कहते हैं कि इंसान के लिये घूमना उतना ही जरुरी है, जितना भोजन करना। वैसे घूमने के कई फायदे भी हैं। जैसे कि- इससे मन ख़ुश रहता है, ज्ञान बढ़ता है, इंसान का व्यक्तिगत विकास होता है। यही वजह है कि आज टूरिज़्म का बिजनस इतना फल-फूल रहा है। यूं तो देश में कई तरह के टूरिज्म प्रलचन में है लेकिन इन दिनों टूरिज़्म का एक नया विकसित होने लगा है। जिसका नाम है- काऊ टूरिज्म। आख़िर ये ‘काऊ टूरिज़्म’ क्या है? आइये, बारीक़ी से समझने की कोशिश करते हैं।
वैसे तो हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, इसलिये गाय की पहचान रीति-रिवाज़, कर्मकांड और आस्था के रूप में ही अधिक । लेकिन गाय से एक पर्यटन का क्षेत्र भी विकसित हो सकता है, ये बहुत कम ही लोग जानते हैं। कहते हैं कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’। मौजूदा दौर में ‘काऊ टूरिज़्म’ एक ऐसी ही आवश्यकता बनकर उभरी है। इसलिये जरुरी है कि गाय का पर्यावरणीय महत्व को समझा जाये। इसे समझने और समझाने के लिये काऊ टूरिजम, गौशाला में पिकनिक, गौशाला प्रवास मददगार साबित हो सकते हैं। आजकल ‘काऊ कड़लिंग’ और ‘काऊ हगिंग’ के प्रयोग शुरू हो चुके हैं, गौशालाएं पिकनिक पॉइंट बनने लगी हैं, स्कूली बच्चों को गौशालाओं का प्रवास करवाया जाता है। धार्मिक-सामाजिक कार्यक्रम जैसे- कथा, भागवद सप्ताह, जन्मदिन, सगाई-शादी जैसे उत्सव भी गौशाला परिसर में होने लगे हैं। ये सब चीजें बताती है कि देश में ‘काऊ टूरिज्म’ को लेकर नई दिशा खुल चुकी है। इस दौरान जीसीसीआई के जरिये ‘काऊ टूरिज्म’ कंसेप्ट को बढ़ावा देने का प्रयास सोने पर सुहागे जैसा है।
आज गौशाला, गौसदन, गौधाम, पिंजराप्रोल, गौ रिसर्च सेंटर, गौ ब्रीडिंग फार्म आदि को ‘काऊ टूरिज्म’ के माध्यम से अवेरनेस तथा एज्युकेशनल केम्पस के रूप में विकसति किया जाने लगा है। ‘काऊ टूरिज़्म सेंटर’ के लिए गौशाला-गौसदन को एक आदर्श गौशाला मॉडल की तरह विकसित करना ज़रुरी है। ऐसे गौसदन के एन्ट्री गेट पर गौमाता की मूर्तियों के साथ भव्य प्रवेशद्वार, रिसेप्शन सेंटर, काऊ कडुलिंग और सेल्फी पॉइंट, गौमहात्म्य दर्शानेवाली फोटो गेलेरी, एम्फीथिएटर, स्लाइड शो वीडियो दिखाने के लिए छोटा सा थियेटर, गौ प्रोडक्टस और गौ साहित्य बिक्री स्टोल , गौदान के लिए व्यवस्था , सप्त गौदर्शन – गौ पूजन के साथ जैसी फेसिलिटीज हों तो कितना अच्छा लगेगा।
उसी तरह, गौशाला केम्पस में अलग-अलग गौवंश के लिए अलग-अलग स्थान, बीमार गायों के लिए हॉस्पिटल, दूध, गोबर-गौमूत्र से बने उत्पाद की व्यवस्था, लेबोरेटरी, पंचगव्य प्रोडक्शन सेन्टर एंड रिसर्च सेंटर, पंचगव्य आयुर्वेदिक हॉस्पिटल, हरी-भरी गोचर हो। अगर बड़ी जगह हो तो ऑर्गेनिक फार्मिंग भी की जा सकती है। बायोफर्टिलाइज़र , बायो पेस्टिसाइड प्रोडक्शन और बायोगैस प्लान्ट एवं गौ ट्रेनिंग सेंटर तथा शिक्षा के लिए गौ गुरुकुल भी बनवाया जा सकता है। साथ ही मैनेजमेंट ऑफिस, स्टाफ क्वाटर्स और घास गोडाउन और ऑर्गेनिक फूड रेस्टोरेंट- कैफे जैसी अन्य विशेष सुविधाओं से भरा कैम्पस तैयार किया जाये, जिसे देखने के लिये लोगों में उत्सुकता हो। ऐसा ‘काऊ टूरिज़म सेंटर’ स्थानिक आवश्यकता और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए बनाया जा सकता है। चूंकि अब नई पीढ़ी इसमें दिलचस्पी लेने लगी है, ऐसे में इनका क्रियान्वयन ज्यादा मुश्किल नहीं रहेगा।
आइये, हम सभी इस नए अभिगम को स्वीकार करें । इस कार्य में और लोगों को भी जोड़ें। ‘काऊ टूरिज्म सेंटर’ निर्माण के लिए आगे आएं। सेवा के साथ सुख और आनंद भी प्राप्त करें।
वंदे गौ मातरम् !!