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मेरी बात : आइए, ऐसा करके पत्रकारिता की ‘तसवीर’ बदलें

पत्रकार बंधुओ ! कुछ दिन पहले मैंने मीडिया की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताते हुए एक आलेख (यहां पढ़ें- पत्रकारो ! जागो..) लिखा था जिसमें आप सबसे जानना चाहा था कि क्या ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता-

जिससे मीडिया की गिरती साख को बचाकर फिर से निष्पक्ष मीडिया की नींव रखी जा सके?
जिससे मीडिया को निडर होकर सवाल पूछने का हक़ मिले, अभिव्यक्ति की खुलकर आज़ादी मिले?
जिससे पत्रकारिता के अधिकारों की रक्षा हो, मीडिया को पहले जैसा वजूद मिले सके?

इन सवालों के जवाब से पहले हमें यह स्वीकारना ज़रुरी है कि मीडिया की ऐसी हालत के लिये जिम्मेदार भी हम सब पत्रकार ही हैं। हमने इस पेशे की पवित्रता को तवज्जो देना छोड़ दिया है। मैं फिर से दोहराता हूं कि हम स्पष्टवादिता, स्वाभिमान और एथिक्स को भूला चुके हैं। रही-सही कसर विज्ञापनों और सियासत ने पूरी कर दी है। हमने इन दोनों को इतनी गैर-ज़रुरी तवज्जो दे दी है कि अब ये ही हमें ढहाने को आमादा हो गये हैं। आज पत्रकारों को चुप कराया जा रहा है, सत्ताधीश पत्रकारों से सवाल पूछने लगे हैं।

मित्रो ! हालात चिंताजनक है। मगर.. मुझे लगता है कि ये समय भी बीत जाएगा। इन हालातों से भी निपटा जा सकता है, अगर हम इन 2 उपायों को सख्ती से अपना लें-
पहला- पत्रकारिता को विज्ञापनरहित कर दें।
दूसरा- राजनीति को गैर-ज़रुरी तवज्जो देना बंद कर दें।

लेकिन कैसे..?

विज्ञापन नहीं लेेंगे तो मीडिया हाउस कैसे चल पाएगा? आख़िर पत्रकारों को भी तो परिवार पालना होता है। दूसरा- राजनीति को तवज्जो नहीं देंगे, विधायका-कार्यपालिका पर नज़र नहीं रखेंगे.. तो यह देश कैसे चलेगा? इन दोनों सवालों के मेरे पास वाजिब जवाब हैं।

पहला- आज डिजिटल मीडिया का दौर है। विज्ञापन लेना बंद कीजिये और जनता का साथ मांगिये। जनता को अपना साथी बनाते हुए उन्हें मीडिया हाउस की मेंबरशिप देना शुरू कीजिए। बदले में उनकी आवाज़ बनिये। किसी तरह का दबाव नहीं होगा, तो आवाज़ भी बुलंद होगी। आज ‘द वायर, द क्विंट, सत्याग्रह जैसे देशभर में कई मीडिया हाउसेज इसी मॉडल पर चल रहे हैं। इसके अलावा यूट्यूब भी रेवेन्यू का अच्छा जरिया हो सकता है। ख़बर अपडेट ने भी इसकी ताक़त को पहचानकर काम करना शुरु किया था। हमारे सामने कई तरह की मुश्किलें आईं। लेकिन.. पत्रकारिता के पेशे की पवित्रता के साथ हम काम करते गये। हम बीकानेर के संभवत: इकलौते मीडिया हाउस होंगे, जो विज्ञापनरहित पत्रकारिता करते हैं। और.. आज आपके ख़बर अपडेट के यूट्यूब परिवार में क़रीब 5 लाख सदस्य हैं। (यहां क्लिक करके चैनल विजिट कर सकते हैं) हमने जो सीखा, उसका उपयोग औरों को भी सशक्त बनाने में करते हैं। हर महीने-2 महीने में ‘यूट्यूब वर्कशॉप’ का आयोजन करते हैं। बेबाकी से जनहित की बात लिखते हैं, असली पत्रकारिता करते हैं और संतुष्टि से जीते हैं। ज़रा सोचिये, ऐसा ही देश के हर शहर में होने लगे तो कितना बदलाव आ सकता है।

दूसरा- राजनीति को गैर-ज़रुरी तवज्जो देना बंद करें। पत्रकारों का काम है- सत्ता की जवाबदेही बनाये रखकर जनता के अधिकारों की सुरक्षा करना। राजनेताओं को इतना अधिकार न दें कि वो उल्टा आपसे ही सवाल पूछने लगे। इसके उलट, ऐसे लोगों को मंच दीजिये, जिन्होंने सीमित संसाधनों में बदलाव की कोई बयार बहाई हो। जिन्होंने अपने संघर्ष से हवाओं का रुख बदला हो। छोटे-मोटे अच्छे लोगों को बड़ा मंच दीजिये। ज़रा सोचिये, उस संघर्षशील व्यक्ति के मन में आपके मीडिया हाउस के लिये कितना सम्मान जगेगा। यहां भी मैं आपको बता दूं कि आपका ख़बर अपडेट साल 2021 से इस दिशा में लगातार काम कर रहा है। हमने ‘पॉजीटिव जर्नलिज्म प्रोग्राम- सक्सेस टॉक्स’ के जरिये अब तक ऐसे 40 से ज्यादा रीयल हीरोज को मंच दिया है। पिछले महीने ही बीकानेर में आयोजित हमारे प्रोग्राम को जनता ने दिलो-जान से प्यार दिया था। आपकी सहूलियत के लिये उस प्रोग्राम का लिंक मैं यहां चस्पा कर रहा हूं। यहां क्लिक करके देखियेगा और बताइयेगा कि क्या पत्रकारिता में ऐसे बदलाव.. सकारात्मक परिणामों को जन्म नहीं देंगे? काम करने का भाव, बदलाव की चाहत इंसान की नीयत में होती है। नीयत हो तो संसाधनहीन भी बहुत कुछ कर जाता है, नीयत न हो तो साधन-संपन्न भी ढेलेभर जितना काम नहीं कर पाता है।

दोस्तो ! पत्रकारिता के एथिक्स को लेकर अगर हम अब भी नहीं संभले तो आगे का रास्ता और कांटोंभरा होगा। देश के लिये, पत्रकारिता धर्म के लिये, अपने संतोष-स्वाभिमान के लिये इतना जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। आज देश में ‘पॉजीटिव जर्नलिज्म’ की बेजा दरकार है। पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने की ज़रुरत है। निडर होकर आवाज़ उठाने की ज़रुरत है। आइये, हिम्मत करें और बदलाव की तरफ क़दम बढ़ायें। हम भी ‘पॉजिटिव जर्नलिज्म’ से देश और पत्रकारिता की तसवीर बदलने में अपना योगदान दें। अगर देश के हर शहर-गांव में ऐसी कोशिशें होने लगीं तो नि:संदेह पत्रकारिता की सूरत-सीरत फिर से संवारी जा सकती है। पूरे देश में भी सकारात्मक बदलाव आएगा। फिर ये सियासत भी उससे कैसे अछूती रहेगी भला?

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