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विमर्श : तीर्थराज कोलायत की इतनी अनदेखी ! क्यों?

देव उठनी एकादशी के साथ ही श्रीकोलायत में पांच दिवसीय मेले की शुरुआत हो गई है। कार्तिक पूर्णिमा को कपिल सरोवर पर भरने वाले इस मेले की अपनी ख्याति और आध्यात्मिक महत्व है। इसकी वजह- सांख्य दर्शन के प्रणेता, आदिकाल के ऋषि आश्रम और पुरातन मंदिर है। इसीलिये तो देशभर से लाखों की तादाद में लोग यहां पहुंचते हैं। सरोवर में डुबकी लगाते हैं, मेले का आनंद लेते हैं, कपिल मुनि के दर्शन करते हैं और फिर से अपनी-अपनी जगहों पर लौट जाते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतनाभर काफी है कपिल मुनि के सामने कृतज्ञता प्रकट करने के लिये?

जवाब है- नहीं। जरूरी है तो भारत भूमि के सिरमौर तीर्थ कपिलतायन के मर्म को जानने की कोशिश। अजी ! लोगों को छोड़िये। यहां तक कि साधु-संत, यहां के बुध्दिजीवी, नेता और समर्थ लोग भी कपिलतायन के महत्व को उजागर नहीं कर पा रहे हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि-

– कोलायत में 100 से भी ज्यादा मंदिर हैं।
– कोलायत में 100 के आस-पास धर्मशालाएं हैं।
– कोलायत में 84 के आस-पास घाट हैं (जबकि 88 घाट वाली काशी विख्यात है)
– कोलायत में 36 कौम के श्रद्धालु दर्शन के लिये पहुंचते हैं।
– कोलायत में एक साथ 12 महादेव के मंदिर हैं।
– कोलायत के गुरुद्वारे में 12 मास भोजन प्रसाद चलता है।
– कोलायत की 8 कोस की परिधि में सप्तऋषियों के आश्रम मौजूद हैं।
– कोलायत के पंच मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।
– कोलायत में अमावस-पूर्णिमा दोनों तिथियों पर श्रद्धालु स्नान के लिये पहुंचते हैं।
– कोलायत में संत गुरुनानक ने कई दिनों तक आवास किया था।
– कोलायत को वह धाम कहा जाता है, जहां जहां मत्था टेकने के बाद ही सब तीर्थों की यात्रा पूरी मानी जाती है।
-इसके अलावा यहां विख्यात भव्य मंदिर, आश्रम, अखाड़े, मठ, मूर्तियां, शिल्पकला सबके सब बेजोड़ हैं।

श्रीकोलायत सरोवर में डुबकी लगाने, अखण्ड पाठ, भगवत कथा, यज्ञ और प्रवचन सुनने के लिए लाखों की संख्या में देश भर से श्रद्धालु आते हैं।
-देश के अलग-अलग कोनों से विभिन्न संप्रदायों के साधु संतों का समागम होता है।

देखिये न ! बावजूद इन सबके, हमारे श्रीकोलायत की इनमें से किसी भी चीज को वो पहचान नहीं मिल रही, जिसका यह हक़दार है।

कपिल सरोवर का सरोकार कपिल मुनि के काल से ही माना जा रहा है। कपिलायतन तीर्थस्थल मरूजांगल प्रदेश का पवित्र स्थान माना जाता है। मान्यता है कि सिद्धेश कपिल मुनि का यह स्थान कलिकाल में बिना ज्ञान के मुक्ति देने वाला और समस्त पापों का विनाशक है। इस तीर्थस्थल पर आने की इच्छा से ही सकल पापों का विनाश हो जाता है। प्राकृतिक सौन्दर्य, खनिज सम्पदा और तीर्थराज श्रीकोलायत की ख्याति होने से तथा बदलती परिवहन सेवाओं जैसे अब बीकानेर में रेल सेवाएं, राष्ट्रीय राज मार्ग और हवाई सेवाओं के कारण और आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक विशेषताओं के चलते श्रीकोलायत तीर्थ स्थल विश्व मानचित्र पर आ सकता है। बर्शते, इस तरफ सबका ध्यान जाए।

श्रीकोलायत बीकानेर से लगभग 51 किलोमीटर पर स्थित है। यह क्षेत्र युगों तक ऋषि मुनियों की तपोस्थली रहा है। श्रीकोलायत स्थित कपिल तीर्थ स्थल विष्णु के पंचम अवतार एवं सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल की तपोस्थली के रूप में विख्यात है। यहां आदिकाल के सप्त ऋषियों की आठ कोसी तपो भूमि है। डेह में देवहूति का प्राचीन मंदिर, जागेरी में याज्ञवलक्य, टेचरी में काग ऋषि, जोगीरा में जोग ऋषि, दियातरा में दतात्रैय ऋषि, चानी में च्यवन ऋषि और बीठनोक सिध्द माहत्माओं की तपोस्थली रहा है। इस तीर्थ  परिसर में बाला जी धाम आश्रम, बारह ज्योर्तिलिंग मंदिर, पंच मंदिर, लालेश्वर महादेव मंदिर, गंगा मंदिर, गुरूद्वारा, लोक देवता सिद्ध भभूता महाराज मंदिर, ठाकुर जी मंदिर,  आदि छोटे- बड़े करीब 100 मंदिर हैं। तीर्थ राज श्रीकोलायत के कपिल सरोवर को बिन्दु सागर के नाम  से भी जानते हैं और इसका महात्म्य गंगा जल के समान पवित्र और मोक्षदायी माना गया है। यहाँ कार्तिक मास की पूर्णिमा का अभी मेला चल सहा है। इस दौरान झील में दीप जलाकर अर्पण किए जाते हैं। यहां समीप ही एक शिवालय (ज्योतिर्लिंग मंदिर )है, जिसमें 12 ज्योतिर्लिंग हैं। कोलायत झील में स्नान करना धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, इसलिये यहाँ लोगों का आना-जाना चलता रहता है। ऐसी मान्यता यह भी है कि कोलायत में एक दिन का प्रवास किसी अन्य पवित्र स्थान पर 10 साल बिताने के बराबर है। यहां मेले में झील के किनारे सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाता है। कोलायत मेले में विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिन में मांड राग गायन, भवाई, कालबेलिया नृत्य, चारी नृत्य, पंजाबी और राजस्थानी लोक नृत्य, कठपुतली और मिमिक्री आदि मुख्य आकर्षण हैं। कपिल मुनि घाट की दीप मालिका देखने लायक होती है।

इस दौरान में ‘पशु मेला भी लगता है। . कहते हैं कि ‘कोलायत झील का पानी हिलता है तब मौसम बदलता है।कार्तिक स्नान या काती नहाना का अपना महत्व है।  झील के चारों तरफ पीपल के कई सारे पेड़ हैं। कहते हैं कि कपिल मुनि ने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की थी। सिख धर्म के लोगों के लिये कोलायत एक पवित्र स्थान है। यहां गुरुद्वारा भी है। जहां बारहमास गुरुद्वारे में भोजन की व्यवस्था है। यहीं पर गुरुनानक जी ने यात्रा की थी। सिख भाइयों द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरुनानक जयंती पर्व भी मनाया जाता है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में सिख भाई भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कोलायत पहुंचते हैं।  बस राजनेताओं, खननकर्ताओं और सरकार के लिए तो इतना ही महत्व है कि कोलायत की खानों में से निकलने वाला मुख्य खनिज जिप्सम है। यहां 125 मुल्तानी मिट्टी और 80 बजरी की खानें हैं। इतने करोड़ रॉयल्टी वसूली और चोरी में इतना जुर्माना लगाया। अवैध खनन को रोका। तीर्थों के सिरमौर कपिलतायन में इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने के साम्मर्थ्य को न तो सरकार पहचान रही है, न ही साधु-संत और जिम्मेदार लोग। तीर्थाटन का सिरमौर कपिलायतन को इस क्षेत्र के विकास की संभावनाओं को स्वार्थ के आवरण से ढक दिया गया है। सब अपने-अपने स्वार्थसिद्धि में लगे हैं। किसे पड़ी है जो तीर्थ स्थल की महत्ता को कौन जाने समझे..जाने? ..लेकिन किसी को तो समझना होगा।

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