
(संवाद – हेम शर्मा, सुमित शर्मा।)
(सहयोगी- महेन्द्र सोनावत, मोहन सुराणा, तोलाराम बोथरा)
भारतवर्ष.. जिसमें 28 राज्य और 8 केंद्र शासित राज्य हैं, उन राज्यों में एक राज्य है- राजस्थान। राजस्थान में भी 41 ज़िले हैं, जिसमें से एक ज़िला है- बीकानेर। बीकानेर भी कई तहसीलों, गांवों जैसी जगहों में बंटा है। उन जगहों में से एक जगह है- भीनासर। वैसे गंगाशहर-भीनासर की पहचान..हमेशा से ही जैन संतों, जैन धर्मावलम्बियों और स्वामी रामसुखदास जी की धरा के तौर पर रही है। साधुमार्गी जैन संघ का राष्ट्रीय कार्यालय भी यहीं है।
फिलहाल साधुमार्गी जैन संघ के नवें पट्टधर- आचार्यश्री रामलाल महाराज यहीं के ‘जैन जवाहर विद्यापीठ’ में प्रवास कर रहे हैं। ऐसे में पूरे देश का ध्यान इस छोटी सी जगह ‘भीनासर’ की तरफ केंद्रित है। जहां हज़ारों लोग.. हर रोज़ आचार्यश्री के प्रवचन सुनने आते हैं। महाराज साहब के साथ.. परम्परानुसार संतों की टोलियां भी हैं। इन्हें महाराज साहब का पूरा सान्निध्य मिलता है। इन संतों में ‘सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चरित्र’ से राष्ट्र को ओत-प्रोत करने का संकल्प साफ देखा जा सकता है। इस तरह ‘जैन जवाहर विद्यापीठ’ का पूरा परिसर.. श्वेत, शांत और ‘राष्ट्रीय चरित्र’ की भावना से सराबोर नज़र आता है। जिसे कोई भी चिंतनशील व्यक्ति बड़ी आसानी से पढ़ सकता है।
आज जब पूरे संसार में क्रोध, विरोध, प्रतिशोध, अशांति और हिंसा की आग धधक रही है, उसी दौर में ‘समता के सिध्दान्त’ का बिगुल भी बज रहा है। जब कोई महाराज साहब से पूछता है कि “आचार्यश्री ! समतापूर्ण जीवन कैसे जीया जा सकता है? कैसे सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है?”
..तो महाराज जी सरलता से जवाब देते हैं कि “आज पैसा, पद और मान-प्रतिष्ठा की भोगपूर्ण प्रवृति ने आध्यात्मिक मूल्य और जीवन पध्दति को हाशिये पर ला दिया है। अब लोग जीवन जीने के लिये नहीं, बल्कि धन कमाने के लिये शिक्षा लेते हैं। यही विडम्बना है। लोग सही दिशा में ‘सामंजस्य’ अपनाने के लिये कितने तैयार हैं?”
उनकी बात सटीक थी।
खैर, आचार्य राम लाल जी का सान्निध्य पाने के ल़िए हम जवाहर विद्यापीठ में काफी देर तक संतों के बीच रहे। थोड़े इंतज़ार के बाद संवाद का अवसर पाया। उनसे संवाद के दौरान कई सवालों के जवाब पाये। हमने वहां स्वाध्याय, चिन्तन, तप और साधना रूपी एक अलग संसार देखा। हमने पाया कि विरक्ति का अपना अलग संसार होता है। संतों का आचार-विचार और व्यवहार को क़रीब से देखा-जाना। मांगलिक सुनी। हम जितनी देर भी वहां रुके, एक अद्भुत अनुभव महसूस किया। साधुमार्गी संत.. मानव कल्याण की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर श्रावकों और श्रावक समाज को बोध देते हैं। संसार से विरक्त, आध्यात्मिक चिन्तन और चेतना में मगन। आचार्यश्री के साथ संवाद में कोई औपचारिकता नहीं। शायद इसीलिये यह जयघोष गुंजायमान रहता है-
हु शी ऊ चौ श्री ज ग नाना
राम चमक रहे भानु समाना।
विज्ञान और तकनीक के इस युग में जब दुनिया बदल रही है। तो वहीं दूसरी तरफ ये संत समाज माइक का उपयोग नहीं करता। बिजली और इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से दूर रहते हैं। यहां तक कि जूते-चप्पल भी नहीं पहनते, चाहे मीलों चलना हो, पैदल ही विहार करते हैं। इनकी जीवन शैली कड़े नियमों में बंधी है, लेकिन ये सहजता से उसकी पालना करते हैं। धर्म संघ कठोर नियमों में बंधा है, बावजूद इसके साधु-संतों की संख्या बढ़ रही है। यह क्या मनोविज्ञान है? मनन करेंगे तो पाएंगे कि जीवन भोग-विलास के लिए नहीं है बल्कि तप और आध्यात्मिक चिन्तन को अपनाने में है। सच्चे वैरागी इसी ज्ञान को जानकर इस तरफ खींचे चले आते हैं।
आचार्यश्री से जनहित में सच्ची पत्रकारिता पर.. सत्तारुढ़ लोगों के नकारात्मक व्यवहार की घटना का उल्लेख कर जवाब जानना चाहा तो वे बोले कि “आज़ादी के समय भी तो पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार होता था। आख़िर जीत तो सत्य की ही हुई न? सत्य का पथ सरल थोड़े ही है। इस पथ पर तो यह सब सहना ही पड़ेगा। लेकिन सत्य के पथ पर तो चलते रहना चाहिए।“ आचार्यश्री ने धर्म संघ की ओर से चलाए जा रहे प्रकल्पों के बारे में बताया साथ ही समाज और राष्ट्र के प्रति धर्म संघ की भावनाओं से अवगत करवाया।