बीकानेर लोकसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस नेताओं का दूसरी बार बीकानेर में आयोजित जन संवाद कार्यक्रम में हारे हुए मंत्रियों को फिर से कोसना डंक मारने जैसा रहा। वैसे यह कांग्रेस का जन संवाद कार्यक्रम कम और रक्तदान शिविर ज्यादा रहा। रक्तदान व जन संवाद के इस संयुक्त कार्यक्रम में जैसा कि रक्तदान शिविर के आयोजक देहात कांग्रेस अध्यक्ष बिशना राम सियाग का दावा है कि 900 से ज्यादा युवाओं ने रक्तदान किया। पंजीयन- तीन हजार के करीब हुआ। रक्तदान व जन संवाद कार्यक्रम स्थल की क्षमता भी करीब यही रही। रक्तदान शिविर में आए लोग ही जन संवाद कार्यक्रम में शामिल हुए। जन संवाद और रक्तदान शिविर संयुक्त रूप से आयोजत किए गए।
बिशना राम यह रक्तदान शिविर राम किशन सियाग की स्मृति में हर वर्ष आयोजित करते हैं। इसमें कमोबेश इतने ही लोग शरीक होते हैं। टिकटार्थी मदन मेघवाल और गोविन्द मेघवाल उनके समर्थन में नारे लगाने वाली भीड़ जरूर लाए। बाकी नेता कमोबेश भीड़ के नाम पर खाली हाथ आए। बीकानेर शहर अध्यक्ष यशपाल गहलोत तो गिनती के लोग ही ला पाए। पिछली बार सूरज टॉकीज में कांग्रेस का जन संवाद कार्यक्रम कांग्रेस के लोगों के नहीं पहुंचने से विफल हो गया था। इस बार भी रक्तदान शिविर नहीं होता तो क्या जन संवाद कार्यक्रम में भीड़ जुट पाती। यह सवाल कांग्रेस के कार्यकर्ता ही उठा रहे हैं। जन संवाद कार्यक्रम में जनता से संवाद जैसा तो कुछ भी देखने को नहीं मिला, परन्तु हारे हुए कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ. बी.डी.कल्ला, गोविन्द मेघवाल, भंवर सिंह भाटी के फिर से कोसने में डोटासरा और रंधावा ने कोई कमी नहीं रखी। यह मानसिकता क्या दर्शाती है?
पिछली बार भी गोविन्द डोटासरा, सुखजिंदर सिंह रंधावा का बीकानेर के पूर्व मंत्रियों के बारे में ऐसी ही टिप्पणी रही, जो उनको शोभा नहीं देती है। ये भाषा कार्यकर्ताओं के बीच अपने ही नेताओं को प्रताड़ित करने जैसी है। जब ये मंत्री सरकार थे तो इन तीनों मंत्री को लेकर जनता की कई तरह की शिकायतें थीं। तब डोटासरा और रंधावा कहां चले गए थे? वास्तव में इन नेताओं के हार की जिम्मेदारी तो प्रदेश नेतृत्व पर भी तो इतनी है, जितने वे हारे इन मंत्रियों को कोस रहे हैं। ये मंत्री तो बुरी तरह से चुनाव हारे ही हैं। जनता का विश्वास भी खो दिया है। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में डोटासरा की राजस्थान में कांग्रेस की सरकार जाने से कितनी विश्वनीयता बची है? असल में तो डोटासरा, रंधावा पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास खो चुके हैं। बीकानेर में पहला जन संवाद कार्यक्रम फ्लॉप हुआ कारण स्पष्ट था, कार्यकर्ताओं में इन नेताओं के प्रति विश्वास नहीं बचा। दूसरा आयोजन तो देहात अध्यक्ष बिशना राम सियाग की सूझ-बूझ से पार पड़ गया। रक्तदान के बहाने लोग आए और प्रदेश कांग्रेस का घोषित कार्यक्रम जन संवाद पूरा होना मान लिया गया। डोटासर जी और रंधावा जी प्रदेश में पार्टी में अपनी विफलता की खीझ बीकानेर के मंत्री रहे कल्ला, मेघवाल और भाटी पर उतरना ठीक नहीं है। बीकानेर जिले की 7 में से 6 सीटें कांग्रेस हार गई है। मतलब क्या है, कोई न कोई पार्टी की नीति में चूक रही है। भाजपा आरोप लगाती रही है कि गहलोत सरकार ने मंत्रियों और विधायकों को लूट की खुली छूट दे रखी है। तब डोटासरा क्यों नहीं बोले? बीकानेर के नेताओं को इस तरह से कोसने का मतलब यह है कि डोटासरा और रंधावा में नेतृत्व क्षमता चुकता हो गई है। चुनाव तो कांग्रेस पार्टी हारी है। जिसमें प्रत्याशी, नेता, कार्यकर्ता और पार्टी की नीति सभी जिम्मेदार है, केवल बीकानेर के मंत्री कल्ला, मेघवाल और भाटी जिम्मेदार नहीं है। समझे डोटासर जी ! हाथ कंगन को आरसी क्या?