“…और जिस लम्हें का हम सबको बेसब्री से इंतज़ार था। वो लम्हा आ चुका है- वैद्य विद्यासागर जी पंचारिया की 11 किताबों के विमोचन का।”
‘समर्पण’ कार्यक्रम में मंच संचालन कर रहे संजय पुरोहित ने जैसे ही ये कहा, वैसे ही पूरा का पूरा टी. एम. ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। खचाखच भरे ऑडिटोरियम में शहर के प्रबुद्धजनों के सामने स्वामी विमर्शानंद गिरि जी महाराज, मालचंद तिवाड़ी, डॉ. उमाकांत गुप्त, बुलाकी शर्मा, डॉ. चंचला पाठक, मोनिका गौड़ ने पंचारिया की 11 किताबों का विमोचन किया। इन 11 पुस्तकों में कविताओं से लेकर कहानियों और उपन्यास से लेकर निबंध तक की सारी विधायें शामिल थीं।
साहित्य लेखक का मन, चित्त वृतियों के संवेदना के स्तर पर एकाकार होने से शब्द के माध्यम से प्रकट होता है। कोई साहित्यकार बाहरी जगत को जितना जीता उतना ही उसके भीतर प्रकाश होता है। प्रकृति, स्थूल जगत और आध्यात्मिक चेतना के प्रति संवेदना की अनुभूति शब्दों से प्रकट होती। लेखक का समर्पण प्रेम को आख्यित करता है।
यह बात समर्पण कार्यक्रम में वैद्य विद्यासागर पंचारिया की 11 पुस्तकों के लोकार्पण कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही। सबसे पहले लालेश्वर महादेव मंदिर के महंत स्वामी विमर्शानंद गिरि जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
उन्होंने कहा कि-
“साहित्य में समाज का हित समाहित होता है। आज साहित्यकारों के समक्ष समाज की विसंगतियां चुनौती है। बीकानेर में साढ़े सात हजार तलाक के मामले हैं, कई युवा नशे की लत से ग्रस्त हैं, वहीं बच्चों में मोबाइल की आदत पड़ चुकी है। ये सब गंभीर बातें हैं, इन्हें समझने की ज़रुरत है। पंचारिया जी ने 11 पुस्तकें रचकर बीकानेर के साहित्य जगत को बहुत कुछ देने की कोशिश की है। मैं बीकानेरवासियों से उम्मीद करता हूं कि वे इन किताबों को ज़रूर पढ़ेंगे।”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. उमाकांत गुप्त ने वैद्य विद्यासागर की 11 पुस्तकों की तुलना 11 रुद्रों से की। उन्होंने लेखक की रचनाधर्मिता की तारीफ करते हुए कहा कि-
“मुझे पंचारिया जी की 6 ये किताबें मिलीं। जिनमें से 3 किताबों से मैं गुज़रा और 1 किताब को जीया। वैद्य जी की पुस्तकें संवेदनाओं से लबरेज हैं।”
व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने लेखक की विभिन्न विधाओं पर अपनी शैली से समीक्षा की। उन्होंने कहा कि-
“वैद्यजी ने नई तरह की शैली में इन किताबों की रचना की हैं।”
विशिष्ट अतिथि डॉ. चंचला पाठक ने कहा कि-“काव्य सृजन वस्तुतः एक ऐसी यात्रा है जहाँ स्वयं से संवाद करते हुए स्वयं को ही पाना है। यह स्वयं के पुनः-पुनः सृजन की प्रक्रिया है जिसके दर्पण में अन्य लोग भी स्वयं को देख पाते हैं। पंचारिया जी को इस पूरी साहित्यिक यात्रा के लिये बधाई।”
विशिष्ट अतिथि मोनिका गौड़ ने कहा कि-
“मुझे पंचारिया जी की 3 किताबें मिलीं। इनकी रचनाओं प्रेम की स्थूल से सूक्ष्म तक की जाने की भावयात्रा नज़र आती है। जिस तरह से वैद्य अर्क निकालते हैं। उसी तरह इन किताबों में भावों के अर्क को निकालने का काम पंचारिया जी ने किया है।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मालचंद तिवारी ने लेखक को यथार्थवादी बताते हुये कहा कि-
“वैद्य जी की रचनाओं में लक्षणा, व्यंजना और उपमा-अलंकार को जगह नहीं हैं। वे अभिधा से ओतप्रोत हैं। उनमें विरह में प्रेम की अभिव्यक्ति झलकती है। वैसे भी पौराणिक काल में वैद्य को कविराज कहा जाता था। और इन पंचारियाजी ने ताउम्र लोगों की नाड़ी देखकर उनका मर्ज पढ़ा है। उन्होंने लोगों को पढ़ा है, जो कि अब उनकी रचनाओं का हिस्सा हैं।”
लेखक वैद्य विद्यासागर पंचारिया ने कहा कि-
“आज का यह कार्यक्रम ‘समर्पण’ महज एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सपना है, जिसे आज से 3 बरस पहले देखा गया था। इस कार्यक्रम का नाम ‘समर्पण’ रखने के पीछे 2 कारण थे। पहला कारण तो यह कि आज मेरी पत्नी सरला देवी की तीसरी पुण्यतिथि है। और दूसरा कारण ये कि आज ही मैं मेरी 11 किताबें और मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री हरदेव जी पंचारिया की 2 किताबें- ‘नरबाधा’ और ‘समर्पण’ आप सबको समर्पित करना चाहता था। वैसे, अपनों को साहित्य से बेहतर और क्या समर्पित किया जा सकता है? इसलिये अब मैं मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री हरदेव जी को प्रणाम करते हुए ये सभी पुस्तकें आप सबको समर्पित करता हूं। मित्रों, एक बात बहुत ईमानदारी के साथ कहना चाहूंगा कि “वाकई ! साहित्य में बहुत शक्ति होती है।”
टी. एम. ऑडिटोरियम में आयोजित ‘साहित्य समर्पण’ में वैविध्यपूर्ण साहित्य विधा के अभिव्यक्ति की काफी सराहना की गई। आयोजकीय व्यक्त्व वरिष्ठ पत्रकार हेम शर्मा ने दिया। लेखक का परिचय आयोजन समिति के सदस्य और वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद जोशी ने लिखा। अपरिहार्य कारणों से उनकी अनुपस्थिति के चलते उनका लिखित व्यक्तत्व शिक्षक जीवन जोशी ने पढ़ा। पत्र वाचन- पत्रकार, फिल्मकार सुमित शर्मा ने किया। मंच संचालन संजय पुरोहित ने और सरस्वती वंदना सुमन शर्मा ने की। आपको यह भी बता दें कि लेखक विद्यासागर के पिता डॉ. हरदेव पंचारिया भी साहित्य सृजन से जुड़े हुये थे। उन्होंने ‘समर्पण’ और ‘नरबाधा’ के नाम से दो पुस्तकों लिखी थीं। उनकी इसी विरासत की छवि वैद्य विद्यासागर की इन 11 पुस्तकों में देखी जा सकती है।