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विमर्श : नियम-कायदों की अनदेखी करने वाला यह कैसा प्रशासन?

राजस्थान में नोखा नगर पालिका बोर्ड ही ऐसा है, जो भाजपा या कांग्रेस का नहीं विकास मंच ने चुनाव जीतकर बनाया है। कन्हैया लाल झंवर इसके सुप्रीमो है, जो राजस्थान सरकार में संसदीय सचिव भी रहे हैं। नारायण झंवर बोर्ड के चैयरमैन हैं। इनकी नोखा विधानसभा क्षेत्र में दोनों राजनीति दल कांग्रेस और भाजपा से प्रतिस्पर्धा है। इसका असर नोखा नगर पालिका के विकास प्रस्तावों पर होता रहा है। इसका एक उदाहरण- माडिया गांव में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पालिका बोर्ड की बैठक में हुए निर्णय के आधार सारी प्रक्रिया पूरी होने और आरयूडीपी टेण्डर के बावजूद सिरे नहीं चढ़ पाना है। यह मामला क़रीब 7 साल से अधर झूल में क्यों पड़ा है? जब सारी प्रक्रियाएं पूरी कर ली गईं। राज्य सरकार की अनुमति से नगर पालिका ने प्लांट के लिए जमीन खरीदी। इस स्थान पर प्लांट लगाने के औचित्य पर उपखण्ड अधिकारी के अध्यक्षता में बनी कमेटी ने पक्ष में निर्णय दे दिया तो प्रशासन का दायित्व है कि इस समस्या का समाधान करने में सहयोग करें।

ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? यह गंभीर बात है। ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बनने से नोखा की जोरावरपुरा में रहने वाले नागरिकों की गंदे पानी के ठहराव से दुर्दशा हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य पूरे इलाक़े के लोगों के लिए गंभीर समस्या है। क्या जिला कलक्टर की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे जन स्वास्थ्य की चिन्ता करें? मौके पर जाकर कभी कलक्टर ने देखा है कि वहां रहने वाले लोगों के जीवन में कितनी गंभीर समस्या है? इस समस्या के निवारण की जिम्मेदारी क्या जिला कलक्टर की नहीं है? जिला कलक्टर को जनता की इस पीड़ा को समझना चाहिए और उचित समाधान में सहयोगी बनना उनका प्रशासनिक दायित्व है।

नोखा पालिका के पार्षदों ने 20 सितम्बर 2024 को पालिका बोर्ड बैठक की पालना में जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक सहयोग मांगा गया। कोई सुनवाई नहीं हुई तो फिर आग्रह किया गया है कि 16 अक्टूबर तक काम शुरू करने के लिए जाब्ता मुहैय्या करवाएं अन्यथा अनशन करेंगे। यह बात नोखा पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद और पूर्व संसदीय सचिव कह रहे हैं। यह नौबत क्यों आ रही है? प्रशासन को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। जब सारी प्रक्रियाएं पूरी हो गई है तो फिर रुकावट क्यों? प्रशासन का रुख सहयोग का क्यों नहीं है? यह जन समस्या है। लोगों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट यहां बनना या नहीं बनना चाहिए यह कोई राजनीति मुद्दा नहीं है जो प्रशासन की ओर से टालमटोल और अनदेखी की जाए। इस जन समस्या का समाधान सर्वोच्च प्राथमिकता से होना चाहिए।

जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक को इस मामले में अवगत करवाया गया है कि नोखा नगर पालिका का 4 अक्टूबर 2017 का बोर्ड प्रस्ताव और 12 अप्रेल 2018 उपखण्ड अधिकारी की अध्यक्षता में बनी कमेटी के निर्णय के आधार पर राज्य सरकार की स्वीकृति है। इसी स्वीकृति के आधार पर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए नोखा नगर पालिका ने माडिया में भूमि खरीदी। पालिका ने खातेदारों को भुगतान कर दिया और कटान के मार्ग पर सड़क बना दी गई। इस प्लांट के विरोध में लोगों ने उच्च न्यायालय में रिट लगाई जो खारिज कर दी गई। फिर भी प्रशासन प्लांट लगाने के निर्देश की पालना में सहयोग का रुख नहीं दिखा रहा है। नोखा नगर पालिका ने 20 सितम्बर को बोर्ड की बैठककर बोर्ड निर्णय की पालना के लिए पुलिस जाप्ता उपलब्ध करने का आग्रह किया है।

सरकार किसी भी राजनीति दल की हो प्रशासन को नियम-कायदों से काम करना होता है। जनहित के मुद्दे पर तो प्रशासन को संवेदनशीलता बरतनी चाहिए होती है। लेकिन कई मामलों में देखा यह गया है कि अफसर नियम-क़ानून को ताक पर राजनीति दलों के नेताओं के इस्ट्यूमेंट की तरह काम करते हैं। ऐसे अफसर पद का दायित्व, खुद की गरिमा, नियम-कायदे भूलकर सत्ता के दवाब में जनहित की भी बलि चढ़ा देते हैं।

नोखा नगर पालिका जो एक वैधानिक इकाई है। अगर प्रशासन जनता की चुनी पालिका बोर्ड के प्रस्तावों की भी सुनवाई नहीं करता है तो फिर प्रशासन का नियम कायदों से काम करने पर सवाल उठना वाजिब है। देखना है कि चुनी हुए पालिका बोर्ड को अनशन पर बैठना होगा या प्रशासन सत्ता के दवाब से मुक्त रहकर जो भी उचित, कानून सम्मत और न्यायपरक होगा वो करेगा?

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