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विमर्श : लालानी जी ! बार-बार दिन ये आये

29 दिसम्बर 2024 की तारीख़। कला प्रेमी टोडरमल लालानी का 90वां जन्मदिन। गंगाशहर का टी. एम. ऑडिटोरियम का परिसर, ‘बीकाणा म्यूजिक ग्रुप’ का संगीत, कालबेलिया नृत्य और उस ख़ुशनुमा माहौल में ख़ुश होते 90 साल के लालानी। कभी झूमते हुए तो कभी गाते हुए, किसी 3 साल के बच्चे की तरह। कला की यही ताक़त होती है। इस आयोजन का संदेश यही गया कि- धनाढ्य लोगों को सांस्कृतिक परम्पराओं की तरफ लौटना चाहिये। उनका 90वां जन्मदिन राजस्थानी लोक संस्कृति समारोह बनकर उभरा।

देखा जाए तो जीवन का असल अर्थ- धन कमाकर, भौतिक संसाधन जुटाना नहीं बल्कि देश और समाज को यथासंभव लौटाना है। फिर चाहे वो कला हो, संस्कृति हो या फिर कुछ और..। जब कोई ऐसा कर लेता है तो 90 साल की उम्र में भी वो बच्चों की तरह उमंग और उल्लास से भर जाता है। लालानी इसी उल्लास में भरकर गाते रहे, ठुमकते रहे। उनके जन्मदिन का कार्यक्रम बगैर किसी औपचारिकता के था, साथ ही प्रतिष्ठापूर्ण भी। इस कार्यक्रम में बीकाजी ग्रुप के शिव रतन अग्रवाल, मेघ राज सेठिया, सुमेर मल दफ्तरी, यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष महावीर रांका, पूर्व महापौर नारायण चौपड़ा, कन्हैया लाल बोथरा, चंपा लाल डागा, टी. आर. बोथरा, जतन लाल दुगड़, डॉ. जे. एम. मरोटी, डॉ. जी. एस जैन, लूणकरण छाजेड़, सोहन लाल बैद, युवा पत्रकार सुमित शर्मा, सीए, कई वकील, कारोबारी, कला-साहित्य-संगीत संस्थाओं के प्रतिनिधि और युवा शरीक हुए।

बहरहाल.. ‘विरासत’ संस्था के संस्थापक टी. एम. लालानी एक सफल कारोबारी, साहित्य, संगीत और कला-संस्कृति के उपासक हैं। वे फिल्मी गीतों, कहानियों और क्रिकेट जैसे विषयों की बारीक व्याख्या करने में कुशल हैं। वे कला सृजक, कला संप्रेषक, कलाकारों के मार्गदर्शक हैं। वे कलाकारों का सम्मान करते हैं और उनका संरक्षण भी। यहां तक कि कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बीकानेर में निजी वित्तीय संसाधनों से टी. एम. ऑडिटोरियम बनवाया है। जहां सालभर किसी अकादमी से भी ज्यादा कार्यक्रम होते रहते हैं। कला के ऐसे रसिक इंसान में उमंग-उल्लास होना लाजमी है, जिसे इस जन्मोत्सव के दौरान सबने देखा। कहते हैं कि कलाकार मन भोला होता है, इसी का फायदा उठाकर कला की जरा भी समझ न रखने वाले कुछ स्वार्थ सिद्ध लोग भी उन्हें घेरे रहते हैं। आख़िर ऐसे लोगों को भी कहीं तो निर्भर रहना ही होगा। लेकिन इससे लालानी जी को क्या ही फर्क पड़ता है? वे तो कला को जीते हैं, ख़ुश होते हैं, आगे बढ़ते हैं और संदेश देते हैं कि धनवान लोग भी कला संरक्षक बनकर अपने जीवन के मायने बदल सकते हैं।

लालानी जी ! आपमें कला के प्रति यह भाव हमेशा बरकरार रहे। जन्मदिन मुबारक। बार-बार दिन ये आए..

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