मेरी बात : ‘नागरिक सुरक्षा अधिनियम’ समझाये जायें ताकि जान सकें कि युद्ध..

पहलगाम हमले के बाद पूरा भारत गुस्से से उबल रहा है। भारत-पाक के रिश्तों की तल्खियां और तल्ख हो गई हैं। दोनों देशों में दनादन बैठकों का दौर जारी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “आतंकवाद को करारा जवाब देना हमारा दृढ़ राष्ट्रीय संकल्प है। सेना को किसी भी तरह की कार्रवाई करने की हरी झंडी दे दी गई है। भारतीय सेना अब कार्रवाई का समय और टारगेट अपने हिसाब से तय करेगी।”

उधर, युद्ध से घबराये पाक रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ का भी बयान आ गया है, बोले कि “भारत की तरफ़ से तुरंत कार्रवाई हो सकती है. हमने अपनी सेनाओं की तैनाती बढ़ाई है, क्योंकि कुछ ऐसा है जो अब तुरंत हो सकता है. इस स्थिति में कुछ रणनीतिक निर्णय लिए जाने हैं और वो निर्णय ले लिए गए हैं.”

बॉर्डर पर बढ़ते तनाव और दोनों तरफ सेनाओं की मुस्तैदी से यह साफ हो गया है कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। किसी भी वक़्त युद्ध को लेकर बड़ी ख़बर आ सकती है।

पूरा देश पीएम मोदी के संकल्प के साथ खड़ा है। देश का हर नागरिक.. आतंकवाद के ख़ात्मे को लेकर संकल्पित है। लेकिन युद्ध से पहले देश के नागरिकों को युद्ध से उपजने वाले हालात से जागरुक करने की ज़रुरत है, ताकि वे पहले से तैयार रह सकें। इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा युद्ध से पहले ‘नागरिक सुरक्षा’ के उपाय बताये जाने चाहिए। नागरिकों को ‘नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968’ से जागरुक किया जाना चाहिये।

दरअसल, नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968, युद्ध के दौरान नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम नागरिक सुरक्षा संगठनों को नागरिकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की अनुमति देता है और नागरिकों को युद्ध के दौरान अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरुक करता है। उन्हें बताता है कि युद्घ के दौरान उन्हें कैसे बर्ताव करना है।

देश के नागरिकों को नागरिक सुरक्षा अधिनियन, 1968 से जागरुक करना भी युद्ध की तैयारी करने जैसा है। राज्य सरकारों को, ज़िला-प्रशासन को इस बारे में निर्देश देने की जरुरत है।

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