विमर्श : युगपक्ष का यह अग्रलेख पत्रकारिता की आगे की ‘कठिन डगर’ को बताता है

समाचार पत्र ‘युगपक्ष’ ने अपने पत्रकारिता की आधी सदी की यात्रा पूरी कर ली है। युगपक्ष के संपादक उमेश सक्सेना ने इस यात्रा के वृतांत में जो कहा है, वो वर्तमान में ‘फॉर्थ पिलर’ के लिए एक चुनौती की मानिंद है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का पहरेदार कहा जाता है। लेकिन.. उसकी जिस गिरावट की तरफ युगपक्ष ने इशारा किया है, वो लोकतंत्र और पत्रकारिता दोनों के वजूद के लिए चिंता की बात है। युगपक्ष का यह अग्रलेख पत्रकारिता की आगे की ‘कठिन डगर’ की तरफ इशारा करता है।
युगपक्ष के अग्रलेख में कहा गया है कि पिछले दो-तीन दशकों से मीडिया का चरित्र बदला है। यह बदलाव अभी तक जारी है। पहले मीडिया और पत्रकारिता एक मिशन की तरह होती थी, अब यह मिशन नहीं बल्कि व्यापार बन चुकी है। अब.. जब किसी का चरित्र बदलता है तो उसमें व्यापक रूप से परिर्वतन होने लगता है। पत्रकारिता के चरित्र में जो बदलाव आया है, उससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होने लगे हैं। आज हालात बहुत चिन्ताजनक है। आज डिजीटल मीडिया ने पत्रकारिता को मोबाइल तक सीमित कर दिया है। इसमें पत्रकार का धर्म और नैतिकता ग़ायब होती जा रही है। सक्सेना ने युगपक्ष की पत्रकारिता की यात्रा को इस तरह उकेरा है कि पढ़कर चिंता होने लगती है। शिद्दत से महसूस होता है कि पत्रकारिता के गिरते मानकों को उबारा जाना बहुत ज़रुरी है।
मित्रो ! युगपक्ष के संपादक की चिन्ता इसलिए भी विचारणीय है क्योंकि वे पत्रकारिता के अर्थों को क़रीब से जी रहे हैं। वे जानते हैं कि पत्रकारिता का बिगड़ता चरित्र.. देश और लोकतंत्र का बेजा नुक़सान कर सकता है। क्या सत्ता और क्या ही बाज़ारवाद.. हर कोई अपने नफे-नुक़सान के लिये पत्रकारिता का उपयोग करने लगे है। जिसमें नुक़सान पत्रकारिता का हो रहा है, पत्रकारों की निष्ठा का हो रहा है, चौथे स्तंभ की निष्पक्षता और निडरता के अधिकार का हो रहा है। इन हालात में एक ही ‘तारणहार’ हो सकता है.. और वो है- आप जनता। एकमात्र आप ही हैं, जो सच्ची, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता को समर्थन देकर बचा सकते हैं। बशर्ते, पत्रकार भी अपना धर्म निभायें।