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विमर्श : अगर राजनेता बनना है, तो सुन लो..

राजनीति का असल अर्थ है- जनता के हितों के अनुरूप सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा करना । आज का मेरा यह ‘विमर्श’ राजनीति उन लोगों के लिये है, जो या तो राजनीति करना चाह रहे हैं या कर रहे हैं। इसमें न तो किसी की निंदा है और न ही किसी की प्रशंसा। हां, बरसों से राजनीति करने वालों का हित जरूर समाहित है।संकल्प ये कि जो राजनीति की चाह वाले लोग समाज का हित साधे और ख़ुद भी जनता के आशीर्वाद से उन्नति को पायें।…और यह बात मैं अपने पत्रकारिता जीवन के अनुभव के आधार पर.. बेहद ही विनम्रता से कह रहा हूं।

मित्रो ! मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे सैंकड़ों युवाओं और प्रौढ़ को जानता हूं जो बीजेपी, कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दलों से जुड़े हैं। ये लोग बरसों से नेतागिरी कर रहे हैं लेकिन न तो उनकी कोई पैठ बन सकी है और न ही कोई आधार। जनता का प्यार पाना तो बहुत दूर की बात है। उसी तरह कुछ ऐसे सफ़ेदपोश नेता भी हैं, जो अपने स्वार्थ के लिए राजनीति की आड़ लेते हैं। बड़े नेताओं के नज़दीकी बनकर.. नियमों को ताक में रखकर.. बड़े ‘प्रोजेक्ट’ लेना, सियासत की आड़ में सट्टेबाज़ी, ठेकेदारी, जमीनों की ख़रीद-फरोख्त, हवाला, बुकी जैसे वे काम करना, जिनके लिये राजनीतिक संरक्षण, पैठ और पहचान की ज़रुरत रहती है। ये तो स्वार्थसिद्धि हुई न? इसमें जनहित की राजनीति कहां समाहित है?

कई लोग बरसों से अपने नेता, अपनी पार्टी के लिये काम करते आ रहे हैं। समय, श्रम और पैसा ख़र्च करते आ रहे हैं। यहां तक कि त्योहारों के दिन भी अपने नेताओं, पार्टियों के लिये सक्रिय रहते हैं। बावजूद इसके, राजनीति की दुनिया में.. वे जहां थे, आज भी वहीं के वहीं है। कुछ चतुर लोग अपने काम के लिये उनकी झूठी तारीफ़ कर देते हैं, जिससे प्रभावित होकर वे मुग्ध हुये फिरते हैं। इस तरह उनके समय, श्रम और धन का फायदा वे पार्टियां या नेता ले जाते हैं, जिनसे उन्हें उम्मीदें हैं कि वे उन्हें टिकट, पद और प्रतिष्ठा दिलाएंगे ! उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं रहता कि ये वो मृग तृष्णा है, जो कभी पूरी नहीं हो सकती। वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेंगे, त्यों-त्यों ये ‘पानी’ भी आगे बढ़ता जाएगा। सब यूं ही चलता जाएगा और समय बीतता जाएगा। अंततोगत्वा हासिल क्या होगा है? कुछ भी नहीं।

ऐसे युवा/प्रौढ़ ‘नेता’ मिलते हैं तो कहते हैं कि-
“ऊपर तक पहुंचने के लिये कोई न कोई सीढ़ी की तो ज़रुरत पड़ेगी न?”
“कुछ पाने के लिये कुछ तो खोना पड़ेगा ही न?”
“..फिर आप ही बताइये- करें तो करें क्या?”

तो उन सबके लिये एक ही जवाब है- राजनीति को उसकी परिभाषा के मुताबिक जीना। परिभाषा यह कि ‘जनता के हितों के अनुरूप सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा करना।’ ये हकीकत है कि जिन लोगों को राजनीति करनी है, उन्हें जनहित के मुद्दों, जनता की पीड़ाओं और जरुरतों पर काम करना पड़ेगा। तभी असली जननेता कहला पाएंगे। यही वो रास्ता है, जिससे उनकी पैठ बनने लगेगी। सत्ता, संगठन और जनता उनको तवज्जो देगी। इस बात पर यक़ीन न हो तो उन कामों को केस स्टीडी के तौर पर रिसर्च कर लो, जिन्होंने जनता पर असर छोड़ा। ज्यादा दूर नहीं तो ऐसे नेताओं से ही समझ लो, जिन्हें आप व्यक्तिगत रूप से जानते हो। पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी, माणिकचंद सुराणा, कन्हैयालाल झंवर जैसे कई उदाहरण मिल जाएंगे।

भलूरी में लोगों के घर आग से स्वाहा हो गए, तो देवीभाटी ने आवाज़ बुलंद करके बगैर सरकारी सहायता के लोगों के घर बनवा दिए। गोचर, ओरण संरक्षण की अगुवाई की तो सरकार को पूरे प्रदेश में गोचर, ओरण से अतिक्रमण हटाने के आदेश जारी करने पड़े। गोचर पर अतिक्रमण होने लगे तो सरेह नथानिया गोचर की 40 किलोमीटर की दीवार बनाने का काम शुरू किया। गहलोत सरकार के काम रुकवाने के आदेश के बावजूद कमोबेश आधी दीवार बन गई। इतना ही नहीं, हाल ही जब ढिंगसरी गांव की राष्ट्रीय फुटबाल विजेता बालिकाओं के प्रोत्साहन के लिये न तो सरकार और न ही ज़िला प्रशासन ने पहल की, तो भाटी ने आवाज बुलंद की। बच्चियों का सम्मान कर उन्हें प्रोत्साहन के तौर पर 17 लाख 83 हजार रुपये भेंट किये। इसी तरह मानिक चंद सुराणा जीवनभर जनहित के मुद्दों पर लड़ते रहे। कन्हैया लाल झंवर ने अपनी राजनीति जनहित को समर्पित की।

…तो ये है जनहित के मुद्दों की राजनीति। ये नेता कभी किसी पार्टी या नेताओं के पिछलग्गू नहीं रहे बल्कि मुद्दों की राजनीति की। इसीलिये जनता ने हमेशा इन्हें अपना सिरमौर बनाया। आज ज़रुरत है तो ऐसी राजनीति करने की। आपको राजनीति करने का तरीक़ा बदलने की जरुरत है। हर शहर, हर गांव, हर ज़िले में ऐसी कई समस्याएं हैं, जिन पर राजनीति की नज़र नहीं जाती। कई बार जाती भी है तो कभी सियासी समीकरणें तो कभी स्वार्थ आड़े आ जाते हैं। लेकिन आख़िरकार नुक़सान तो जनता का ही होता है। आपको बस उसी नुक़सान को बचाना है। अपने प्रयासों से जनता के हितों के अनुरूप सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा करना है। अगर आप ऐसा करने में सफल हुए और बार-बार सफल हुये तो आपको किसी बड़े नेता, बड़ी पार्टी या बड़े वरदहस्त की ज़रुरत नहीं होगी। आप ख़ुद में ही संपूर्ण होंगे, एक अच्छा नेता बनने के उद्देश्य में।

पढ़ने के बाद सोचियेगा ज़रूर।

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