विमर्श : गहलोत साहब ! आप सही मौक़े पर बीकानेर आ रहे हो

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 30 जुलाई को बीकानेर आ रहे हैं। बीकानेर की जनता को उनके इस दौरे से काफी उम्मीदे हैं। गहलोत तब बीकानेर आ रहे हैं, जब राज्य वृक्ष ‘खेजड़ी’ को बचाने की सभी कोशिशें बारी-बारी से नाकाम हो रही हैं, जब प्रशासन.. सत्ता का पिछलग्गू और निठल्ला बना हुआ है। जब सरकार में न सुनवाई हो रही और न ही संवेदना बची है। जब सरकार से ज्यादा विपक्ष सशक्त हो चुका है। ऐसे समय में किससे उम्मीद लगाई जाए? जाहिर सी बात है- विपक्ष से ही। और जब विपक्ष के सिरमौर खुद गहलोत साहब बीकानेर आ रहे हैं, फिर तो कहना ही क्या।
बीकानेर में राज्य वृक्ष खेजड़ी की अंधाधुंध कटाई हो रही है। सरकार और प्रशासन चुप्पी साधे बैठे हैं। मरूस्थल की वानस्पतिक पारिस्थितिकी तंत्र में खेजड़ी का कितना महत्व है, ये बताने की जरुरत नही हैं। इसी महत्व के चलते, इसे बचाने, संर्वधन, संरक्षण के लिये इसे ‘राज्य वृक्ष’ का तमगा दिया गया था। खेजड़ी की उपयोगिता, मिलने वाले उत्पाद, खेजड़ी के प्रति लोक मान्यता से समझ सकते हैं। खेजड़ली गांव में शहीदों की कथा भी खेजडी का महत्व इंगित करती है। धर्म ग्रन्थों में और लोक कथाओं में भी इसकी महत्ता बताई गई है। फिर क्यों खेजड़ी काटी जा रही है? ये एक यक्ष प्रश्न है।
गहलोत साहब ! खेजड़ी काटकर सोलर ऊर्जा पैदा करने से जितना आर्थिक मुनाफा होगा उससे ज्यादा खेजड़ी काटने से पर्यावरण, मरूस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र और इलाके के लोगों को क्षति हो जाएगी। इसकी जल्दी से भरपाई करना मुश्किल हो जाएगा। खेजड़ी के प्रति राजस्थान की सरकार और बीकानेर का प्रशासन तो संवेदनहीन बना हुआ है ही, विपक्ष भी उदासीन बैठा है। यहां के नेता धरना स्थल पर फोटो खिंचाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में बीकानेर की जनता किससे ही उम्मीद लगाये? एक वर्ष से अब तक किए गए सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं। बावजूद इसके जन संघर्ष का सिलसिला जारी है।
गहलोत जी ! बीकानेर की जनता को आपसे काफी उम्मीदें हैं। प्रशासन और सरकार को खेजड़ी की उपयोगिता और महत्व को फिर से समझाइये। विपक्ष की मजबूत भूमिका और राजनीतिक कौशल से खेजड़ी की कटाई पर प्रतिबंध लगाने का पुनीत काम करके जाइये।