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मेरी बात : ये ‘हत्या’ भारत के पत्रकारों की सुरक्षा पर तमाचा है

नये साल का आग़ाज़ हो चुका है। नये साल की खुमारी उतरी भी नहीं होगी कि एक ख़बर ने कई चेहरे उतार दिये हैं। ऐसी ख़बर, जो ‘हाड़ कंपा देने वाली सर्दी’ में रूह को भी कंपा दे। ख़बर है कि “छत्तीसगढ़ में एक पत्रकार की निर्मम हत्या कर सेप्टिक टैंक में चुनवा दिया।” पत्रकार की हत्या के पीछे की चौंकाने वाली वजह सामने आई है। बीजापुर के 33 साल के पत्रकार मुकेश चंद्राकार ने भ्रष्टाचार की पोल खोल दी थी। वे 1 जनवरी 2025 से ही लापता चल रहे थे। मुकेश एक नेशनल चैनल से जुड़े थे और ‘बस्तर जंक्शन’ के नाम से अपना डिजिटल न्यूज़ चैनल चलाते थे। ये वही पत्रकार थे, जिन्होंने साल 2021 में माओवादियों द्वारा अगवा किये CRPF जवानों की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तब राज्य पुलिस ने भी उनकी जमकर तारीफ की थी। मुकेश बस्तर क्षेत्र के संघर्ष, आदिवासी समुदाय के मुद्दे और अन्य स्थानीय समस्याओं पर रिपोर्टिंग करते थे। उनका यूं अचानक लापता होना.. सबको परेशान कर रहा था। लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था।

1 जनवरी बीत गई… 2 जनवरी भी बीत गई… लेकिन मुकेश चंद्रकार का कहीं पता नहीं चला। 3 जनवरी को पुलिस.. उनकी लास्ट लोकेशन ढूंढ़ते हुए एक ठेकेदार के घर पहुंची। वहां एक सेप्टिक टैंक पर ताज़ा-ताज़ा कंक्रीटीकरण किया गया था। पुलिस को शक हुआ तो टैंक को खुदवाया गया। इसके बाद जो मंजर दिखा, वो देखकर पुलिस की रूह भी कांप गई। इस सेप्टिक टैंक में मुकेश चंद्राकार का शव दफ्न था। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि शव की तसवीरें इतनी वीभत्स थीं कि उन्हें दिखाया नहीं जा सकता। अब सवाल यह उठता है कि जिसके घर मुकेश का शव मिला, वो ठेकेदार कौन था? मुकेश की हत्या क्यों और किसने की? इन सवालों के जवाब मुकेश के बड़े भाई युकेश चंद्राकर ने एक आरोप के तौर पर दिये हैं। उन्होंने बताया कि-

“मुकेश ने ठेकेदार सुरेश के खिलाफ भ्रष्टाचार की खबर को उजागर किया था। सड़क निर्माण में गड़बड़ी को लेकर मुकेश चंद्रकार की ठेकेदार सुरेश चंद्राकर से अनबन चल रही थी। इस रिपोर्ट के बाद मुकेश को लगातार धमकियां मिल रही थीं। इसका बदला लेने के लिये ही मुकेश की हत्या की गई है।”

आपको बता दें कि मुकेश चंद्राकर ने ठेकेदार के खिलाफ भ्रष्टाचार की रिपोर्ट 24 दिसंबर को NDTV के लिए की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक- “बीजापुर के गंगालूर से नेलशनार तक बन रही सड़क के निर्माण कार्य में काफी भ्रष्टाचार हुआ है. गंगालूर से हिरौली इलाके तक सड़कों पर कई गड्ढे भी थे. रिपोर्ट में बताया गया था कि सिर्फ एक किलोमीटर के दायरे में 35 गड्ढे थे. इसके अलावा सड़क निर्माण में इस्तेमाल हो रही सामग्री की गुणवत्ता काफी खराब बताई गई थी.

ये प्रोजेक्ट 120 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है. सड़क की कुल लंबाई 52 किलोमीटर है, जिसमें 40 किलोमीटर तक काम पूरा हो चुका है. इस रिपोर्ट के छपने के बाद जगदलपुर लोक निर्माण विभाग ने एक जांच कमिटी गठित की थी. इस रिपोर्ट में बीजापुर कलेक्टर संबित मिश्रा का भी बयान छापा गया था. कलेक्टर ने पीडबल्यूडी को गुणवत्तापूर्ण काम करने का आदेश दिया था. आरोप है कि इस प्रकरण के बाद मुकेश को लगातार धमकियां मिल रही थीं। जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई। पत्रकार मुकेश चंद्राकार की हत्या कई सवाल पूछने को मजबूर करती है, सवाल ये कि-

-पत्रकार मुकेश को जब धमकियां मिल रही थी, तो उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी गई?
क्या वाकई भारतवर्ष में ‘निडर पत्रकारिता’ एक जानलेवा पेशा बन चुका है?
-क्यों देश में पत्रकारों की सुरक्षा के लिये कोई नियम-कानून नहीं बनाए गये हैं?
-क्यों भारत के पत्रकार असुरक्षित और डरा हुआ महसूस करने लगे हैं?
-क्यों सेप्टिक टैंक में चुनवाने वाले, धमकाने वाले गुंडे… मुकेश जैसे युवा पत्रकारों के सपनों वाली पत्रकारिता को खा रहे हैं?
-क्या सच को सच लिखना, खुलकर लिखना एक जोखिमभरा काम हो गया है?
-क्या पूरे भारत में पत्रकार और पत्रकारिता की स्थितियां बहुत गंभीर हो चुकी हैं?

साल 2023 में आई रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की एक रिपोर्ट उपरोक्त बातों की तसदीक करती हैं। प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार- प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में भारत 161वें पायदान पर रहा. साल 2022 की तुलना में भारत की रैंक 11 स्थान नीचे गिरी है. वर्ष 2022 में भारत 150वें पायदान पर रहा था. इस प्रकार भारत उन 31 देशों में शामिल है, जहां पत्रकारों के लिए स्थितियां बहुत गंभीर हो चुकी हैं।

ये आंकड़े तो साल 2022, 2023 के हैं। देखते है साल 2025 में भारत में कैसी स्थितियां बनती हैं। वैसे, साल 2025 की तो अभी शुरुआत ही हुई है और पहली ही तारीख को बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकार को लापता कर दिया गया। 3 जनवरी को सेप्टिक टैंक में उनकी डेड बॉडी पाई गई। पत्रकारों के साथ हुई ज्यादती की यह साल की पहली तारीख़ की पहली घटना है।

पत्रकार मुकेश चंद्राकार की हत्या भारत के पत्रकारों की सुरक्षा पर तमाचा जड़ती है। ये फकत एक मुकेश की कहानी नहीं है बल्कि देश के हर छोर पर मौजूद हर सच्चे पत्रकार की कहानी है। जिन्हें ऐसे ही कई तरह के ‘ठेकेदारों’ से ख़तरा है।

Note- इस आर्टिकल पर अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर भेज सकते हैं।

2 COMMENTS

  1. इस ख़बर ने
    पत्रकार सुरक्षा कानून की
    बखिया उधेड़ कर रख दी है

    • ‘सुरक्षा कानून’ ने भी पत्रकारों की बखिया उधेड़ कर रखी हुई है।

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