लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने ही वाली है। केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम बीकानेर संसदीय क्षेत्र से चौथी बार भाजपा से उम्मीदवार हैं। इस बार उनका मुक़ाबला कांग्रेस के गोविंद मेघवाल से है। चुनाव प्रचार को लेकर अर्जुन मेघवाल बेजा सक्रिय नज़र आ रहे हैं। वे अपने राजनीतिक चातुर्य से लोगों को लुभाने की हरमुमकिन कोशिश कर रहे हैं। बार एसोसिएशन में भी उन्होंने कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की है। उन्होंने बिना योजना और प्रस्तावों की स्वीकृति के बार एसोसिएशन में घोषणाएं डालीं और वाहवाही बटोर ली। वे ऐसे दनादन घोषणाएं कर रहे हैं, मानो ख़ज़ाने के मालिक वे ही हैं। बीकानेर कोर्ट परिसर में सेमिनार हाल बनाने का न तो बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव दिया और न ही ज्यूडिशरी की ओर से ऐसी कोई जरुरत बताई गई। मंच पर ही योजना बनी और घोषणा हो गई।
वहीं, महाराजा गंगा सिंह यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम में न्याय मंत्रालय की ओर से आयोजित कार्यक्रम में चंद्रचूड ने कहा कि “ई-कोर्ट फेज-3 में भारत सरकार ने सात हजार करोड़ रुपये का बजट दिया है। इसके माध्यम से बीकानेर में वीडियो कांफ्रेसिंग में सुविधा मिलेगी। बीकानेर में बसे हुए वकील भी हाईकोर्ट में अपनी बहस कर सकेंगे।”
यहां भी मेघवाल चतुराई से CJI को बीकानेर लाए और उनकी तरफ से यह घोषणा करवा दी। बार एसोसिएशन ने बीकानेर में वर्चुवल कोर्ट की घोषणा के बाद उनका सम्मान समारोह रखा। इस समारोह में भाषण के दौरान सेमिनार हाल के लिए दो करोड़ रूपए की घोषणा कर दी। थोड़ी ही देर में ही ये राशि बढ़ाकर ढाई करोड़ कर दी। बार के लिए ढाई करोड़ की लागत से एडवोकेट कॉन्फ्रेंस हॉल/सेमिनार हॉल का निर्माण, नई कोर्ट परिसर में 72 नये चैम्बर्स बनाने, अधिक्ताओं को जल्द ही इंश्योरेन्स कवर देने के साथ न्यायाधिकारी वर्ग के लिए मल्टी स्टोरी आवासीय परिसर की घोषणा की। उन्होंने मंच से कहा कि-
“मैने सेक्रेटरी से अभी बात करके यह राशि किसी भी मद से निकाल कर देने को कहा है।” बीकानेर के वकीलों के लिए चेंबर बनाने, ज्यूडिशरी ऑफिशियल्स के लिए भी वहां बैठे जजों से कहा कि “कोई आवश्यकता हो तो वो बीकानेर में न्यायलय इंफ्रास्ट्रक्चर की मद में धन देने को तैयार है।” तिस पर जज तो कुछ बोले नहीं। वकीलों ने कई मांगें और रख दीं। और तो और वकीलों को पेंशन का झुनझुना और थमा दिया। उनकी ये सब घोषणाएं चुनाव की खैरात या प्रलोभन जैसी लगी।
बीकानेर के वकील यह तो जानते ही हैं कि मेघवाल जहां भी जाते हैं, दिल खोलकर सांसद कोटे से घोषणा कर देते हैं। ये दीगर है कि कितने मामलों में घोषणा की राशि दी ही नहीं गई। कभी कोई घोषणा की राशि से सार्वजनिक काम के लिए स्वीकृति की ताकीद करता है, तो उल्टा पूछते हैं कि मैने घोषणा की थी क्या? प्रबुद्ध वकीलों को चुनाव के ऐनवक्त पर उनकी ये घोषणाएं कितनी पच पाती हैं, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन निश्चित तौर पर मेघवाल की ये घोषणाएं बुद्धिजीवियों के बीच बहस का मुद्दा ज़रूर बन गया है। राजनीतिक रूप से समर्थक वकीलों की प्रतिक्रिया से अलग भी लोग सवाल उठाने लगे हैं। आख़िर क्या आशय है इन घोषणाओं का? सवाल यह भी कि क्या अर्जुन राम की ये चतुराई वाकई वोट बढ़ा सकेगी?