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विमर्श : अहिंसा परमो धर्म में समाहित प्रकृति चक्र की सुरक्षा

दुनिया हर साल ‘विश्व पशु कल्याण’ दिवस मना रही है। इस साल भी मना लिया गया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या हम सही मायनों में यह दिन मना रहे हैं? शायद नहीं। तभी तो हर साल जीव जंतुओं की संख्या घटती जाती है। कई जीव-जंतुओं, कीट-पतंगों और सूक्ष्म जीवों की सैकड़ों प्रजाति लुप्त हो गई हैं। इसका विपरीत असर मानव जीवन और प्रकृति चक्र पर पड़ता है। इसी से घबराया इंसान विश्व पशु कल्याण दिवस, राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, राज्य पशु राज्य पक्षी घोषित करता है। चलिये, यह भी ठीक है। लेकिन जहां एक तरफ विश्व पशु कल्याण दिवस मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ जनता को सरकार के खिलाफ खेजड़ी की कटाई और वन्य जीवों के शिकार को रोकने के मांग पर धरना देना पड़ रहा हैं। शर्मनाक ! कितनी विसंगति है सरकार के कहने और करने में।

हमारी संस्कृति को ‘अहिंसा परमो धर्मः’ वाली संस्कृति कहा गया है। लेकिन भगवान महावीर और बुध्द के इस उपदेश को भुलाकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जबकि इसी जीव दया और अहिंसा से ही हम प्रकृति चक्र को सुरक्षित रख सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। राज्य पशु ऊंट को तस्करी से कटने को ले जाया जाता है। राज्य वृक्ष खेजड़ी सरकार की आंखों के सामने कटी पड़ी है। हिरण का शिकार आम बात हो गई है। वन्य जीव-जन्तुओं और वनस्पति की संरक्षण स्थली गोचर का अन्य उपयोग प्रतिबंधित होने के बावजूद अन्य उपयोग हो रहा है। फिर क्या अर्थ हुआ प्रकृति बचाने के लिए प्रतीक दिन मनाने अथवा वन्य जीव जन्तुओँ और वनस्पति को बचाने के खातिर कानून बनाने का ? दिवस मनाने का औचित्य कितना रह जाता है। सरकारें, स्वयं सेवी संगठन और जनता सोचे तो सही।

वेटरनरी वि.वि. बीकानेर से जुड़े मेरे मित्र प्रोफेसर धर्म सिंह मीणा जो अभी पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय ) जयपुर, राजस्थान के अधिष्ठाता है का कहना है कि इस दिवस का उद्देश्य जानवरों के कल्याण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है, अत: जानवरों का कल्याण, उनकी सही देखभाल तथा उनके जीने अधिकारों को बचाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। इस दिन को ‘पशु प्रेमी दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है। विश्व पशु कल्याण दिवस 2024 की थीम इस बार ‘विश्व उनका भी घर है’ तय की गई है, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि पशु या जानवर भी हमारी तरह ही पृथ्वी के निवासी हैं वे हमारी संस्कृति और सभ्यता के वाहक है तथा हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं : अत: इस दिन उनके संरक्षण के लिए कुछ खास गतिविधियां और कार्यक्रम भी किए जाते हैं। ताकि जानवरों के प्रति प्यार, उनकी देखभाल और सुरक्षा को दुनियाभर को प्रोत्साहित करना है।

हमारी गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता के बावजूद मनुष्य जानवरों से भी भी खतरनाक हो गया है। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि अपने देश के लोगों की करुणा भी ग़ज़ब की है। अजब देश के ग़ज़ब लोग हैं। यहां चिड़ियों को गर्मी में पानी पिलाने के लिए कटोरा रखेंगे और शाम को ढाबे में जाकर तीतर, बटेर का मांस खाएंगे। लोग शेर, सियार ,मगरमच्छ आदि की लुप्त होती प्रजातियों पर चिंतित रहते हैं, लेकिन इसी बीच विलुप्त हो रही प्रजातियों की किसी को कोई चिंता नहीं है। कल को जब लुप्त हो वाली होगी, तब गाय बचाओ अभियान भी चलेगा, जैसे गंगा बचाओ अभियान चल रहा है । देश में हम लोगों का यही चरित्र बन गया है पहले हम गंदगी करते हैं फिर चिल्लाते हैं अरे देखो तो यहां कितनी गंदगी हो गई है , गंगा जब गटर बन गई तो उसे बचाने का अभियान चल रहा है, गंगा के साथ इतना दुव॔यवहार किसने किया क्या विदेशियों ने। उन लोगों ने ही तो किया जो पूणय कमाने के लिए गंगा में डुबकियां लगाते रहे । हम मुर्ख इंसान इन प्रतीकों को समझ ही नहीं सके जो हमारे पुरखों ने गढे। गंगा को माॅ कहा गया इसलिए की मां का ध्यान रखा जाए। भगवान कृष्ण के साथ गाय हैं ,मां सरस्वती के साथ हंस है, लक्ष्मी जी के साथ उल्लूका है ,मां दुर्गा के साथ सिंह है ,भगवान शंकर की सवारी नंदी बैल है ,राम के साथ वानर सैना है , कृष्ण भगवान भी गो प्रेमी थे ,विष्णु भगवान की शैया भी शेषनाग है, यमराज की सवारी भैंसा है, दत्तात्रेय के साथ स्वान और दूसरे जानवर है, ब्रह्मा जी के साथ गरुड़ है, गणेश जी के साथ चूहा है, सिर्फ इसलिए कि लोग पशुओं को भगवानों का वाहन समझ कर उनकी जान न ले सके ।

इसी तरह पर्यावरण को बचाने के लिए कितनी मनमोहक कथाएं घड़ी गई बरगद, पीपल ,नीम ,बेल, आंवला ,तुलसी आदि कितने ही पेड़ पौधे को पूजा से जोड़ दिया गया । नदियों और पर्वतों को पूजनीय बना दिया गया ताकि मनुष्य नदियों को साफ रख सके । लेकिन वाह रे मूढमति आधुनिक मानव हम इन सब बातों को समझ न पाये और सबको नष्ट करने पर तुल गये। मैं आश्चर्यचकित हूं कि ये पशु और पक्षी जिन्हें यदि संयोगवश सोचने और बोलने की क्षमता मिल जाए तो मनुष्य के बारे में क्या सोचेंगे और उसके बारे में क्या बयान देंगे, मुझे संदेह है कि उनका बयान हमारे प्रति सद्भावना पूर्ण होगा? अतः मित्रों अब समय आ गया है जब हमें इन बेजुबान पशु, पक्षियों के संरक्षण एवं संवर्धन पर आवश्यक रूप से ध्यान देना चाहिये, जिससे कि हमारा समाज एक सभ्य और सुसंस्कृत, आधुनिक समाज बन सके।

साभार प्रोफेसर धर्म सिंह मीणा

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