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विमर्श : सरकारें ‘गो आधारित कृषि नीति’ बनायें

अब समय आ गया है कि सरकारें गो आधारित कृषि नीति बनाएं। गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने की नीति अपनाने से गोबर और गोमूत्र रसायनिक खेती का विकल्प बन सकेगा। इससे मृदा क्षरण और रसायनिक खेती के चलते होने वाले पर्यावरण प्रदूषण और खाद्यान्नों में रसायनिक दुष्प्रभावों को रोका जा सकता है। गो आधारित उद्यमिता विकास से देश में एक नया उद्योग क्षेत्र स्थापित हो सकेगा। राजस्थान गो सेवा परिषद ने वेटरनरी वि.वि. बीकानेर के साथ एक एमओयू के तहत गोबर और गोमूत्र का गो आधारित उद्यमिता विकास की दिशा में काम कर रही है। इसमें वैज्ञानिक तरीके से गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने का कांसेप्ट नोट राजस्थान सरकार, भारत सरकार के नीति आयोग को भी भेजा गया था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि वि.वि., केवीके, कृषि मंत्रालय और सरकारें इसकी उपादेयता और महत्ता को बताती रही है। केंद्र और राज्य की सरकारें ऐसी नीति बनाए, जिससे गोधन आधारित कृषि को बढ़ावा मिल सके।

एक रिपोर्ट के अनुसार, गोबर के प्रयोग से फसलों में वृद्धि की दर कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि मिट्टी की प्रकृति, फसल की प्रकृति, गोबर की मात्रा और गुणवत्ता, और अन्य कृषि प्रबंधन प्रथाओं का पालन। आमतौर पर, गोबर के प्रयोग से फसलों में 10-30% तक की वृद्धि संभव हो सकती है। गोबर के प्रयोग से फसलों में वृद्धि के कुछ मुख्य घटक हैं-

  1. पोषक तत्वों की उपलब्धता: गोबर में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो कि फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं।
  2. मिट्टी की संरचना में सुधार: गोबर मिट्टी की संरचना में सुधार करता है, जिससे मिट्टी की जल धारण क्षमता और वायु प्रवाह में सुधार होता है।
  3. सूक्ष्मजीवों की वृद्धि: गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव मिट्टी में जमा हो जाते हैं और मिट्टी को अधिक उर्वर बनाते हैं।
  4. फसलों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: गोबर के प्रयोग से फसलों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे वे रोगों और कीटों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं।

गोबर के प्रयोग से फसलों में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कुछ सुझाव हैं:

  1. गोबर की मात्रा और गुणवत्ता का ध्यान रखें: गोबर की मात्रा और गुणवत्ता का ध्यान रखें और इसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाएं।
  2. मिट्टी की प्रकृति के अनुसार गोबर का प्रयोग करें: मिट्टी की प्रकृति के अनुसार गोबर का प्रयोग करें और इसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाएं।
  3. फसलों की प्रकृति के अनुसार गोबर का प्रयोग करें: फसलों की प्रकृति के अनुसार गोबर का प्रयोग करें और इसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाएं।
  4. गोबर के साथ अन्य कृषि प्रबंधन प्रणालियों का पालन करें: गोबर के साथ अन्य कृषि प्रबंधन प्रथाओं का पालन करें, जैसे कि मिट्टी की जुताई, फसलों की सिंचाई, और फसलों की देखभाल।

इन सुझावों का पालन करके गोबर के प्रयोग से फसलों में वृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं और अपनी फसलों की पैदावार में वृद्धि कर सकते हैं। गोधन आधारित खेती परम्परागत रही है। यह वैज्ञानिक सिद्ध भी है। आएसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र इस खेती का महत्ता बताते है। यह खेती परम्परागत भी है। देश प्रदेशों का कृषि विभाग भी जैविक खेती बढ़ाने की तरफदारी कर रहा है। फिर सरकारें गो आधारित कृषि नीति बनाने में देरी क्यों करती है?

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