एक तरफ ‘भारत’ के क़ानून राज्य मंत्री का ‘ख़ास’ ओहदा, दूसरी तरफ उसी मंत्री के पुश्तैनी गांव ‘किश्मीदेसर’ की ‘आम’ जनता। ये वही ‘आम’ जनता है, जो अर्जुनराम मेघवाल के पहली बार सांसद बनने पर फूले नहीं समा रही थी। लेकिन आज ‘ख़ास’ हो चुके अपने सांसद से इतनी नाराज़ है कि नेशनल हाईवे 89 नोखा रोड पर धरने पर जा बैठी है। धरना भी एक बेहद छोटी सी बात को लेकर.. वो ये कि- उनके आवासीय इलाक़े से जल निकास की व्यवस्था बाधित कर दी गई है। इसके निकासी स्थल पर कब्जा कर लिया गया है।जिसके चलते बरसाती पानी लोगों के घरों में भरने लगा है।
अचंभा इस बात कि जहां से जल निकासी होनी चाहिये थी, वहां पर कब्जा कर लिया गया है। प्रशासन, निगम या न्यास को इस समस्या का फौरन समाधान करना चाहिए था, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। प्रशासन की इस अनदेखी पर पार्षद नन्दू गहलोत, विधायक सिध्दी कुमारी, सासंद अर्जुन राम मेघवाल और सत्तारूढ पार्टी नेताओं को संज्ञान लेना चाहिए था। लेकिन किसी ने सुध ही नहीं ली। सवाल यह उठता है कि-
आख़िर क्या वजह रही होगी कि किसी ने भी इस मसले का संज्ञान तक नहीं लिया।
क्यों अपनी स्वार्थसिद्धि के लिये जनहित के मुद्दे को ताक पर रखा जा रहा है?
कोई आगे आकर इस पर कहेगा भी या नहीं?
येे तमाम वे सवाल हैं, जो इस धरने में बैठे लोग पूछ रहे हैं। इस धरने ने ऐसे ही कई और सवालों को जगजाहिर करने का काम किया है। अगर कोई जानना चाहे तो धरना स्थल पर बैठे लोग इन सवालों का जवाब भी दे देंगे कि वर्षा जलभराव स्थल ‘नत्थू नाडिया’ कहां गया। आख़िर किसके सपोर्ट से और किस कोलोनाइजर को फायदा पहुंचाने के लिये जलभराव वाली जगह पर सड़क बनाई गई? इस ज़मीन पर किसका कब्जा है और इसे कौन बचा रहा है? क्या ऊंचे पदों पर बैठे सफेदपोश नेता ऐसी हरकत कर सकते हैं? यह तो तथ्यों का विश्लेषण करने से ही पता चलेगा।
संभागीय आयुक्त और पुलिस महानिदेशक ने 16 अगस्त को यहां जलभराव से उत्पन्न संकट, लोगों के घरों में पानी भरने और पुलिया टूटने का निरीक्षण किया और जिला कलक्टर को कार्यवाही के निर्देश दिए। कलक्टर ने कमेटी बनाकर तीन दिन में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। कमेटी मौक़ा-मुआयना कर आई हैं। पीड़ित लोगों का धरना बदस्तूर जारी है। धरनास्थल पर बैठे अर्जुन राम मेघवाल के गांव के लोग और उनके भाई-बन्धु अर्जुन राम को कोस रहे हैं। वहां के अध्यक्ष मोहनलाल मेघवाल ने कहा कि “हमारी समस्याएं दूर नहीं हुई हैं।” धरनार्थियों का कहना है कि-
“ये बहुत दुर्भाग्य की बात है कि हमारे सांसद अर्जुन राम जी बीकानेर में होते हुए भी अपने मोहल्ले में आकर, अपने परिवार और समाज के लोगों से नहीं मिले। वे हमारे नेता हैं, हमने उन्हें वोट दिए हैं। भले ही वे केन्द्र में मंत्री हों लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र की सुध लेना भी तो उनकी ही जिम्मेदारी है। अफसोस कि वे अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। प्रधानमंत्री के पीछे घूमने का काम तो भाजपा संगठन के बूते उन्हें आरक्षण की भेंट में मिला है। उनका असली चेहरा तो किश्मीदेसर गांव में आईने के तौर पर दिखाई देता है।”
किश्मीदेसर नगरीय क्षेत्र केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का पुश्तैनी गांव रहा है। उनके कुटुम्ब के लोग अब भी वहां रहते हैं। मेघवाल जब पहली बार जीते थे तो उनकी जाति के लोगों के अलावा माली, ब्राह्मण और अन्य जाति के लोग बहुत गर्व से कहते थे कि “अर्जुनराम जी हमारे गांव के हैं। लेकिन ज्यों-ज्यों अर्जुनराम ऊंचाई पर जाते गये, त्यों-त्यों उनकी गैर-जिम्मेदाराना रवैये के चलते लोगों का मोह भी जाता रहा। आज उनके ही गांव में उनकी कितनी लोकप्रियता है, ये वहां के लोगों से बातचीत कर कोई भी आसानी से जान सकता है। पार्षद नन्दू गहलोत ने तथ्यों के साथ सारी स्थिति कमेटी के अधिकारियों को बताई। पूर्व कैबिनेट मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने धरना स्थल पर धरणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि “अर्जुन राम के लिए बड़ी शर्म की बात है कि किश्मीदेसर गांव नरक बन चुका है। शहर की गन्दगी घरों में जा रही है।”
एक केन्द्रीय मंत्री की उनके ही परिजनों और गांव के लोगों द्वारा निन्दा करना, कई सवाल खड़े करती है। विरोधियों को कहने का मौक़ा मिल गया कि “जो अपनों का न हो सका, वो औरों का क्या भला करेगा?” यह अर्जुन राम की राजनीतिक विफलता कही जाएगी। यह तय है कि किशमीदेसर की जल निकासी की समस्या राजनीतिक मुद्दा बन गया है। ये धरना भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन कई सवालों को खड़ा करता है। सबसे बड़ा सवाल तो इन नेताओं के ‘जनप्रतिनिधि’ कहलाने पर खडा़ होता है। जब जनता के मूल अधिकारों से जुड़ी समस्या के प्रति विधायक सिध्दी कुमारी, सांसद अर्जुन राम मेघवाल और प्रशासन द्वारा ही अनदेखी की जा रही है, तो जवाब किससे मांगे? किससे उजियारे की आस करें, जब दीया तले ही अंधेरा हो।