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विमर्श : अर्जुन राम जी ! क्या बिगाड़ के डर से कोई पत्रकार ईमान की बात भी न कहेगा?

बीकानेर के स्वामी केशवानंन्द राजस्थान कृषि विवि परिसर में देश के कानून व न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जिस तरह प्रेस को धमकाने का प्रयास किया, वो भारत सरकार के मंत्री के रूप में उनको कतई शोभा नहीं देता। मौक़े पर मौजूद केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, कुलपति, डीन-डायेक्टर और अधिकारियों के बीच उन्होंने ऐसे व्यवहार से अपने पद की गरिमा को शर्मसार किया है। मंत्री जी को इल्म होना चाहिये कि जिस पत्रकारिता में जनता की आवाज़ बनने का नैतिक साहस हो, वो उनकी धमकियों से डरने वाली नहीं है। जो बात जनहित में है, वो हमेशा उतनी ही ताक़त के साथ लिखी जाती रहेगी। आख़िर यही बात तो पत्रकारिता के धर्म और पत्रकार के नैतिक आचरण से जुड़ी है। हां, अगर कोई पत्रकार झूठ या किसी दुर्भावना से साथ किसी के ख़िलाफ़ लिखता है, तो पत्रकारिता धर्म की अवेहलना करने जैसा है। लेकिन जनता की आवाज़ बनकर, जनहित के मुद्दों को उठाना कहां ग़लत है? आख़िर पत्रकारिता का असली धर्म भी तो यही है। आपको पत्रकारिता का यह धर्म पसंद नहीं आया तो आप पत्रकारों को धमकाते हो?

अर्जुनराम जी ! क्या हुआ जो आप तो सत्ता के शिखर पर बैठे हो? क्या हुआ जो आप सब तरह से सक्षम हो? तो क्या इसका मतलब यह हुआ है कि आप सार्वजनिक तौर पर पत्रकारों को धमकाते रहेंगे? जबकि आपको अपनी शक्ति और क्षमताओं का उपयोग देश और बीकानेर को संवारने में करना चाहिये। जनता की समस्याएं बताने वाले पत्रकार को धमकाने से आपको क्या ही हासिल होगा? ऐसा करना आपके पद की गरिमा को घटाएगा ही। आपके पैतृक गांव- किश्मीदेसर में आपके ख़िलाफ़ धरने को लेकर जो लिखा गया है, वो मौक़े का सच है। आपको इस बात को स्वीकारना चाहिये। ऐसा लिखने से आप नाराज होते हैं, तो 100 बार होइये। आप चाहें तो सभी तथ्यों को भी नकार डालिये। भले ही सत्ता के शिखर पर बैठकर, क़ानून और न्याय मंत्री होकर, परम साहसी बनकर, सार्वजिनक रूप से पत्रकार को धमका डालिये लेकिन, ज़रा अपने गांववालों को तो मुंह दिखाने का साहस कैसे जुटा पाएंगे? इस सच की तसदीक इसी बात से होती है कि जो अर्जुन राम मेघवाल लाखों वोटों से जीतते थे, वे 50-55 हज़ार पर क्यों आ गये? कोई इसका विश्लेषण करके, आपके लोक व्यवहार की तस्वीर पेश करेंगे तो बात तो चुभेगी ही ना? और चुभेगी तो क्या आप इस तरह से धमकियां दोगे?

मेघवाल जी ! आपका आकलन बिल्कुल ग़लत है। आपको ठकुर-सुहाती सुनने की आदत पड़ चुकी है। आपको धरातल के इर्द-गिर्द का सच नहीं दिया जा रहा है। आप ताक़तवर हैं, सत्ता के शिखर पर हैं, इसका भी अपना एक गुरूर होता है। इतनी ऊंचाई से चीजें दिखाई नहीं देतीं। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिये कि आप अपने रुतबे का इस्तेमाल, पत्रकार को धमकाने में करने लगें। आपके बीकानेर की जनता क्या कहेगी आपको? यह बात जब आपकी पार्टी के मुख्याओं या आपके आकाओं तक पहुंचेगी, तो क्या जवाब होगा?

मंत्री जी ! जो पत्रकार, सत्ता का पिछलग्गू नहीं हैं, जो जनता की आवाज़ बनकर पत्रकारिता करते हैं, उनको आपकी ऐसी धमकियों और अपमानपूर्ण व्यवहार से कतई फर्क नहीं पड़ता। और हां, जिस तरह हम बीकानेर के सांसद के तौर पर आपका आदर करते हैं, वैसे ही व्यवहार की आपसे भी उम्मीद करते हैं। असली पत्रकारिता वही है, जिसमें जनता की समस्याओं की बात हो। ख़बर अपडेट की आवाज़ ऐसी किसी धमकियों से दबने वाली नहीं है। याद कीजिएगा, इसी निष्पक्ष पत्रकारिता ने आपको यहां तक पहुंचाने में योगदान दिया है। तो क्या हुआ, जो आज आप सब भूला बैठे, आपके सुर ही बदल चुके। निष्पक्ष पत्रकारिता को अनदेखा करके धमकियां देना, ख़ुद के पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है। हम तो ईमान से कहते हैं कि हम बिना किसी दुर्भावना के, ऐसे ही जनता की आवाज बनते रहेंगे। आप चाहें लाख धमकियां ही क्यों न दें। क्या कोई सच्चा पत्रकार बिगाड़ के डर से ईमान की बात भी नहीं कहेगा?

सांसद महोदय ! फिर कभी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को धमकाइयेगा मत।

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