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‘द चेंजमेकर’- डॉ. कथीरिया कैसे देश की तकदीर बदलने वाले हैं?

‘द चेंजमेकर’ में आज हम आपकी मुलाक़ात कराने जा रहे हैं एक ऐसे शख़्सियत से, जिन्होंने देश में गौ उद्यमिता के क्षेत्र में एक मिसाल पेश की है, जो देश में एक नई क्रांति के जनक के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं। उस शख़्सियत का नाम है- डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया। वैसे भी इन दिनों यह नाम पूरे देश में सुर्खियों में है। वजह है- देश में ‘गो उद्यमिता प्रोत्साहन’ के लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाना। हाल ही उन्हें यह सम्मान राजस्थान के बीकानेर में ‘राजस्थान गौ सेवा परिषद’ द्वारा दिया गया था। जिसके बाद हर कोई डॉ. कथीरिया के बारे में तफसील से जानना चाहता है। आइये, ‘द चेंजमेकर’ की आज की कड़ी में जानते हैं कि आख़िर डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया कौन हैं? और किस तरह वो पूरे देश में एक चेंजमेकर के रूप में उभरकर सामने आए हैं। आइये, जानते हैं- डॉ. कथीरिया की शून्य से शिखर तक की पूरी यात्रा-

30 नवंबर 1954 को राजकोट के पास एक छोटे से गांव ‘कगवाड़’ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में एक बच्चे का जन्म होता है.. तब पिता रामजी भाई और मां रामभा बेन अपने इस बच्चे का नाम रखते हैं – वल्लभ कथीरिया। किसान परिवार में जन्मे कथीरिया के जीवन की शुरुआत ही खेती और गायों के बीच से होती है। जिसके चलते किसानों और गोपालकों से भी उन्हें ख़ास लगाव होने लगा। स्कूली पढ़ाई के दौरान ही वे संघ से जुड़ गये और संघ परिवार की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे. जिसमें ब्लड डोनेशन और मेडिकल कैम्प की गतिविधियां भी शामिल थीं.

डॉ. कथीरिया का सबसे बड़ा गुण रहा है- संवेदनशीलता। दूसरों की तकलीफ उनसे कभी देखी नहीं गईं। यही वजह रही कि जब वे बड़े हुए तो दूसरों की पीड़ा दूर करने वाला पेशा चुना- डॉक्टरी का। डॉक्टर बनने के बाद ‘परहित सरिस धरम नहीं भाई’ की सोच वाले डॉ. कथीरिया हर दिन 12 से 14 घंटों तक मरीजों की सेवा करते. कुछ बरसों बाद वे कैंसर के सर्जन बन गये थे। मधुर व्यहार और अच्छे इलाज के चलते वे जल्द ही एक ख्यातनाम कैंसर विशेषज्ञ के तौर पर स्थापित हो गये। उन्होंने दशकों तक मरीजों की सेवा की. वे अब तक 1 लाख से ज्यादा मरीजों का इलाज कर चुके हैं और साढ़े 7 हज़ार से ज्यादा सर्जरी करके मरीजों को स्वास्थ्य लाभ दिला चुके हैं.

लेकिन.. डॉ. कथीरिया यहीं नहीं रुकना चाहते थे. डॉक्टर बनकर तो फकत हज़ारों मरीजों की पीड़ा दूर की जा सकती है… वे तो लाखों लोगों को खुशहाल देखना चाहते थे. लेकिन कैसे? जवाब था- समाज सेवा करके। इसके बाद साल 1980 में डॉ. कथीरिया की सामाजिक जीवन में एंट्री होती है। अब जिस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान हो, जिस व्यक्ति के मन में सेवा का भाव हो, जिस व्यक्ति के दिमाग़ में कुछ कर गुजरने का विजन हो। भला उसे जनता क्यों न अपनाए? जनता ने न सिर्फ उन्हें अपनाया बल्कि अपना सिरमौर ही बना लिया. 1 बार नहीं..2 बार नहीं..3 बार नहीं बल्कि 4-4 बार अपना सांसद चुना. मोदी लहर तो अभी कुछ बरसों में आई है, डॉ. कथीरिया की लहर तो 1998 में आ गई थी. तब उन्होंने साढ़े तीन लाख वोटों से ऑल इंडिया रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. जिसके बाद अटल बिहारी सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री की कुर्सी पर काबिज कर दिया गया। वे भारत सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय में राज्यमंत्री पद का प्रभार निर्वहन कर चुके हैं। साथ ही भारत सरकार के कई विभागों की स्थायी समितियों में सदस्य रह चुके हैं।

डॉ. कथीरिया जितने अच्छे राजनेता रहे हैं, उतने ही अच्छे समाज सेवी भी हैं। साल 2001 में गुजरात में भूकंप के दौरान उन्होंने ‘नर सेवा-नारायण सेवा’ की जो मिसाल पेश की, आज भी देशभर में उनकी तारीफ की जाती है। डॉ. कथीरिया आज भी उतनी ही लगन के साथ समाज सेवा से जुड़े हैं और गुजरात की कई समाजसेवी संस्थाओं के ट्रस्टी हैं। इतना ही नहीं, उन्हें ‘दादाभाई नरोजी व्यवसायिक शांति एवं विकास पुरस्कार, बेस्ट प्रेसिडेंट-लॉयन इंटरनेशनल अवार्ड, ‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।

संघ से शुरु हुआ ‘ब्लड डोनेशन’ का उनका सफर आज तक बरकरार है. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि डॉ. कथीरिया अब तक 132 बार से भी ज्यादा रक्तदान कर चुके हैं। पूरे भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा राजनेता होगा, जिसने 132 बार रक्तदान किया हो. उनकी इस सेवा के लिये रेड क्रॉस सोसाइटी ने भी उन्हें ‘सेंचुरियन ब्लड डोनर’ के राष्ट्रीय पदक से सम्मानित किया है। दुनिया के कई देश घूम चुके अनुभवी डॉ. कथीरिया को कई यूनिवर्सिटीज में गौ सेवा, जल सरंक्षण और ग्रामीण विकास जैसे विषयों पर स्पीच के लिये बुलाया जाता है। अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में समर्पित करने वाले कथीरिया जी के जेहन में अब ये था कि- गाय माता के लिये कुछ बड़ा काम किया जाये. इसके बाद उन्होंने देशभर के गोपालकों, गोशालाओं से संपर्क साधना शुरु किया. सेवा, परोपकार, गौ सेवा रुपी भावों को देखते हुए उन्हें गुजरात में ‘गौ-सेवा और गोचर विकास बोर्ड’ का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. और कुछ सालों के बाद ‘राष्ट्रीय कामधेनु आयोग’ के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उन्हें ही दे दी गई.

लेकिन.. डॉ. कथीरिया अब भी कहां रुकने वाले थे। अब उन्हें देश में गो उद्यमिता से जुड़ी क्रांति का आग़ाज़ करना था। इसी सोच के बीच जन्म होता है- GCCI का। GCCI यानी ग्लोबल कन्फे-डरेशन ऑफ काऊ बेस्ड इंडस्डट्रीज. आसान भाषा में कहें तो देश में गौ आधारित उद्यमिता से जुड़े नये सेक्टर का आग़ाज़. डॉ. कथीरिया GCCI के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। फिलवक्त वो देश के सभी राज्यों में युद्धस्तर पर GCCI की टीमें तैयार करने में जुटे हैं. बकौल कथीरिया, “वो दिन अब दूर नहीं जब देश में गौ आधारित नई इंडस्ट्री खड़ी होगी, गोपालन आसान हो जाएगा, देश में जैविक खेती बढ़ेगी, देश में रोजगार बढ़ेगा और देश नई ऊंचाइयों को छू लेगा.”

डॉ. कथीरिया अपने इन्हीं इरादों से देश की तसवीर और तकदीर बदलना चाहते हैं। जिसका आधार होगा- गाय और गो प्रोद्योगिकी। उन्हें इस मिशन में भी कामयाबी मिले, ख़बर अपडेट की टीम ऐसी कामना करती है।

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