विमर्श : 50 लाख पौधारोपण के लक्ष्य के चक्कर में इको सिस्टम से छेड़छाड़ क्यों?

एक आम धारणा है कि “पौधे लगाना पुण्य का काम है।” लेकिन… पुण्य के इस काम में ‘स्थान’ की अपनी प्रधानता होती है। ‘पौधा लगाने’ से ज्यादा ज़रुरी होता है कि ‘पौधा कहां लगा जाए’?

अब मूल विषय पर आते हैं। ‘हरियालो राजस्थान’ के अंतर्गत बीकानेर को 50 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य मिला है। पीएम मोदी का भी ‘एक पौधा मां के नाम’ लगाने का अभियान जारी है। इसी कड़ी में मंगलवार को बीकानेर जिला कलक्टर नम्रता वृष्णि ने उदयरामसर चारागाह में पौधारोपण किया। उन्होंने गोचर में बड़ और सीईओ, जिला परिषद ने शीशम का पौधा लगाया। कलक्टर ने बताया कि “इस चारागाह क्षेत्र में इस साल 2 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इनमें से 1300 पौधे लगाए जा चुके हैं और 700 पौधे लगाए जा रहे हैं।”

अच्छी बात है। पौधे लगाना पुण्य का काम है। लेकिन…फिर वही बात दोहराता हूं कि “पौधा लगाने’ से ज्यादा ज़रुरी होता है कि ‘पौधा कहां लगा जाए’? पुण्य के इस काम में भी ‘स्थान’ की अपनी प्रधानता होती है।”

किसी वनस्पति विशेषज्ञ से पूछेंगे तो मालूम चलेगा कि ‘चारागाह भूमि.. चारागाह विकास के लिये होती है। बड़े स्तर पर पौधे लगाने से वहां के पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव आ सकता है। इससे वहां पनपने वाली झाड़ियां और प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़ों को नुक़सान हो सकता है। यहां तक कि कुछ ही सालों में ये इकोलॉजिकल चेंज इतना हो सकता है कि चारागाह.. ‘वन्य क्षेत्र’ में ही तब्दील हो जाए।’

ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रशासन ने वहां जो 1300 पौधे लगाए, वो विवेकहीनता का परिचायक है। जिला प्रशासन को सोचना चाहिए था कि चारागाह भूमि को वन भूमि में बदलना कितना उचित है? फकत सरकारी आंकड़े पूरे करने के लिए, बिना सोचे समझे, कुछ भी करना कितना सही है? 50 लाख के पौधारोपण का लक्ष्य पूरा करने की हौड़ में ‘इको सिस्टम’ के साथ खिलवाड़ की छूट तो नहीं दी जा सकती न? बेशक ! पौधारोपण बहुत अच्छी बात है, पुण्य की बात है, पर्यावरण के लिये सर्वश्रेष्ठ बात है लेकिन पौधे कहां लगाने हैं, यह भी जानना उतना ही महत्वपूर्ण है। क्या इतने सारे पौधे किसी वन्य भूमि, सार्वजनिक या किसी अन्य माकूल जगह नहीं लगाये जा सकते थे? जो ठंडी छांव देते, पर्यावरण को संबल देते.. सोचियेगा।

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