मेरी बात : गहलोत साहब ! बीकानेर में अपनी ‘जादूगरी’ दिखाएं तो जानें

साल 2011 की बात है। यही जून-जुलाई का महीना था। तब मैं नोएडा में इंडिया टीवी न्यूज़ चैनल में ट्रेनिंग कर रहा था। एक दिन न्यूज़ रूम में सुबह से ही हलचल का माहौल था। सुगबुगाहट थी कि कोई बड़ी हस्ती आने वाली है। उस दिन मेरे एक सीनियर ने अमिताभ स्टाइल में डायलॉग मारते हुए कहा “आज ख़ुश तो बहुत होंगे तुम, हंय? तुम्हारे राजस्थान के ‘जादूगर’ जो आ रहे हैं।”

वे मेरी टीवी पत्रकारिता के शुरुआती दिन थे। मैं सीनियर का इशारा भांप न सका, सो पूछ बैठा- “कौन?”

वे बोले- “आएं तो ख़ुद ही देख लेना।”

कोई डेढ़-दो घंटे बाद न्यूज़ रूम में अचानक से हलचल तेज़ होती है। मेरे सीनियर तपाक से मुझे बोले – “लो ! आ गये राजस्थान की राजनीति के ‘जादूगर’।”

मैंने देखा- न्यूज़ रूम की चकाचौंध वाली रौशनी में.. सफेद कुर्ते-पायजामे और काली जैकेट में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आ रहे थे, इंडिया टीवी के प्रधान संपादक रजत शर्मा उनका स्वागत कर रहे थे। थोड़ी औपचारिकता के बाद वे गहलोत को इंडिया टीवी का नया ऑफिस दिखाने लगते हैं। इस दौरान वे मेरी डेस्क के आगे से भी गुजरते हैं। मैं ‘मेरे राजस्थान’ के सीएम को “नमस्ते” बोलता हूं। गहलोत अभिवादन स्वीकार करते हैं और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते हैं।

ये सीएम गहलोत से मेरी पहली प्रत्यक्ष मुलाक़ात थी। जिसने मुझे यह समझाया कि राजस्थान की राजनीति के इस ‘जादूगर’ की चर्चा.. देश के बड़े मीडिया हाउसेज में होना एक आम सी बात है। आज इस वाकये को पूरे 14 साल हो चुके हैं। हो सकता है गहलोत साहब को भी याद हो। इन 14 सालों में ऐसे कई मौक़े आए, जब उन्होंने साबित किया कि वे वाकई राजनीति के जादूगर हैं। आज तो यह आलम है कि उन्हें ‘राष्ट्रीय राजनीति का जादूगर’ भी कहा जाने लगा है।

बहरहाल, राजनीति के वही ‘जादूगर’ आज बीकानेर आए हुए हैं। सरकार बनकर नहीं, जनता का पैरोकार बनकर। गहलोत ऐसे समय में बीकानेर आए हैं, जब इस शहर को उनकी ‘जादूगरी’ की सबसे ज्यादा ज़रुरत है। गहलोत पूरे देश में अपनी ‘जादूगरी’ का कमाल दिखा सकते हैं, वे अपनी ‘जादूगरी’ बीकानेर में दिखा पाएं तो जानें। क्योंकि-

1. बीकानेर सूबे का सबसे बदहाल शहर बन चुका है

गहलोत साहब ! कुछ महीनों पहले जिस शहर की धरती से प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया में ‘भारत का डंका’ बजाया, उसी शहर की धरती आधारभूत सुविधाओं को तरस रही है। विश्वास न हो तो आप बीकानेर के किसी भी गली, मौहल्ले में चले जाइये। जहां सड़क, पानी और साफ-सफाई जैसी आधारभूत सुविधाएं भी मुकम्मल नहीं मिलेगी। यहां साल बदलते हैं, हाल नहीं। यहां तक कि आज सुबह आप जिस बीकानेर जंक्शन से बाहर आए थे, उसके मुख्य गेट से नाक की सीध वाली सड़क भी टूटी पड़ी है। जिसकी बरसों से सुध लेने वाला कोई नहीं है। शहर की ऐसी बदहाली के लिये बीजेपी-कांग्रेस दोनों समान रूप से दोषी हैं। या तो दोनों ही पार्टी के नेताओं ने कभी बीकानेर के विकास का सपना नहीं देखा या फिर देखा तो पूरा किया नहीं। चलिये, एक वाकये से समझाता हूं-

साल 2021 में ख़बर अपडेट ने शहर की सभी समस्याओं को समेटते हुए… निजी खर्च पर, 100 दिनों की मेहनत से ‘बीकानेर के समग्र विकास’ पर आधारित 1 घंटे की डॉक्यूमेंट्री फिल्म (यहां क्लिक करके देखें) बनाई थी। जिसे यहां के वेटेरनरी ऑडिटोरियम में दिखाया गया था। कार्यक्रम के दिन वहां मौजूद शहर के क़रीब 200 गणमान्य लोग जानना चाह रहे थे कि बीकानेर की समस्याओं पर हमारे मंत्री क्या समाधान सुझाते हैं? तब आपकी सरकार में बीकानेर से 3 मंत्री थे और केंद्र सरकार में 1 मंत्री। लेकिन विडंबना देखिये.. पूर्व सूचना देने के बावजूद, हामी भरने के बावजूद.. न तो मंत्री भंवर सिंह भाटी ने मुंह दिखाया, न ही मंत्री गोविंद मेघवाल आए और न ही केंद्र सरकार में मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जनता की समस्याएं जानने में रूचि दिखाई। आए फकत डॉ. बुलाकी दास कल्ला। वे भी समाधान से ज्यादा, जनता की शिकायतों पर नाराज़ ही हुये। जनहित की समस्याओं पर इस नजरअंदाजगी से.. वहां मौजूद अलग-अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग दंग रह गये थे। इस बात का मैं अपने लेखों में कई बार जिक्र कर चुका हूं। और हां.. आपके इन तत्कालीन मंत्रियों के सामने भी कह सकता हूं। आप चाहें तो बीकानेर दौरे के दौरान मुझे किसी मीटिंग में भी बुलवाकर सबके सामने पूछ लीजियेगा। क्योंकि एक पत्रकार होने के साथ-साथ मैं इस शहर का वो आम नागरिक भी हूं, जो बीकानेर के विकास का सुंदर सपना देखता है। ऐसे में अपने बीकानेर की बदहाली पर उसकी नाराज़गी नहीं फूटेगी क्या?  

गहलोत जी ! आप ही बताइये..जिस शहर के मंत्रियों में जनता की समस्याओं को लेकर ऐसी इग्नोरेंस होगी, क्या उस शहर के बाशिंदे बुनियादी जरुरतों को नही तरसेंगे? क्या आप अपनी जादूगरी से बीकानेरी नेताओं का एटिट्यूड बदल सकते हैं? आप बीकानेर में ये ‘जादूगरी’ दिखाएं तो जानें।

2. बीकानेर में विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस नाकाम।

गहलोत साहब ! फिलवक्त राजस्थान में आपकी पार्टी विपक्ष की भूमिका में हैं। ..लेकिन मुझे कहने में गुरेज नहीं कि बीकानेर में कांग्रेसी नेता विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम साबित हुए हैं। ये बात भी मैं एक उदाहरण से समझाता हूं। 31 अक्टूबर, 1983 को आप ही की पार्टी की सरकार ने खेजड़ी को ‘राज्य वृक्ष’ घोषित किया था। बीते कुछ महीनों में बीकानेर और आस-पास के क्षेत्रों में हज़ारों खेजड़ियां काटी जा चुकी हैं। लेकिन बीकानेर में विपक्षी नेता… अपनी ही पार्टी की सरकार द्वारा घोषित ‘राज्य वृक्ष’ को बचाने के लिये आवाज़ बुलंद नहीं कर पा रहे हैं। जनता अकेली लड़ रही है, विपक्ष नदारद है। ये तो एक ज्वलंत मुद्दा था, सो बता दिया। इसके अलावा भी ऐसे कई मौक़े आए, जब विपक्ष की चुप्पियां नहीं टूटीं।

गहलोत जी ! क्या बीकानेर में विपक्ष का मुंह सिर्फ चुनावी मौसम में ही खुलता है? क्या आप अपनी जादूगरी से उनकी आवाज़ बुलंद करवा सकते हैं? आप बीकानेर में ये ‘जादूगरी’ दिखाएं तो जानें।

3. अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग

गहलोत साहब ! बीकानेर के पिछड़ने की एक वजह- विपक्षी नेताओं का स्वार्थ भी है। सबकी अपनी-अपनी ढपली है, सबका अपना-अपना राग है। हर कोई ख़ुद को आगे दिखाने की हौड़-दौड़ में हैं। क्या विपक्ष होने की हैसियत से किसी कांग्रेसी नेता ने सत्ता और प्रशासन से सवाल पूछे? 1-2 मुद्दों पर सियासत कर लेने से मसला हल नहीं होता। शहर के विकास के लिये विपक्ष को लगातार सवाल दागने होते हैं। मुझे ये कहने में कतई गुरेज नहीं कि बीकानेर में कांग्रेसी नेता विरोध करना भूल गये हैं। क्या उन्हें मालूम है कि शहर की जनता उन पर क्या-क्या तंज कसती है। न मालूम हो तो ये भी बता देता हूं। कोई कहता है कि “विपक्ष सो रहा है या मौन सहमति दे रहा है?” पाटों पर लोग बातें करते हैं कि हमने इतना शांत विपक्ष कभी नहीं देखा। कुछ लोग तो इससे भी बड़ा तंज कसते हैं कि विपक्ष की तलवार जंग खा रही है। जनता का हर एक तंज… राज्य स्तर पर विपक्ष की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है और कोई कहने वाला नहीं है। गहलोत साहब ! ये सब सवाल अप्रत्यक्ष रूप से आप पर ही गिर रहे हैं। आख़िर राजस्थान कांग्रेस में तो आप ही आलाकमान हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इन सारी ढपलियों को फेंककर जनहित का एक ही राग अलापा जाए। क्या आप अपनी ‘जादूगरी’ से ये कमाल कर सकते हैं। बीकानेर में ये ‘जादूगरी’ करके दिखाएं तो जानें।

पूर्व सीएम साहब ! बीकानेर में ‘अंधेर नगरी और चौपट राजा’ है। ‘राज’नेताओं की राजनीतिक शून्यता ने ‘बीकानेर’ को सूबे का सबसे बदहाल शहर बना दिया है। भले ही जोधाणा-बीकाणा भाई-भाई हों, लेकिन इन दोनों भाइयों में दिन-रात का अंतर साफ देखा जा सकता है। आप सा पारखी तो फट से भांप सकता है। क्यों न आप बीकानेर दौरे के दौरान अपनी ‘जादूगरी’ से कुछ ऐसा करें, जिससे यहां के नेता बीकानेर के विकास के लिये प्रयास करें या सत्ता से करवा सकें। ठीक वैसे ही, जैसे आपने अपने जोधपुर के लिये किये थे। जिस शहर के नेता.. सत्ता के शिखर पर बैठे हों, जिस शहर से एक ही समय में 4-4 मंत्री रहे हों, जिस शहर के नागरिक सड़क और नाली जैसी बुनियादी जरुरत को तरसते हों। ऐसे ढीले-ढाले, बदहाल और ‘सबसे बड़े गांव’ का तमगा पाने वाले शहर की तसवीर बदल सकें, आप ऐसी ‘जादूगरी’ दिखाएं तो जानें। कितना अच्छा हो, जब महानगर के किसी बड़े पत्रकार की मानिंद.. बीकानेर का कोई छोटा पत्रकार भी आपको देखकर कहे कि “लो ! आ गये राजस्थान की राजनीति के जादूगर।”

Note- इस लेख पर अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।  

3 thoughts on “मेरी बात : गहलोत साहब ! बीकानेर में अपनी ‘जादूगरी’ दिखाएं तो जानें

  1. हमारे बीकानेर शहर के विकास संबंधी विचारणीय मुद्दे।

  2. सहज और सरलता से रखी गई बात शायद गहलोत साहब तकअवश्य पहुंचेगी

  3. Whole of the party sincerely does struggle in order to –
    Put a stop order to threatening and Resist
    Irrelevancy in political career….

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