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विमर्श: रिखबदास बोड़ा की राजनीति आज के नेताओं के लिये सीख

बीकानेर के बीजेपी नेता रिखबदास बोड़ा इस फानी दुनिया से रुख़सत हो गए। सियासत का हिस्सा होते हुए भी उन्होंने कभी अपने स्वाभिमान और सम्मान से समझौता नहीं किया। जनसंघ से लेकर भाजपा तक की यात्रा तक वे पार्टी की सेवा में लगे रहे। जनसंघ के नेता रहे। वाजपेयी, आडवाणी के साथ काम किया। आपातकाल के दौरान पुलिस उन्हें ढूंढ़ती रही लेकिन वे पुलिस की पहुंच से दूर रहे। आपातकाल के दौरान वेश बदल-बदलकर ख़ुद को छिपाते रहे। एक बार तो वे साधु के वेश में नज़र आए। फिर आपातकाल के बाद 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता के रूप में सम्मान मिला। तत्कालीन सरकारों के ख़िलाफ़ ख़ूब संघर्ष किया। कई जन आंदोलनों में अग्रणी रहे। संघर्ष किया, जनता की आवाज़ बने। उन्होंने भाजपा को ‘भाजपा’ बनाया।

सियासत के इतर उनके व्यक्तित्व की ख़ासियत थी कि वे जनता, अपने साथियों और पत्रकारों के साथ विनम्रता का व्यवहार रखते थे। उनमें न तो भाजपा के ‘राज’नेता होने की फूंक थी और न ही भैरोंसिंह के निकट होने का गुमान। उनके व्यक्तित्व में जो गहराई थी, वो आज की पीढ़ी के राजनेताओं में देखने को नहीं मिलती। आज के नेता न तो जनहित के मुद्दों को लेकर फिक्रमंद हैं और न ही ऐसी राजनीति को लेकर। वैसे, सवाल मौजू है कि जननेता कौन होता है? वही न, जो जनता की आवाज़ बने। दूसरों के सहारे कोई नेता बना हों, तो बताएं। ऐसे राजनेताओं को ख़ुद से सवाल पूछना चाहिये कि क्या वे सही मायनों में जननेता हैं? क्या वे जनहित के मुद्दों की राजनीति कर रहे हैं?

बहरहाल, रिखबदास बोड़ा ने न तो कभी बड़े पद के लिये गुणा-गणित लगाई और न ही पावर-प्रतिष्ठा के लिये जोड़-तोड़ की। न कभी चापलूसों में शुमार हुए और न ही पिछलग्गू बनने वालों में शामिल। जनहित की आवाज़ उठाने में उन्हें न किसी विधायक के साथ की जरुरत होती थी और न ही वे किसी सांसद का मुंह ताकते थे। तब जनता के हक़ की बात खटाक से रखने का सामर्थ्य किसी में था तो फकत उन्हीं में था। यहां तक कि भैरोंसिंह शेखावत से निकटता के बावजूद, मजाल कि वे उनसे कोई अरदास लगाते देखे गए हो। शेखावत के राजस्थान की राजनीति के शिखर पर होने के दौरान भी वे कभी पद की लालसा में उनके पास नहीं गए। उल्टा, जनहित के मुद्दों पर खरी-खरी ज़रूर कह देते थे। शेखावत उनकी इस ख़ूबी का बड़ा सम्मान करते थे। बोड़ा ने हमेशा साधारण जीवन जीना मंजूर किया लेकिन राजनीति का कोई फायदा नहीं उठाया। जनहित के मुद्दों से दूर रहने वाले नेताओं को आख़िरी समय तक तरजीह नहीं दी। यह भी एक सच है कि उनके अंतिम दिनों में पार्टी और बड़े नेताओं ने उनकी कोई सुध नहीं ली।

बहरहाल, बोड़ा पार्टी की सेवा करने की पहचान लेकर और आदर्श नेता की साख कमाकर गए हैं। उन्हें राजनीति में नैतिकता और मूल्यों को तरजीह देने वाले नेता के तौर पर याद किया जाएगा। जनता के दिलों में वे एक सितारे की भांति हमेशा टिमटिमाते रहेंगे। शायद इसीलिये केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम, देवी सिंह भाटी, पार्टी के विधायक और पदाधिकारी उनके कृतित्व को नमन कर रहे हैं।

उन्हें हमारा भी नमन।

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