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विमर्श : “पृथ्वी घूर्णन करती है।” इस सिध्दान्त को चुनौती !

“पृथ्वी घूर्णन करती है।” हमें और आप सबको यही बात पढ़ाई गई, बताई गई। इस बात को सार्वभौमिक सत्य भी कहा जाए, तो ग़लत नहीं होगा। लेकिन..कोई इस सत्य को चुनौती दे तो आप क्या कहेंगे? जाहिरी तौर पर यक़ीन करना मुश्किल होगा। वैसे यह भी एक सिद्धान्त है कि जब भी किसी वैज्ञानिक ने भौतिक विज्ञान के सिद्धांत दिये, तो सबसे पहले तो उनको नकारा ही गया था। उनका उपहास-आलोचना की गई लेकिन बात तर्कों की कसौटी पर सही साबित हुई तो अंततोगत्वा मानना ही पड़ा। यहां भी ज़रुरी नहीं कि आप यक़ीन करें लेकिन ‘पृथ्वी के घूर्णन सिद्धान्त’ को चैलेंज करने वाले बीकानेर के एक शिक्षक का तर्क तो जान ही लीजिये।

बीकानेर के इस शिक्षक का कहना है कि “पृथ्वी घूर्णन नहीं करती बल्कि पूरा ब्रह्माण्ड ही दोलनमय, चक्रमय, धड़कनमय और कम्पनमय है। ब्रह्माण्ड में ब्लैक हॉल, तारे, गैलेक्सी, ग्रह, उपग्रह, चन्द्रमा कैसे बनते हैं और कैसे नष्ट होकर वापस ब्रह्माण्ड का हिस्सा हो जाते हैं। यह सब पृथ्वी के दोलन के कारण ही होता है।”

उनका आगे कहना है कि “इस सिध्दान्त में यह माना गया है कि ब्रह्माण्ड में कुछ कॉमन है तो कुछ सिमिलर है तो कुछ सिमेट्रिक है। हां.. सब कुछ अलग-अलग नहीं है।”

इस शिक्षक के मुताबिक- पृथ्वी के घूर्णन सिद्धांत के विरुद्ध सिध्दान्त को प्रतिपादित करने वाली उनकी 3 पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं और 3 शोधपत्र छपे हैं। जिसमें देश-विदेश के वैज्ञानिकों की 56 पुस्तकों का संदर्भ दिया गया है। नासा के डेटा का भी उपयोग किया गया है। यह थ्योरी भारतीय भू सर्वेक्षण विभाग के हैदराबाद ट्रनिंग सेन्टर में भी प्रस्तुत की गई है।

अब आपको बताते चलते हैं कि वो शिक्षक कौन है। ये शिक्षक हैं- बीकानेर के अनिल थानवी, जो पिछले 38 वर्षों से इस शोध में लगे हैं कि पृथ्वी घूर्णन नहीं करती। पहली मर्तबा तो उनकी बात को सुना ही नहीं जाता। उन्होंने अपने दावे कई वैज्ञानिक संस्थाओं के समक्ष प्रस्तुत किए हैं। जहां कुछ विषय विशेषज्ञ ध्यान देते तो कहीं इसकी आलोचना होती है। पृथ्वी का व्यास 12,742 किमी. है और आप पृथ्वी के इस विशाल भीमकाय साइज़ की तुलना में पृथ्वी पर एक बहुत ही छोटे से स्थान पर खड़े होकर आसमान के थोड़े से मामूली हिस्से को देख कर कह रहे हो कि पृथ्वी घूर्णन कर रही है जो वैज्ञानिक रूप से असंगत है, अतार्किक है, एकदम ग़लत है क्योंकि हवाओं महासागरों के जल और बादलों की मूवमेंट को इग्नोर कर रहे हैं और साथ ही महाद्वीपों की आकृति को भी ध्यान नहीं दे रहे हैं तो फिर कैसे कह सकते हैं कि पृथ्वी घूर्णन कर रही है पृथ्वी तो ट्विस्ट व टाइट हो रही है। एक स्प्रिंग की तरह कसी और लूज हो रही है। पृथ्वी में द्रव्य व ऊर्जा का विराट मंथन हो रहा है, घूर्णन जैसा कुछ भी नहीं हो रहा है। यह पृथ्वी के दोलन की थ्योरी को अभी तक वैज्ञानिकों की कसौटी पर कसा जाना है परन्तु यह बात सही है कि वैज्ञानिक अध्ययनों और अवधारणों के स्तर पर यह सिध्दान्त परख मांगता है।

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