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मेरी बात : सिर साटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण।

15 अगस्त 2024 की तारीख़। आज़ादी का दिन। आप सबको स्वतंत्रता दिवस की बधाई। यह आर्टिकल लिखना शुरु करते ही पास ही कहीं से तेज़ आवाज़ में बज रहा यह गीत सुनाई देने लगा है-

“अपनी आज़ादी को हम हरगिज भूला सकते नहीं,
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।”

ज्यों-ज्यों गीत के बोल आगे बढ़ रहे हैं, त्यों-त्यों मेरी उंगलियां की-बोर्ड पर दौड़ी चली जा रही हैं। मैं लिखना शुरु करता हूं, आप पढ़ना शुरू कीजिए।

आज फिजाओं में घुले देशभक्ति गीत मुझे आल्हादित कर रहे हैं, मगर बीते कई दिनों से निराशा और रोष से भरी एक आवाज़ मुझे परेशान कर रही है। ये आवाज़ है- जीव रक्षा संस्थान के ज़िलाध्यक्ष- मोखराम धारणियां की। जिन्होंने 7-8 रोज़ पहले मुझे फोन करके हज़ारों खेजड़ियां कटने की व्यथा-कथा साझा की थी, बोले-

सुमित जी !

पिपलांत्री से पर्यावरणविद् श्यामसुंदर जी पालीवाल आपके कार्यक्रम ‘सक्सेस टॉक्स’ में आ रहे हैं। हम उनको छतरगढ़ में काटी गई खेजड़ियां दिखाने भी ले जाएंगे। हमने लाखों बीघा जमीन पर हज़ारों खेजड़ियां कटने की बात सबके सामने रखी लेकिन न तो शासन सुनने को तैयार है और न ही प्रशासन। इस मुद्दे पर हम केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, देवी सिंह भाटी, राजस्थान सरकार के मंत्री सुमित गोदारा, डॉ. विश्वनाथ से भी मिले, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। बीकानेर के अलावा नागौर और फलोदी से बिश्नोई समाज और पर्यावरण संरक्षण में विश्वास रखने वाले लोगों का जमावड़ा लगा है। यहां तक कि हमने कई अधिकारियों को भी लिखित रिपोर्ट दी। मुख्यमंत्री, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री को भी अवगत करवाया लेकिन सब सिफर ही रहा। हम सालभर से यह कवायद चला रहे हैं लेकिन सरकार के स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। ये लोग जिस पेड़ को राज्यवृक्ष कहकर पूजते हैं, पर्यावरण दिवस मनाते हैं, उसी पर सोलर प्लांट लगाने के लिये आरी-कुल्हाड़ी चलवाते हैं। हरियाळी तीज पर पौधरोपण कर पर्यावरण दिवस मनाते हैं, दूसरी तरफ हज़ारों की संख्या में खेजड़ियों की कटाई करने वालों पर कार्रवाई करने में लापरवाही करते हैं।

अरे ! कोई इन्हें बताओ कि खेजड़ी हमारा राज्यवृक्ष है। ये इस क्षेत्र के लिये वरदान कही जाती हैं। हम लोग इसकी पूजा करते हैं, गीतों में गाते हैं, हमारी धार्मिक आस्थाएं इससे जुड़ी हैं। फिर थोड़े-बहुत मुनाफे के लिये, सोलर प्लांट लगाने के लिये… इतनी खेजड़ियों को क्यों काटा जा रहा है? असल में ये सबके सब सोलर रूपी ‘मुनाफे’ के ‘ग़ुलाम’ हो गये हैं। इन्हें नहीं मालूम कि हज़ारों खेजड़ियों के काटे जाने से इस क्षेत्र का इको सिस्टम बिगड़ सकता है। बताइये- जीव-जंतुओं का क्या होगा? पशु-पक्षी कहां जाएंगे? हमारी धार्मिक आस्थाओं का क्या होगा? जीव-जंतु, पारिस्थितिकी तंत्र और हम जनता को नुक़सान पहुंचाकर.. सोलर हब का सपना साकार हो भी जाता है तो उसका क्या ही फायदा? फिर भी, सोलर एनर्जी प्रॉडक्शन करना मजबूरी है तो क्या खेजड़ियों को बचाते हुए सोलर प्लांट्स नहीं लगाये जा सकते? शासन-प्रशासन को यह बात समझ क्यों नहीं आती?

सुमित जी ! हमारे गुरु जांभोजी ने बिश्नोई संप्रदाय को 29 नियम की आचार संहिता दी थी। उसमें जीवरक्षा और पर्यावरण रक्षा प्रमुख हैं। हमारा समाज आज तक इन नियमों का पालन करता आया है, आगे भी करेंगे। एक जमाने पहले हमारी ‘मां अमृता देवी बिश्नोई’ ने खेजड़ली में पेड़ों को बचाने के लिये पेड़ों से लिपट कर आह्वान किया था कि

सिर साटे रूंख रहे,
तो भी सस्तो जाण।

जिसके बाद उनके आह्वान पर 363 प्रकृति प्रेमियों ने अपने प्राणों की आहुति दे डाली थी। मुझे लगता है कि वो समय फिर से आ गया है। अंधाधुंध कट रही खेजड़ियों के लिये हम सब पर्यावरण प्रेमी, गांव-शहर के लोग, समाज के लोग और दर्ज़नों वन-जीव संरक्षण की संस्थाएं मिलकर एक विशाल धरना देने जा रहे हैं। छतरगढ़ उपखंड कार्यालय के आगे। जिसके लिये हम हर गांव-गांव..शहर-शहर घूमकर लोगों को जागरुक करेंगे। इसके बाद भी शासन-प्रशासन नहीं चेता तो हम मां अमृतादेवी की तरह खेजड़ियों से चिपक जाएंगे। मर जाएंगे लेकिन खेजड़ियों को कटने नहीं देंगे। हमारा नारा है- “राज्य सरकार होश में आओ, खेजड़ियों को बचाकर सोलर लगाओ।”

पल-पल मेरे कानों में कुल्हाड़ी-आरी की आवाज़ें गूंजती रहती हैं। मेरा मन करता है कि एक भी खेजड़ी न कटने दूं (दांत भींचते हुए के से लहजे में) और अब ऐसा ही होगा। अब हम सबकी एक ही बात है- 16 अगस्त को.. चलो छतरगढ़।

इसके बाद मोखराम धारणियां ने कोई और बात नहीं की। फोन कट हो गया लेकिन 7-8 दिन से उनके बोल मेरे कानों में गूंज रहे हैं। आज 15 अगस्त को हम सब स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, कल 16 अगस्त है। छत्तरगढ़ का यह महाअभियान किस परिणीति पर पहुंचेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन, काफी हद तक मुमकिन है कि खेजड़ियां कटने के नुक़सान से नामालूम बैठे शासन-प्रशासन की नींद ज़रूर खुल जाएगी। आज से क़रीब डेढ़-2 साल पहले प्रतिष्ठित वेबसाइट ‘101 रिपोर्टर’ के लिये नोखड़ा गांव में सोलर प्लांट्स पर मैंने एक नेशनल रिपोर्ट तैयार की थी, तब भी लोगों में इस तरह का रोष था, लेकिन तब वो ग़ुस्सा कोई आकार नहीं ले सका था। भीतर ही भीतर चिनगारियां उठ रही थीं, लेकिन अब लगता है कि वो चिनगारियां..आग में तब्दील हो सकती है। शासन-प्रशासन को समय रहते चेत जाना चाहिये, नींद से उठ जाना चाहिये।

बहरहाल, ‘अपनी आज़ादी को हम… ‘ गीत ख़त्म होने वाला है। आर्टिकल खत्म होते-होते.. गीत का आख़िरी मुखड़ा सुनाई पड़ रहा है-

हम वतन के नौजवान हैं, हमसे जो टकराएगा।
वो हमारी ठोकरों से खाक में मिल जाएगा।
वक्त के तूफान में बह जाएंगे जुल्म-ओ-सितम
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा।
जो सबक बापू ने सिखलाया, वो भूला सकते नहीं।

अपनी आज़ादी को हम हरगिज भूला सकते नहीं,
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।

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