बीकानेर में भाजपा संगठन चुनाव का बाज़ार गर्म है। शहर और देहात अध्यक्षों के नाम फाइनल हो गए हैं। बस ! घोषणा होनी बाक़ी है। घोषणा भी हो जाएगी। लेकिन.. इस इस चुनाव के दरमियान प्रदेश संगठन को बीकानेर में गुटबाजी और दबाव की जो राजनीति देखने को मिली, वो किसी विडंबना से कमतर नहीं कही जा सकती। इन्हीं से तंग आकर ही तो पहले बीकानेर शहर के चुनाव प्रभारी लखावत ने स्वेच्छा से प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन.. ये गुटबाज़ी फिर भी नहीं थमी.. नए प्रभारी दर्शन सिंह ने कमान संभाली तो दूसरे गुट ने उन पर आरोप मढ़ दिया। बोले कि “दर्शन सिंह जी अन्य नेताओं के दवाब हैं। वे एससीएसटी और ओबीसी की अनदेखी कर रहे है।”
हालांकि दर्शन सिंह ने भी दो पलटवार करते हुए सीधा-सटीक जवाब दे दिया कि “दोनों के अलग प्रकोष्ठ बने है। किसी तरह का कोई पक्षपात नहीं हो रहा है।”
लेकिन.. इतने भर से ये तनातनी कहां रुकने वाली है? सवाल तो यह है कि बीकानेर में भाजपाइयों के बीच इतनी तनातनी की वजह क्या है? क्यों बीकानेर भाजपा गुटों में तब्दील हो चुकी है? जिसकी बानगी इस चुनाव में साफ देखी जा सकती है। आंकलन किया जाए तो इसके पीछे की वजह- ‘कर्तव्यनिष्ठता और पिछलग्गूपन’ के बीच की लड़ाई हो सकती है।
कुछ नेता ऐसे हैं, जो संगठन में पार्टी के सिद्धांतों, नीति नियमों और कर्तव्यनिष्ठता से काम करते हैं। वही कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो गुटों और नेताओं के पिछलग्गू हैं। लड़ाई इन दोनों के बीच की है। आलम यह है कि निष्ठा से काम करने वाले आज पदों के लिये मुंह ताक रहे हैं और पिछलग्गू बनने वाले दावे ठोक रहे है।
वैसे, बीकानेर की राजनीति में संगठन चुनाव को लेकर सांसद और पश्चिमी के शहर विधायक तनातनी किसी से छिपी नहीं है। विधायक की राजनीति क्रैश करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई है। जबकि ये वही विधायक हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में बीकानेर प्रत्याशी को जिताने और मोदी के नाम पर वोट डलवाने में दिन-रात मेहनत की थी। तब उन्होंने न तो शाबाशी चाही, और न ही एहसान जताया था। लेकिन आज दूसरे गुट ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। सांसद गुट के समर्थकों का दावा है कि “देहात और शहर में उनका ही जिलाध्यक्ष होगा।” वहीं शहर विधायक की चुनौती है कि “शहर अध्यक्ष तो वही बनेगा, जो तटस्थ होगा, जो निष्पक्ष होगा।” देखते हैं किसकी चुनौती किस पर भारी पड़ती है।
बीकानेर शहर देहात जिलाध्यक्षों के लिए जिन नामों की चर्चा है, उनमें महावीर रांका, अनिल शुक्ला, मोहन सुराणा, अखिलेश प्रताप सिंह, नारायण चौपड़ा हैं। वहीं देहात में कन्हैया लाल सियाग, छैलू सिंह, आस करण भट्टड़, बेगा राम बाना, भंवर जांगिड़ समेत कई नाम आ रहे हैं। कई नेता केंद्रीय मंत्री के बूते अध्यक्ष पद पर दावेदारी जता रहे हैं, तो कई संघ के समर्थन से पद पाने की कोशिशों में हैं । कई अपने आकाओं और धन-बल के बूते दौड़ लगा रहे हैं, तो कई पार्टी-संगठन में अपने समर्पण और निष्ठा के भरोसे पद मिलने की आस लगाए बैठे हैं। वैसे, चर्चा इस बात की ज्यादा हो रही है कि “पार्टी में सत्ता का ध्रुवीकरण और गुटबाजी का जिलाध्यक्ष बनने में प्रभाव रहेगा।”
खैर, जो होना है, हो जाएगा लेकिन भाजपा संगठन चुनाव ने बीकानेर भाजपा नेताओं की गुटबाज़ी और दबाव की राजनीति को जगजाहिर कर डाला है।