा नेता बनकर तो दिखाये। बावजूद इसके, मैंने जो लिखा है, वो सच है। लेखकों ने राजस्थानी की मांग को लेकर कलेक्टर को 21 फुट लंबा ज्ञापन दिया। राजस्थानी के लिये 21 दिनों से नंगे पांव पैदल यात्रा की। आख़िर वे भी तो इंसान हैं। ये मंत्री की जिम्मेदारी है कि वे उनकी पीड़ा समझे। लेकिन मंत्री तो मूक बने हुए हैं। ये आलेख किसी दुर्भावना से प्रेरित नहीं बल्कि कड़वी सच्चाई को बयां करता है।
इसी तरह राजस्थानी के व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा की भी प्रतिक्रिया आई, लिखा कि “आलेख तीखा-खरा लिखा है। साहित्यकार मालचंद तिवारी ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया जताई है। भंवर उपाध्याय ने आलेख को सही और सटीक बताया, पारदर्शी और साहसी पत्रकारिता माना है। बाबू लाल जैन ने लिखा कि यह तो मैं भी जानता हूं आपको, हर पत्रकार की यह हिम्मत नही है, अभी थोड़ी देर पहले मनीष ने कहा- “पापा ! हेम जी अर्जुन राम जी के ख़िलाफ़ बहुत लिखते है तब मैंने उससे कहा मैंने यह बात हेम जी लिख दी।
“जैन साहब ! मैं व्यक्तिगत रूप से अर्जुन राम को पसंद करता हूं। लेकिन वो सत्ता के केंद्र में हैं तो कोई भी चापलूसी या परिक्रमा करें यह उनके खातिर भी दीर्घकाल में ठीक नहीं है। राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर वे कोई स्टेंड नहीं ले पा रहे हैं। उनके ही लोकसभा क्षेत्र में अथवा प्रदेश में उठ रही भाषा की मान्यता पर अगर वे चुप्पी साधेंगे तो उनको चेताना पड़ेगा। जब कभी राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी और ये भी इतिहास में लिखा जाएगा कि किसका कैसा रवैया रहा था?”