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विमर्श : कुलाधिपति दीक्षांत समारोह की ऐसे में क्यों दे रहे हैं अनुमति!

ऐसे कुलपति जो 2-3 महीने या अगले 2-4 सप्ताह में सेवानिवृत हो रहे हैं, उनके सान्निध्य में दीक्षांत समारोह आयोजित करने की महामहिम राज्यपाल कुलाधिपति क्यों अनुमति दे रहे हैं ? बीकानेर तकनीकी विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति अंबरीश शरण की सेवानिवृत के ठीक पहले दीक्षांत समारोह हुआ और कुलाधिपति ख़ुद इसमें पधारे भी। दीक्षांत समारोह के कुछ दिन बाद 3 मई को वे सेवानिवृत हो गए। कुलपति ने दीक्षांत समारोह के बाद राज भवन से पहले से मना मामले में राज भवन की अनदेखी कर निर्णय कर दिए। आचार संहिता का उल्लंघन कर कुल सचिव और दो प्राचार्य का तबादला कर दिया। एक व्यक्ति को एपीओ कर दिया। बॉम के बिना अनुमोदन के और सेवा निवृत्ति के 3 माह पहले कुलपति कोई नीतिगत निर्णय नहीं कर सकते, फिर भी कुलपति ने कई आदेश 1 मई को जारी किए और 3 मई को सेवानिवृत हो गए। आचार संहिता का भी वे उल्लंघन करने से नहीं बचे। हालांकि सेवा निवृति के तुरंत बाद कुलपति के ये सारे आदेश निरस्त कर दिए गए। कुलपति की क्या इज्जत रही? कुलपति एक शिक्षाविद् होता है। उन पर कुलाधिपति का प्रोटोकॉल भी है। फिर भी नियम विरुद्ध इतनी मनमानी? अपने कुलपति के कार्यकाल में तो वे विवादित रहे ही है। कुलाधिपति और सरकार को शिकायतें भी हुई, परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। वे जाते-जाते जो करते हैं, इससे उनकी कार्य प्रणाली पर सवाल उठना वाजिब है। कुलाधिपति ऐसे कुलपति को क्यों बर्दाश्त करते रहे हैं? महामहिम दीक्षांत समारोह में भी आए। फिर ग़लत निर्णयों पर राज भवन की चुपी क्यों है? भले ही वे सेवानिवृत हो गए हों, उनके नियम विरुद्ध आदेशों पर राज भवन नोटिस तो ले ही सकता है! यह कुलपति पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा क़दम है। महामहिम के कुलाधिपति के रूप में कार्यकाल के दौरान बीकानेर के तीनों विश्वविद्यालय- स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. रक्षपाल सिंह, वर्तमान कुलपति अरु कुमार सिंह, राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय डा. सतीश के. गर्ग और महाराज गंगा सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. विनोद कुमार सिंह के ख़िलाफ़ राज्य सरकार और कुलाधिपति की शिकायतें हुई हैं। कुलपतियों के खिलाफ शिकायतें होना चिंता की बात है! शिकायतें कितनी सच है या झूठी यह जांच का मुद्दा है। कुछ कुलपतियों के ख़िलाफ़ शिकायतकर्ता अदालत में भी गए हैं। राज्य सरकार और कुलाधिपति को कुलपतियों के इन हालातों पर विचार करने की ज़रुरत है। नहीं तो, विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं और कुलपति जैसा सम्मानित पद की गरिमा मिट जाएगी।

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