विमर्श – नोखा पालिकाध्यक्ष उलटफेर प्रकरण : एक लोकतांत्रिक विकृति जैसा

कहने को नोखा भले ही एक तहसील हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति में इसकी अपनी पहचान है। नोखा नगर पालिका की कार्य प्रणाली तो पूरे प्रदेश में जानी जाती है। फिलवक़्त, यहां विधायक की कुर्सी पर कांग्रेस की सुशीला डूडी काबिज हैं। वहीं, बीजेपी से बिहारी लाल विश्नोई, कन्हैया लाल सियाग, श्रीनिवास झंवर, आसकरण भट्टड़, विकास मंच से कन्हैया लाल झंवर, नारायण झंवर, सीता राम पंचारिया समेत कई लोग सक्रिय राजनीति में है।
खैर, मुद्दे पर लौटते हैं। बीते महीने नारायण झंवर को नोखा नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिये अयोग्य घोषित किया गया था। अब हाईकोर्ट ने एडीजे कोर्ट के फैसले को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया है। नारायण ने फिर से पालिकाध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया। सवाल उठता है कि उन्हें हटाने के लिए नोखा एडीजे कोर्ट में याचिका दाखिल किसने की? आखिर उनका मंतव्य क्या था? नगर पालिका के उपाध्यक्ष निर्मल भूरा ने आख़िर पासा कैसे पलटा? ये सब राजनीतिक विश्लेषण के बिन्दु हैं। फिलहाल, एडीजे कोर्ट को सभी आवश्यक दस्तावेज एक सप्ताह में देने के निर्देश दिए हैं। यह तो कोर्ट की प्रक्रिया है। जो चलती रहेगी।
नोखा के इस प्रकरण को सत्ता के दुरुपयोग और राजनीतिक जोड़-तोड़ का विकृत उदाहरण कहा जा सकता है। फिर चाहे ऐसा काम सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों द्वारा ही क्यों न किया जाए। लोकतंत्र में नेता उन्हें कहा जाता है, जो जनता का प्रिय हो और जनता द्वारा चुना जाए। बाक़ी राजनीतिक गठजोड़, सत्ता के दुरुपयोग से उठा पटक और खरीद फरोख्त की राजनीति से सत्ता हथियाना लोकतंत्र की विकृति है। ऐसी राजनीति करने वालों को मंथन करना चाहिये कि जनता के बीच उनकी कैसी छवि है? नोखा नगर पालिका की सत्ता हथियाना की चाहत रखने वालों की जनता में कितनी पैठ है? उन्हें सोचना चाहिये कि इस उठा-पटक से जनता में कितना ख़राब संदेश गया है। किसकी प्रतिष्ठा गिरी और किसके प्रति सहानुभूति बढ़ी है। इसके पीछे का ध्येय अगले पालिका चुनाव में सत्ता हथियाने की कहीं व्यूह रचना तो नहीं है? खैर जो भी हो जनता में एक संदेश गया है। इसका असर आगे आने वाले पालिका चुनाव पर होना तय है।
खैर, अगर सत्तासीन पार्टी नोखा नगर पालिका की सत्ता पर काबिज होना चाहती है तो उसे जनता में अपनी पैठ बनानी चाहिये। वो चुनाव जीते और अध्यक्ष बने। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है, जब जनसेवा की भावना हो, समर्पण हो। फकत किसी राजनीतिक दल का झण्डा किसी को लोकप्रिय नेता नहीं बना सकता। इसके लिए जनता के बीच रहकर.. उसके लिये काम करना पड़ता है। अपने आपको खपाना पड़ता है। नोखा नगर पालिका का यह घटनाक्रम स्वच्छ राजनीति का परिचायक नहीं है। जिम्मेदार लोगों को छिछोरी राजनीति शोभा नहीं देती। हर कोई लोकतंत्र में खुद की जिम्मेदारी को समझना चाहिये, तभी यह लोकतंत्र मजबूत होगा।