हाल ही जेरोधा के कॉ-फाउंडर निखिल कामत ने पीएम नरेंद्र मोदी का पॉडकास्ट इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू में मोदी ने ‘राजनेता’ की परिभाषा समझाते हुए कहा कि- “राजनेता होना और सफल राजनेता बनना 2 अलग-अलग चीजें हैं। राजनेताओं को जनता के प्रति समर्पित, प्रतिबद्ध होना चाहिए। अच्छे और बुरे दोनों समय में अपनी जनता के साथ रहना चाहिए। उन्हें टीम के खिलाड़ी की तरह काम करना चाहिए। आप खुद को सबसे ऊपर मानते हैं। यह भी चाहते हैं कि हर कोई आपका अनुसरण करें। हो सकता है कि आप चुनाव जीत जाएं, लेकिन ये जीत इसकी गारंटी नहीं देती कि आप एक सफल राजनेता होंगे।”
एक सवाल यह भी है कि मोदी की इस परिभाषा पर उनकी पार्टी के नेता कितने फिट हैं? सबकी बात से पहले.. बात बीकानेर के हमारे राजनेताओं की। यह सवाल बीकानेर सांसद से लेकर.. राजस्थान सरकार में मंत्री सुमित गोदारा तक, विधायक डॉ. विश्वनाथ से लेकर सिद्धि कुमारी, जेठानंद व्यास से लेकर ताराचंद सारस्वत और अंशुमान सिंह भाटी तक सबसे पूछा जाना चाहिये। अव्वल तो उन्हें ख़ुद ही आत्मविश्लेषण कर लेना चाहिये कि वे अपने प्रधानमंत्री द्वारा दी गई परिभाषा पर कितना खरा उतरते हैं? इस विश्लेषण से उन्हें ख़ुद-ब-ख़ुद निम्न सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
– सवाल यह कि क्या हमारे ‘राज’नेता जनता के लिए समर्पित और प्रतिबद्ध हैं?
– सवाल यह कि क्या हमारे ‘राज’नेताओं को जीत के असली मायने मालूम हैं?
– सवाल यह कि क्या बीकानेर के बीजेपी नेता एक टीम के खिलाड़ी की तरह काम करते हैं ?
– सवाल यह कि बीकानेर के ‘राज’नेता उनकी परिक्रमा करने वालों की सुनते हैं या आमजन का भी सम्मान करते हैं?
– सवाल यह कि क्या वाकई बीकानेर में उनकी पार्टी के भीतर टीम भावना है या नेता आपसी गुटबाजी से जूझ रहे हैं?
– सवाल यह कि बीकानेर में ‘रेलवे फाटक, अधूरी रिंग रोड, ड्राईपोर्ट, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, गैस पाइप लाइन, सिरेमिक्स उद्योग, शिक्षा हब’ जैसे मुद्दों पर ज़मीनी स्तर पर कभी काम भी होगा?
हो सकता है कि सवाल थोड़े मुश्किल हों, लेकिन इनके जवाबों से यह तय हो जाएगा कि हमारे नेता अपने शीर्ष नेतृत्व की सोच के मुताबिक हैं कि नहीं। अगर हमारे राजनेताओं को इन सवालों के जवाब मिल जाए तो पीठ थपथपाने वाली बात होगी। ..और नहीं तो हमें यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं कि पीएम मोदी की उक्त परिभाषा के आस-पास भी हमारा कोई नेता नहीं आता।
सभी 6 सवाल वाकई काबिले तारीफ़ हैं।