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साधुमार्गी जैन संघ के आचार्यश्री रामलाल जी म. सा. के साथ एक ‘यादगार संवाद’

संवाद– हेम शर्मा, सुमित शर्मा
सहयोगी- महेन्द्र सोनावत, मोहन सुराणा, तोला राम बोथरा

श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी संघ के नवें पट्टधर आचार्यश्री रामलाल महाराज साहब बीकानेर प्रवास पर हैं। भीनासर के जैन जवाहर पीठ में हर रोज़ हज़ारों लोग उनके प्रवचन का लाभ ले रहे हैं। आचार्यश्री के सान्निध्य में अब तक 495 दीक्षाएं सम्पन्न हो चुकी है। आपको देशभर में उनके अनुयायी मिल जाएंगे। बीते मंगलवार को आचार्यश्री से जैन धर्म, साधुमार्गी परंपरा, उनके प्रकल्पों और मानव स्वभाव को लेकर एक यादगार चर्चा की, ख़बर अपडेट के प्रधान संपादक हेम शर्मा और संपादक सुमित शर्मा ने। आचार्यश्री से बातचीत के कुछ अंश आपके सामने भी प्रस्तुत हैं।

हेम शर्मा : महाराज साहब ! जैन समाज ‘समता के सिद्धांत’ का पालन करता है.. लेकिन आज देश में जिस तरह का दौर चल रहा है, उसमें ‘समता का सिद्धांत’ कितना प्रासंगिक है?
आचार्यश्री : ‘समता का सिध्दान्त’ आपने पढ़ा है। जरुरी है कि इसे सभी लोग जानें और स्वीकार करें। मैं हमेशा कहता हूं कि बदलाव का रास्ता स्वयं से होते हुए परिवार, फिर समाज से होते हुए आख़िर में राष्ट्र तक पहुंचता है। यानी ‘व्यक्ति’ ही पूरे राष्ट्र तक बदलाव लाने की पहली कड़ी है। इसलिये शुरुआत ‘व्यक्ति’ से होनी चाहिये। हर व्यक्ति को अपने जीवन में ‘समता के आचरण’ को अपनाना चाहिए। इसी से आगे के रास्ते खुलेंगे। फिर चाहे दौर कैसा भी क्यों न हो।

सुमित शर्मा- आचार्यश्री ! साल 2017 में मैंने साधुमार्गी जैन संघ पर 2 डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स बनाई थीं। इस दौरान.. मैंने जैन धर्म और संघ के प्रकल्पों को बारीक से जाना। साधुमार्गी जैन संघ का उद्देश्य- ‘अहिंसा परमो धर्म और विश्व कल्याण’ है। ‘इदं न मम’ जैसे एक-एक प्रकल्प इस उद्देश्य में सहायक है। ..तो ऐसा क्या किया जा सकता है कि दूसरे समाज भी ऐसे प्रकल्पों को अपना लें, ताकि विश्व कल्याण का रास्ता आसान हो सके।
आचार्यश्री : अच्छी बातें तो सबको ही अपनानी चाहिये। लेकिन.. आम तौर पर ऐसा नहीं होता। क्योंकि हर कोई स्वयं को श्रेष्ठ बताना चाहता है। कोई क्यों दूसरे समाज की बातें अपनाना चाहेगा? ये बात सही है कि साधुमार्गी संघ में अच्छे-अच्छे प्रकल्प हैं, उनका जितना विस्तार हो, अच्छा ही है। इसके लिये सभी समाज के लोगों को आपस बैठकर बात करनी चाहिये। अच्छी बातों का आदान-प्रदान करना चाहिये। इससे विश्व कल्याण का मार्ग और ही प्रशस्त होगा।

हेम शर्मा : महाराज साहब ! साधुमार्गी संघ और उनके संतों की तपस्या का मार्ग बहुत जटिल है। इसके बावजूद दीक्षा लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है, क्यों?
आचार्यश्री : तप का मार्ग भले ही जटिल हो, लेकिन है तो कल्याण का ही मार्ग न ! रही बात दीक्षा लेने वालों की, तो उनकी योग्यता देखी जाती है। क्या वे इस मार्ग पर चलने योग्य हैं? ऐसा नहीं है कि कोई भी आ जाए तो उसे दीक्षा दे दी जाती है। हां, मना भी नहीं करते। उन्हें कहते हैं कि पढ़ाई करो। फिर.. उनकी योग्यता के अनुरूप स्वत: ही निर्णय हो जाता है। अब तक 495 दीक्षाएं दी जा चुकी हैं।

सुमित शर्मा : महाराज जी ! आज पत्रकारिता का पेशा बहुत चुनौतीपूर्ण हो गया है। किसी मुद्दे पर सच लिख दें, तो लोग व्यक्तिगत होने या सार्वजनिक रूप से नाराज़ होने से नहीं चूकते। इस कठिन दौर से कैसे पार पायें?
आचार्यश्री : देखिये, सत्य और संयम का रास्ता कठिन ही होता है। सत्य के रास्ते पर संयमी बनकर चलते रहो। ध्यान रखें कि आपकी भाषा प्रहारात्मक न होकर, समस्या पर केंद्रित होनी चाहिये। रही बात कठिन दौर की, तो आज़ादी के समय भी तो पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार होता था। लेकिन अंत में जीत तो सत्य की ही हुई न? सत्य की डगर कठिन है, इस पर चलना है तो यह सब तो सहना पड़ेगा। कोशिश रहे कि सकारात्मक चीजों को ज्यादा स्थान मिले। (फिर हंसते हुए..) आप कितनी सकारात्मक चीजों को स्थान देते हो?

सुमित शर्मा: महाराज सा ! हम लोग (ख़बर अपडेट) ‘सक्सेस टॉक्स’ के नाम से ‘सकारात्मक पत्रकारिता’ का एक मंच चलाते हैं। जिसमें अब तक क़रीब 50 ऐसे लोगों को मंच दिया जा चुका है, जिन्होंने ‘शून्य से शिखर’ की यात्रा की हो। ऐसे लोगों से देश और समाज प्रेरणा लेता है।
आचार्यश्री : ये तो अच्छी बात है।

सुमित शर्मा- आचार्यश्री ! एक और प्रश्न है। मैंने साधुमार्गी संघ से जुड़े कोलकाता के समाजसेवी सरदार मल जी कांकरिया.. को नजदीक से जाना है। उन्होंने खूब समाजसेवा की है। उनके स्वभाव में ‘देने का भाव’ ज्यादा देखा गया है। जनमानस में ऐसे भावों की जागृति कैसे हो सकती है?
आचार्यश्री : ये तो मन के भाव होते हैं। हां, सरदार मल जी ने समाज की सेवा की है। उन्होंने स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल्स बनवाये हैं। अगर किसी के मन में सेवा का भाव हो तो देने का भाव भी स्वत: ही जागृत हो जाता है।

जैसा कि आचार्यश्री रामलाल महाराज ने हेम शर्मा और सुमित शर्मा को बातचीत में बताया।

Note- इस संवाद पर अपनी राय हमें नीचे ‘कमेंट बॉक्स’ में दे सकते हैं।

1 COMMENTS

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