Blog मेरी बात

मेरी बात : पत्रकार साथियों ! अब तो जागो..

प्रिय पत्रकार साथियों !

आज ‘मेरी बात’ आप सबके लिये है। मेरी कोशिश रहेगी कि ये आलेख मैं देश के हर राज्य के पत्रकारों तक पहुंचाऊं। जिसमें प्रिंट, इलेक्ट्रोनिक और डिजिटल मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार शामिल होंगे। मैं सबके सुझावों का स्वागत करूंगा।

मित्रों ! मैं अक्सर कहता हूं कि “जिस चीज़ के साथ भाव जुड़ जाते हैं, वो प्राणों से भी प्रिय हो जाती है।” मुझे लगता है कि हमारे लिये वो चीज़- हमारा पेशा ‘पत्रकारिता’ है। मुझे इस पेशे से बेइंतहा प्यार है, आप सबको भी होगा। ये आर्टिकल भी इसीलिये लिख रहा हूं क्योंकि इन बरसों में इस पेशे पर लगातार प्रहार किये जा रहे हैं। इसका स्तर लगातार गिराया/गिरता जा रहा है। ..और इसके लिये कहीं न कही जिम्मेदार हैं- हम सब। हमने इस पेशे की पवित्रता को तवज्जो देना छोड़ दिया है। आज खरापन और स्वाभिमान जैसी बातें निबंधों और मंचों तक ही सिमटकर रह गई हैं। रही-सही कसर विज्ञापनों और सियासत ने पूरी कर दी है। हमने इन दोनों को इतनी गैर-ज़रुरी तवज्जो दे दी है कि अब ये ही हमें ढहाने को आमादा हो गये हैं। विज्ञापनों के विकर्षण ने पत्रकारिता के स्तर को धराशायी कर दिया है। वहीं, सत्ता और शक्ति के मद में चूर कुछ ‘राज’नेता मीडिया से उम्मीद रखने लगे हैं कि मीडिया सिर्फ उनकी गौरव गाथा गायें। किसी की भी व्यथा-कथा का जिक्र न करें। गोया, वे किसी साम्राज्य के सम्राट हों, जिन्हें सिर्फ खुशामदी की आदत हो। ..और कोई कुछ कह दे तो वे डराने/धमकाने लगते हैं। गुरुवार को बीकानेर की स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय में जो हुआ, वो इसी की बानगीभर है।

देश के क़ानून व न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को ख़बर अपडेट में छपा एक आलेख इतना बुरा लगा कि वे मौक़े पर मौजूद केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, कुलपति, डीन-डायेक्टर और अधिकारियों के बीच हम पर नाराज़ होने लगे। मेघवाल होंगे देश की सत्ता के शिखर पर बैठे एक शक्तिशाली केंद्रीय मंत्री। लेकिन उन्हें मीडिया पर नाराज़ होने का हक़ किसने दिया? वे बीकानेर के सांसद हैं, उनका काम है- अपने संसदीय क्षेत्र का विकास करना, उन्हें ये काम ढंग से करना चाहिए। हमें निर्देशित करना और सार्वजनिक तौर पर नाराज़ होना उनका काम कतई नहीं हो सकता। ..तो क्या हुआ, जो हमने उनके पैतृक गांव की दुर्गति की बात बयां कर दी? ये हमारा काम है।

मैं व्यक्तिगत तौर पर बीकानेर सांसद का सम्मान करता हूं। सार्वजनिक तौर पर कहता हूं कि मैं उनके व्यवहार का प्रशंसक रहा हूं। यहां तक कि यह कहने में भी मुझे गुरेज नहीं है कि साल 2012 में इलेक्ट्रोनिक मीडिया में मेरे पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में मैं दिल्ली में उनके घर भी रहा था। उनकी इस संवेदनशीलता का भी सम्मान करता हूँ कि उन्होंने केंद्रीय संस्कृति मंत्री रहते हुए, मेरी एक रिपोर्ट के बाद पद्मश्री से सम्मानित कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा के घर का बिजली कनेक्शन फिर से चालू करवाया। इनके अलावा भी, ऐसे कई मौक़े आए, जब मेघवाल ने बीकानेरवालों को गर्व करने के मौक़े दिये लेकिन गुरुवार को उनके अशोभनीय व्यवहार ने तमाम गर्व के मुद्दों पर पानी फेर दिया। माननीय मंत्री जी ! आप जानते ही क्या हैं ख़बर अपडेट के बारे में? शायद उतना ही, जितना आपके तथाकथित ‘शुभचिंतक’ बताते होंगे। आप नहीं जानते तो मैं सार्वजनिक तौर पर आज यहां बता देता हूं। जान लीजियेगा-

-हम मुट्ठीभर लोग अपने ईमान और पत्रकारिता के धर्म को सिर-आंखों पर सहेजते हुए..विज्ञापनरहित और मूल्यों की पत्रकारिता करते हैं। आपको क्या मालूम कि बिना विज्ञापन के एक मीडिया संस्थान को चलाना कितना मुश्किल होता है। लेकिन रुपयों की गुणा-गणित से दूर रहकर, पूजा की भावना से ये मुश्किलभरा काम हम हर रोज़ करते हैं। ताकि विज्ञापन की वजह से कोई इस पावन काम का अवमूल्यन न कर सके।
-यह वही ख़बर अपडेट है, जिसने अपने निजी ख़र्च पर ‘आपके संसदीय क्षेत्र’ बीकानेर के सर्वांगीण विकास पर कुल 94 दिनों की मेहनत से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म तैयार की। आपको क्या मालूम कि बिना आर्थिक सहयोग के ये काम कितना मुश्किल रहा होगा। ये मुश्किल काम भी हमने किया ताकि हमारे शहर के जनप्रतिनिधि 1 क्लिक में बीकानेर के विकास के जरुरी पहलू जान सकें। मैं उस डॉक्यूमेेंट्री का लिंक यहां दे रहा हूं। आप भी चाहें तो बीकानेर की समस्याएं जान सकते हैं।

यह वही ख़बर अपडेट है, जिसने बीकानेर के सर्वांगीण विकास के मुद्दों पर दर्जनों सभाएं कीं, कई सेमिनार रखे, कई कार्यक्रम करवाये। हमारे कामों की फेहरिस्त लंबी है, मैं किन-किन का जिक्र करुं?
-चलिये, हम आपको ‘सार्वजनिक’ तौर पर आमंत्रण देते हैं, कभी हमारे किसी कार्यक्रम में आइयेगा और देखियेगा कि कोई इकलौता संस्थान ईमानदारी और शिद्दत से काम करता है तो कितना कुछ किया जा सकता है। फिर आप तो केंद्रीय मंत्री हैं।


आपका शायद ही कभी हमारी कोशिशों पर ध्यान जाएगा या गया होगा। लेकिन.. जब हमने आपके पैतृक गांव- किशमीदेसर में आपके ख़िलाफ़ धरने पर बैठे लोगों की व्यथा-कथा लिखी, तो फौरन आपने ध्यान धरा और सार्वजनिक तौर पर नाराज़ हो गये। बिना यह जाने कि ख़बर अपडेट ने फकत आप पर ही नहीं, बल्कि बीकानेर की हर सियासी शख्सियत की खामियों पर कई-कई बार आलेख लिखकर उन्हें उनकी खामियों से रू-ब-रू करवाया है। फिर चाहे डॉ. बुलाकीदास कल्ला हो या भंवरसिंह भाटी, चाहे देवीसिंह भाटी हो या फिर कोई और..। आज तक कभी किसी ने सार्वजनिक तौर पर नाराज़गी जाहिर नहीं की। लेकिन ‘मधुर स्वभाव’ के लिये ‘विख्यात’ सांसद अर्जुन राम मेघवाल को हमारा आलेख चुभ गया। क्यों चुभा? ये बड़ा सवाल है। क्या इसलिये कि वे ताक़तवर राजनेता हैं? क्या इसलिये कि वे केंद्रीय क़ानून व न्याय मंत्री हैं? ..तो क्या अब देश के कानून व न्याय मंत्री तय करेंगे कि मीडिया को क्या लिखना है और क्या नहीं? अगर हां, तो देश के सभी मीडिया हाउसेज और मीडिया यूनिवर्सिटीज को बंद कर देना चाहिये और पत्रकारिता की ट्रेनिंग माननीय मंत्री महोदय से लेनी शुरु कर देनी चाहिये। कोई उनसे पूछे कि केंद्रीय क़ानून एवं न्याय मंत्री जी ! आप ही बताइये- क्या ये न्याय की बात है? हो सकता है कि कोई हक़ीक़त आपको पसन्द न आये, आप तो पूरे देश के नेता हो, पीएम नरेंद्र मोदी की तरह सहनशीलता रखिये। फिर भी न पसंद आये तो क़ानून मंत्री जी, आप मीडिया के लिए कानून बनवा दीजिये कि सब आपकी पसंद का लिखेंगे, कहेंगे और दिखाएंगे। देश के संविधान ने हम मीडिया को ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ दी है, उसके साथ यूं ‘अन्याय’ मत कीजिये। जब कानून व न्याय मंत्री ही ‘ऐसा’ करने लगेंगे तो देशवासी किससे ‘न्याय’ की उम्मीद करेंगे, महोदय?

मेघवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे नज़र आने वाली शक्तिशाली शख़्सियत हैं। हम बीकानेरवालों की शुभकामनाएं हैं कि वे आगे बढ़ें और पिछले 15 सालों में बहुत पीछे जा चुके बीकानेर को भी आगे बढ़ायें। मैं उनको बहुत क़रीब से जानता हूँ, वे कतई ऐसे न थे। इसलिए ये सलाह कि अपना स्वार्थ साधने वाले, चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले तथाकथित ‘शुभचिंतकों’ से बचकर रहें। स्पष्ट कहने वालों की बातों पर ‘आत्ममंथन’ करें। ख़ुशामदी वाले एटीट्यूड से दूर रहते हुए हक़ीक़त से वास्ता रखें। जनता अपने सांसद से बरसों से उम्मीदें लगाये बैठी हैं कि वे उनकी, अपने गांव की, अपने संसदीय क्षेत्र की नाराज़गी दूर करेंगे लेकिन यहां तो आप ही जनता से नाराज़ होने लगे। जनता से नाराज़ होने से आपको क्या मिलेगा, बताइये। ख़बर अपडेट से नाराज़ होने से/धमका लेने से देश का क्या ही भला होगा? और हाँ, इससे ख़बर अपडेट का भी क्या ही नुक़सान होगा? नुकसान तो एक गरिमामय पद का हो रहा है। आप जैसे संजीदा व्यक्ति/देश के बड़े मंत्री से जनता को ऐसी उम्मीद कतई नहीं है। बल्कि ये उम्मीद है कि आप भी अपना काम प्रार्थना के भाव से करें और मीडिया को भी करने दें।

बहरहाल, पत्रकार साथियों ! ये तो फकत एक मौक़ा था। पत्रकारिता जीवन में ऐसे मौक़े कई बार आते हैं। आप सबके जीवन में भी आए होंगे, जब पत्रकारिता के अधिकारों का हनन हुआ होगा। मैं देशभर के मेरे मीडिया साथियों से पूछना चाहता हूं कि मीडिया की ऐसी दुर्गति के लिये कौन जिम्मेदार है? आख़िर क्यों देश का मीडिया खुलकर सवाल पूछने का हक़ खोता जा रहा है ? क्यों सियासतदानों को उम्मीद रहती है कि मीडिया सिर्फ उनकी ख़ुशामद करे? क्यों मीडिया लोकतंत्र का चौथा पाया कहलाने का अधिकार खोता जा रहा है? आख़िर क्यों मीडिया में राजनीति और राजनेताओं को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती है? क्या हम लोग फिर से एक सुदृढ़ मीडिया की नींव नहीं रख सकते? क्या कुछ ऐसा नहीं किया जा सकता, जहां मीडिया अपना पहले जैसा अस्तित्व फिर से पा सकें, जहां मीडिया को सवाल पूछने का, खुलकर लिखने का, ख़ुशामदी से दूर रहने का अधिकार और साहस मिले? पत्रकार साथियों ! अब तो जागो..

मित्रों, ये सब वे सवाल हैं, जो कल से मुझे कचोटे जा रहे थे। उम्मीद है आपमें से कोई अनुभवी पत्रकार इन सवालों के जवाब से मेरा साक्षात्कार करवाएंगे। आपके सुझावों के इंतजार में।

आपका सुमित शर्मा
संपादक, ख़बर अपडेट

2 COMMENTS

  1. बहुत ही अच्छी बात कही आपने….खबर अपडेट निष्पक्षता और निर्भिक पत्रकारिता के लिए जाना जाता था और आगे भी अपने सिद्धांतो से समझौता नहीं करेगा….मेघवाल साहेब को आपकी खबर बुरी लगी और वे क्रोधित हो गए….यही आपके खबर की जीत हुई और पत्रकारिता की जीत हुई…नेता अगर किसी पत्रकार की प्रशंसा करने लगे तो ये समझना चाहिए कि वो चाटुकारिता कर रहा है पत्रकारिता नहीं….

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