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विमर्श : आख़िर कैसे रुकेगा जन स्वास्थ्य से खिलवाड़?

हमारे खान-पान में भोजन के सबसे क़रीब कुछ है, तो वो दूध ही है। दूध में ज़रुरी घटक द्रव्य मौजूद होते हैं। इसीलिये इसे स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। अगर इन्हीं गुणों का धारक दूध, दही, मक्खन और घी मिलावटी हो तो जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कहा जाएगा? हो यही रहा है। मिलावटी या केमिकल से दूध बनाकर बाजार में गाय-भैंस के दूध के नाम से बेचा जा रहा। बीकानेर में उरमूल डेयरी की ओर से व्यास कॉलोनी और अन्य क्षेत्र में दूध के लिए गए नमूनों की जांच में कमोबेश 70 प्रतिशत नमूनों में दूध मानक नहीं पाया गया। यानी बीकानेर में अधिकांश दूध नक़ली बिकता है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से त्योहारों के मौके पर दूध, घी, मावा आदि के नमूने मिलावटी पाए जाने पर क्विंटल में नष्ट करवाया जाता रहा है। उरमूल डेयरी ने उपभोक्ताओं से दूध के नमूने लेकर जांच से घटिया और मिलावटी दूध बेचे जाने का खुलासा किया है। अब यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं रही। क्योंकि दूध में मिलावट होना एक आम बात हो गई है। हैरानी तो इस बात की है कि मिलावटी दूध पर स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन क्यों चुप्पी साधे है? क्या जन स्वास्थ्य के साथ यूं ही खिलवाड़ होता रहेगा? शुद्ध के लिए युद्ध, दूध का दूध पानी का पानी कागजी अभियान चलाकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा। कितनी बड़ी विडंबना है कि जो दूध स्वास्थ्य सुधार के लिए पीया जाता है, वही दूध जन स्वास्थ्य के लिए घातक बन गया है। कोई रोकने वाला नहीं है। उरमूल डेयरी के नमूनों की जांच के बाद स्वास्थ्य विभाग ने क्या एक्शन लिया? जिला कलक्टर क्या करती रही? अधिकारी ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. मानो उनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। योजनाओं की समीक्षा और मीटिंगों के अलावा भी प्रशासन की जनहित में कोई जिम्मेदारी होगी? दूध के अमानक नमूने दरअसल प्रशासन की गैरजिम्मेदारी का प्रमाण है। स्वास्थ्य विभाग और कलक्टर को तुरंत एक्शन में आना चाहिए। यह जन स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। यह समस्या बीकानेर जिले की ही नहीं है, बल्कि कमोबेश पूरे देश की है।

एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश में शुद्ध दूध, दही, मक्खन, छाछ और घी का बहुत प्रति इकाई उपभोग की तुलना में कमी है। इस कमी को गाय, भैंसों का दूध देने का सामर्थ्य बढ़ाकर पूरा किया जा सकता है। इसके लिए सरकार को नीति बनानी होगी। गोपालन को प्रोत्साहित करना होगा। लोगों को घरों में गाएं रखनी होंगी। गाय-भैंस को पर्याप्त चारा मिले, इसके लिए गोचर संरक्षण और चारा उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। तभी बच्चों के स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त और पुष्टिकर दूध मिले सकेगा। प्रशासन की जागरुकता, सरकार का नीति-निर्धारण और आम लोगों का गोपालन के प्रति रुझान से ही अमानक दूध से निजात मिल सकती है। इसके लिए सामूहिक प्रयास की नितांत आवश्यकता है। मिलावटखोरों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई होनी चाहिये, नहीं तो जन स्वास्थ्य के साथ यह खिलवाड़ रुकने वाला नहीं है। साथ ही, जनता को भी दूध की समय-समय पर जांच करवाकर उपभोग करने की आदत डालनी चाहिये। हर स्तर पर मिलावटखोरों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। दूध में मिलावट सामूहिक प्रयासों से ही रोकी जा सकेगी। बेशर्ते, सरकार और प्रशासन एक्शन मोड में आ जाए।

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