हाल ही डूंगरगढ़ की हिन्दी प्रचार समिति-जनार्दन राय नागर विवि के बीच एमओयू हुआ है, जिसे आने वाले 5 सालों में भाषा, साहित्य और संस्कृति से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यह समझौता कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत की मौजूदगी में.. विवि की तरफ से रजिस्ट्रार डाॅ. तरुण श्रीमाली और समिति की तरफ से अध्यक्ष श्याम महर्षि एवं मंत्री रवि पुरोहित द्वारा निष्पादित किया गया। आइये, जानते हैं कि इस एमओयू के तहत किन-किन क्षेत्रों में काम किया जाएगा?
इन क्षेत्रों में करेंगे संयुक्त कार्य-
–भाषा, साहित्य और संस्कृति की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए समय-समय पर कई कार्यशालाएं, सेमिनार्स, सम्मेलन, प्रदर्शनियां और सांस्कृतिक कार्यक्रमों करवाये जाएंगे।
-पुस्तकालयों, अभिलेखागारों, सांस्कृतिक अनुरक्षण और ज्ञान के अन्य भण्डारों के विकास, डिजिटलीकरण और रख-रखाव के लिए कई कार्य किये जाएंगे।
-जाहिर तौर पर इससे विश्वविद्यालय और समिति से जुड़े छात्रों, संकाय सदस्यों, शोधार्थियों व अन्य व्यक्तियों के मध्य राजस्थानी व हिन्दी भाषा, साहित्य, इतिहास, पुस्तकालय विज्ञान, पर्यावरण और संस्कृति के अध्ययन, अनुसंधान और प्रसार को बढ़ावा मिलेगा।
-संयुक्त रूप से शोध ग्रंथों का प्रकाशन किया जाएगा।
-इस समझौते के बाद पीएचडी करने वाले शोधार्थियों को राजस्थानी, हिन्दी, इतिहास, सोशियल साईंस और सामाजिक सरोकारों से जुड़े विभिन्न विषयों में शोध करने में आसानी रहेगी।
-संसाधनों की कमी से रुके काम रफ्तार पकडे़ंगे।
-संस्था का 20 हजार पुस्तकों का अपना पुस्तकालय है और आईसीएचआर के स्काॅलर सहित देश-भर के शोधार्थी यहां अपने शोध कार्य के लिए आते रहे हैं। इस समझौते से संसाधनों की कमी से रुके शोध, सर्वेक्षण, प्रकाशन और आयोजनोें को गति मिलेगी।
समिति की सिस्टर्न कंसर्न ‘मरुभूमि शोध संस्थान’ द्वारा प्रकाशित द्विभाषी पत्रिका ‘जूनी ख्यात’ यूजीसी की केयर लिस्ट में पहले से ही शामिल है। राजस्थानी की सबसे पुरानी पत्रिका ‘राजस्थली’ भी पिछले 47 सालों से प्रकाशित हो रही है। संस्था द्वारा 70 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी है। इस एमओयू के बाद विश्वद्यिालय और समिति की बौद्धिक सम्पदा एक-दूसरे से साझी की जाएगी।1