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मेरी बात : ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ पर थोड़ा ‘स्वतंत्र’ हो लीजिये

आज 3 मई है यानी ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे’ है। दुनियाभर में इस दिन को प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति जागरुकता बढ़ाने, सरकारों द्वारा अधिकारों का सम्मान करने की याद दिलाने के लिए मनाया जाता है। इससे पहले कि मैं लिखना शुरु करुं, एक डिस्क्लेमर दे देना चाहता हूं। वो ये कि “मेरी बात’ का ये आलेख कई लोगों को शूल सरीखा चुभ सकता है, इसलिये अपनी जिम्मेदारी पर ही पढ़ें।”

बहरहाल, डिस्क्लेमर के बावजूद आपने पढ़ना जारी रखा, इसका मतलब प्रेस की स्वतंत्रता में आपकी रूचि है। अच्छी बात है, शुक्रिया आपका। नेशनल मीडिया का हिस्सा रहने के साथ-साथ मैं एक ऐसे परिवार से वास्ता रखता हूं, जिसका क़रीब 4 दशकों से पत्रकारिता से संबंध रहा है। हम सबने तपती दुपहरी वाले ‘आओ गांव चलें’ से लेकर ठंडी छांव वाले ‘हरियाळो राजस्थान’ का दौर नजदीक से देखा है। इस दौर में हमने असली पत्रकारिता देखी है, ख़बर का ‘असर’ देखा है, अफसरों को मिमियाते देखा है, नेताओं को ‘हां..जी-हां..जी’ करते देखा है और सरकारों को झुकते देखा है।

एक वो दौर था… एक दौर आज है। जहां ‘स्वतंत्र’ पत्रकारिता ‘परतंत्र’ होती दिख रही है, जहां पत्रकार प्रतिष्ठा खोते जा रहे हैं, जहां चुप रहने के लिये ‘विज्ञापनों’ की बोली लगती है, जहां ‘पत्रकारिता रूपी धर्म’ हार रहा है और ‘स्वार्थ रूपी अधर्म’ जीत रहा है। जिस मीडिया को जनता के लिये ‘मोमबत्ती’ होना था, वो सत्ता के लिये ‘अगरबत्ती’ हो रहा है। सवाल उठता है कि इन सबके पीछे कौन जिम्मेदार है? तो जवाब है- ख़ुद पत्रकार।

कोई भी प्रचलित परिभाषा कुछ लोगों के आचरण से तय नहीं होती, बल्कि एक बहुत बड़े प्रतिशत के करने से तय होती है। पत्रकारों का बड़ा तबका अपने धर्म से विमुख होता जा रहा है। यही वजह है कि कोई भी मीडिया हाउस बेरोजगार, भ्रष्टाचार, जनहित के मुद्दों की बात नहीं करता। देश, राज्य और ज़िले के विकास की बात नहीं करता। मीडिया हाउसेज को कॉर्पोरेट और पॉलीटिक्स के दबाव में रहते हुए काम करना पड़ रहा है। समाचार पत्रों, पोर्टल्स में राजनेताओं की ख़ुशामदी वाले आलेख छापे जाते हैं। ये सब ‘विज्ञापनों’ से अटे रहते हैं। जहां ख़बरें नीचे दब जाती हैं और ऊपर दसियों विज्ञापन चमकते रहते हैं। आख़िर क्यों आज का पत्रकार इतने ‘बंधनों’ में बंधकर ‘परतंत्र’ हो गया है? क्या किसी के पास इन सवालों का जवाब है?

इसके उलट, अगर अन्याय और मनमानी के ख़िलाफ़ खड़े होने का माद्दा किसी में हो सकता है तो- वो निर्भीक पत्रकार ही है। पत्रकारों की इसी ‘निडरता’ को संजोने की ज़रुरत है, पत्रकारों को ‘पत्रकार’ बना रहने की ज़रुरत है। लेकिन कैसे..? ये बेजा मुश्किल सवाल है। ये सवाल तब और मुश्किल हो जाता है, जब इसमें अर्थ जुड़ा होता है, आगे बढ़ने की हौड़ होती है और अकेला पड़ जाने का डर सताये रहता है। फिर भी कोशिश तो ज़रुरी है। क्या रास्ता निकाला जाए? तो जवाब हो सकता है- विज्ञापनरहित पत्रकारिता का मॉडल।

आज ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ के मौक़े पर बताना चाहता हूं कि हमने साढ़े तीन साल पहले इसका जवाब ढूंढ लिया था। ये और बात है कि हमें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन.. धीरे-धीरे हम सफलता की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। बीकानेर की बात करें तो संभवतया, ‘ख़बर अपडेट’ इकलौता मीडिया हाउस होगा, जो ‘विज्ञापनरहित पत्रकारिता’ के मॉडल पर काम करता है। बीते साढ़े तीन सालों में हमने साढ़े तीन रुपये के भी विज्ञापन नहीं लिये होंगे. हां.. ‘विमर्श’ और ‘इंटरव्यूज’ के जरिये जनहित के मुद्दे ख़ूब उठाये। फिर चाहे वो बीकानेर का समग्र विकास हो या फिर कोई और मसला। चाहे ‘सक्सेस टॉक्स’ के जरिये देश के रीयल हीरोज को सामने लाना हो या फिर ‘बातपोशी’ और ‘काव्यशाला’ के जरिये साहित्य की बात करनी हो। हमने जनता का मीडिया हाउस बनकर काम किया तो जनता ने भी दिल खोलकर सपोर्ट किया। यही वजह है कि हमारा यूट्यूब चैनल- ‘ख़बर अपडेट’ क़रीब पौने पांच लाख सब्सक्राइबर्स वाला चैनल बन चुका है। ये आंकड़ा इसे बीकानेर में ‘नंबर- 1’ बनाता है।

बहरहाल, ये सब हम इसलिये बता रहे हैं ताकि समझा सकें कि ‘विज्ञापनरहित पत्रकारिता’ का मॉडल ज्यादा कठिन नहीं है। जनता के साथ खड़ा होने के कई फायदे होंगे। तरह-तरह के बंधनों में बंधा पत्रकार तब स्वतंत्र महसूस करेगा। लेकिन ‘स्वतंत्र’ होने की ये हिम्मत ख़ुद उसी को ही करनी होगी। उसका ऐसा करना ‘मूल्यवान पत्रकारिता’ की तरफ पहला क़दम बढ़ाना साबित हो सकता है। ख़बर अपडेट हर महीने-दो महीने में ‘यूट्यूब वर्कशॉप’ भी आयोजित करता है, आपमें से जो कोई भी ‘विज्ञापन रहित’ पत्रकारिता की तरफ डग भरना चाहता है, वो इसका हिस्सा बन सकता है।

बात का लब्बोलुआब यह है कि पत्रकारिता के प्रतिमानों को धुंधला होने से बचाना हैं तो ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ पर थोड़ा ‘स्वतंत्र’ होने की ज़रुरत है। जो लोग इसे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, उन्हें आगे आने की ज़रुरत है। जो पत्रकारिता करना चाहते हैं, उनको आगे बढ़ाने की ज़रुरत है। और जो.. पत्रकारिता के नाम पर अपने हित साधना चाहते हैं, उनको बाहर का रास्ता दिखाने की ज़रुरत है। बस.. इतने भर काम से हम सब ‘स्वतंत्र’ हो सकते हैं और यही ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ की सार्थकता है।

2 COMMENTS

  1. आज के दौर में श्री प्रभाष जोशी जी जैसे पत्रकार नहीं रहे हैं। एक समय था कि सभी लोग जनसत्ता समाचारपत्र को महत्व दिया करते थे। विज्ञापन उस समय भी मिलते थे, लेकिन मिडिया हाऊस कम बिकते थे। आज मिडिया हाऊस राजनीतिक लोगों के धन्ना सेठों ने खरीद कर बिकाऊ पत्रकार रखें है जो उनके फायदे के लिए बकवास की पत्रकारिता करते रहते हैं। स्वतंत्र पत्रकार/लेखक आज भी चमचागिरी और बकवास की पत्रकारिता नहीं करके ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करते रहते हैं। सरकारें नहीं करने देना चाहती है। इसलिए धन्ना सेठों को मिडिया हाऊस का मालिकाना हक दिलवाकर अपने अनुसार कशीदाकारी की पत्रकारिता करवाया करती हैं।

  2. आपके पिताजी सेंकडो पत्रकारों की इंस्टीट्यूट है
    पारिवारिक संस्कार आपके अंदर कूट कूट कर भरे हुवे है ।
    लेकिन अब भी आप दुष्कर कार्य कर रहे है।
    अब मेरी बात विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ पर थोड़ा ‘स्वतंत्र’ होने में हम इस परिभाषा को ख़ुद परिवर्तन करे, ताकि इस चालीस वर्ष के स्तंभ को और मज़बूत बनाये। समय बहुत परिवर्तन हो गया है ।

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