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मेरी बात : राजा जी ! ‘जाग’ जाइये, ‘सुबह’ हो गई है..

गोरख पांडे की कविता है, जो लोकसभा चुनाव के परिणामों पर मौजू लगती है-

राजा ने कहा- “रात है।”
रानी ने कहा- रात है।
मंत्री बोला- रात है।
संत्री बोला- रात है।

यह सुबह-सुबह की बात है।

हर छोटे-बड़े ‘राजा’ को यही लगता है कि जो वो कहता है, सुनना चाहता है, वही अंतिम सत्य है। हालांकि उनका ऐसा सोचना ‘बिल्ली के आने पर कबूतर द्वारा आंखें बंद कर लेने जैसा है।’ मगर उनकी इस सोच का फायदा उठा ले जाते हैं- उस राजा को राज़ी रखने वाले उनके हाज़रिये और हंकारिये। लोकसभा चुनावों के परिणाम ने कई सीटों पर ऐसी तथाकथित ‘सुबहों’ में ‘रात’ का अंधियारा देखा है। गर शौक-ए-दीदार है तो नज़र पैदा कर…

देश में सबसे बड़ा झूठ तो भारतीय जनता पार्टी और पीएम नरेंद्र मोदी से बोला गया। जिसमें आईटी सेल और बिकाऊ मीडिया ने “अबकी बार 400 पार” का माहौल रचा। झूठ का अइसा तमाशा हुआ कि सब गीत गा-गाकर झूमने लगे। लेकिन… इस ‘रात’ की सुबह हुई तो सब सपने छन्न से टूट गये। एग्जिट पोल्स फेल हो गये, 400 पार के दावे ने 240 पर ही दम तोड़ दिया। क्यों…? क्योंकि राजा को हमेशा वही दिखाया गया था, जो उसे अच्छा लगता था।

भारत ‘भावनाओं’ का देश है। धर्म में ‘मस्त-मगन’ रखने का हुनर होता है। इस हुनर का इस्तेमाल हाल ही ‘राम’ को ‘वनवास’ से अयोध्या लाने में किया गया। राम मंदिर बना तो मीडिया ने देश में दीपावली सा माहौल बना दिया। मंदिर के गीत गाये गये लेकिन… पब्लिक के ‘मन के अंदर’ क्या है, ये जानने की कोशिश ही नहीं की गई। इस ‘रात’ की भी ‘सुबह’ हुई तो जनता ने उन्हें ही अयोध्या से वनवास दे दिया, जिन्होंने नारा दिया कि “जो राम को लाएं हैं, राम उन्हें लाएंगे।” क्यों.. ? क्योंकि हाज़रियों-हंकारियों ने अपने नेताओं का कभी ग्राउंड रियलिटी से सामना ही नहीं होने दिया।

“मोदी है तो मुमकिन है” सोचते हुए बीजेपी उम्मीदवारों ने तो मोदी को वोट साधने का जरिया बना डाला। जनहित के मुद्दों को भुलाकर, अपने क्षेत्र की जनता को भगवान भरोसे छोड़कर.. सिर्फ मोदी के नाम पर वोट मांगे गये। उन नेताओं का कोई ‘हितैषी’ कभी उन्हें धरातल की सच्चाई बताने आगे नहीं आया। इस ‘रात’ की भी ‘सुबह’ हुई, तो लाखों वोटों से जीत का दावा करने वाले हज़ारों में ही सिमट गये। मगर हाजरिये-हंकारिये तब भी ‘हांजी-हांजी’ करते दिखाई दिये। क्यों..? क्योंकि उन्हें तो आगे भी ‘राजा जी’ से अपने हित साधने हैं।

इस तरह छोटे-मोटे नगरों के सभी ‘राजाओं’ ने भी जैसा ‘सुनना चाहा’ था, सबने वैसा ही ‘दोहराया’। ठकुरसुहाते आंकड़ों से वाह-वाही की गई। किसी ने पांच लाख से जीत की बोली लगाई तो किसी ने रिकॉर्डतोड़ जीत का दावा किया। अपने नेताओं के पांव कभी जमीन पर टिकने ही नहीं दिये, उन्हें हमेशा हवा में उड़ाये रखा। हद तो तब हो गई जब शीर्षस्थ नेतृत्व भी इस बात से नामालूम बना रहा कि उस पर ‘संविधान को कुचलने’ के आरोप लग रहे हैं, ‘राम मंदिर का मुद्दा जिताऊ नहीं है, भावनाओं को झकझोरने वाले मुद्दे ठंडे पड़ते जा रहे हैं’, आज की पब्लिक ‘फैक्ट्स’ पर बात करने लगी है।

इलेक्ट्रोनिक मीडिया, आईटी सेल, प्रशंसक, हाज़रियों-हांकरियों में से जब कोई भी ये बताने-जताने को तैयार न हुआ, तो इस गहरा चुकी ‘रात’ की ‘सुबह’ भी आई.. जिस डिजिटल मीडिया का उपयोग कर मोदी ने पहली बार बंपर जीत का आग़ाज़ किया था, उसी डिजिटल मीडिया ने इस बार उन्हें ‘चिंतित’ कर दिया। डिजिटल मीडिया ‘मैन स्ट्रीम’ मीडिया बनती दिखाई दी। ‘फैक्ट्स फेंक, रिएक्शन्स देख’ की तर्ज़ पर काम करने वाले ध्रुव राठी के वीडियोज को करोड़ों लोगों द्वारा देखा गया। राठी ने इस दरमियान 100 करोड़ लोगों द्वारा वीडियो देखे जाने की बात कही। राठी तो फ़क़त एक नाम है, ऐसे कई राठियों ने लोकतंत्र के समर का माहौल बदलने का काम किया।

नतीजा क्या हुआ..? ये कि सब ओर से वे सच सामने आने लगे, जिन्हें हाज़रिये-हंकारिये अपने-अपने फायदों की ख़ातिर अब तलक छिपा रहे थे। बीजेपी का 400 पार का सपना चूर हो गया, पहली बार लगा कि ‘मोदी है तो भी मुमकिन नहीं’, कांग्रेस 100 के क़रीब सीटें जीत ले गईं, सपा-आरजेडी फिर से अपना वर्चस्व पाकर ख़ुश हो गये। अन्य राजनैतिक दल भी अपने-अपने उद्देश्यों के क़रीब आ गये। इस तरह लोकसभा चुनाव के इस परिणाम ने सबको.. सब तरह के पाठ पढ़ाए, कई चश्मे उतार दिये। सभी पार्टियों के सभी ‘राजाओं’ को कई तरह के ज्ञान से सामना कराया, कई राज बेपर्दा हुये, जो अब तलक लुकाए-छिपाए गये थे।

फिर वही सवाल- क्यों…? क्या वाकई ‘राजाओं’ को ‘दिन-ओ-रात’ का फर्क-फासला नहीं पता? जवाब है- नहीं..। ऐसे राजाओं को अब ‘जागने’ की ज़रुरत है। जो जीता, उसे जीत की असली वजह जानने की जरुरत है। जो हारा, उसे हार के सही कारण टटोलने की ज़रुरत है और जो जीतकर ‘हार’ गया उसे ‘जनता का दिल जीतने’ की ज़रुरत है। जीत को सियासत का ‘सिंहासन’ की बजाय जनता का ‘दिल’ मानने की ज़रुरत है। जनता के बीच रहकर, जनता के लिये वाकई काम करने की ज़रुरत है। झूठा महिमामंडन करने वाले, मौक़ापरस्त, अपना उल्लू साधकर बड़े पैमाने पर जनता का नुक़सान करने वाले ‘हाज़रियों-हंकारियों’ से बचने की ज़रुरत है। ध्यान रहे.. ये हाज़रिये-हंकारिये.. उनमें से कोई भी हो सकता है, जो अपने छोटे से फायदों के लिये देश का, हमारा और आपका बड़ा नुक़सान कर रहे हैं।

राजा जी ! ‘जाग’ जाइये, ‘सुबह’ हो गई है.. अब ‘रात’ को वाकई ‘सुबह’ कहने की ज़रुरत है।


3 COMMENTS

  1. Vrey true article in current scenario when we not understand grassroot situation we cannot develop any area .
    NOT believe on talk by Yes man(Hanji /Hankriye) go through truth so experienced is essential in any task BJP is an their infant stage long time is required for stable position.

  2. ‘ राजाजी ‘ और उसके हाजरियों और हंकारियों को आईना दिखाता और जनता को सचेत करता महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक आलेख। बधाई।

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