बीकानेर। राजस्थान सरकार ने इस बार 7 करोड़ 54 लाख पौधे लगाने का संकल्प लिया है। लक्ष्य बहुत बड़ा है और जिम्मेदारी भी। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह फकत सरकार और प्रशासन की ही जिम्मेदारी है? हम सबकी नहीं? हम नागरिक हमेशा शुद्ध हवा-पानी और पर्यावरण की तलाश में रहते हैं, पेड़ की छांव ढूंढ़ते हैं, हरियाली ढूंढ़ते हैं। लेकिन उसके लिये हम प्रयास कितने कर रहे हैं? हम सिर्फ सरकार और प्रशासन से ही उम्मीदें क्यों लगाते हैं? इन सवालों का जवाब हमसे बेहतर कोई नहीं दे सकता।
देखा जाए तो बीकानेर प्रशासन और सरकार ने 75वां जिला स्तरीय वन महोत्सव मना कर प्रेरणा दी है। बीछवाल स्थित मरुधरा बायोलॉजिकल पार्क में वन महोत्सव जनता को प्रकृति और उनके कर्तव्य को जागृत करने के लिए मनाया। उन्होंने तो अपना कर्तव्य पूरा किया, अब बारी हम सब नागरिकों की है। वन महोत्सव में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर का यह कहना कि “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान की शुरूआत कर देश भर के लोगों से इसमें अधिक से अधिक भागीदारी का आह्वान किया। यह भी जनता को संदेश है। प्रधानमंत्री की यह अपील आज जन आंदोलन बन गई है और देश भर में अधिक से अधिक पौधारोपण किया जा रहा है। पौधे लगाने के साथ इनके संरक्षण का संकल्प लेना जरूरी है।”
बीकानेर की बहुत सी संस्थाएं, संगठन, सरकार विभाग, अफसर और लोग पोधरोपण कर भी रहे हैं।अच्छे प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन जो अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे है या जो समझकर नहीं निभा रहे हैं, उन्हें कैसे समझाया जाए? पेड़ और प्रकृति संरक्षण विशुद्ध रूप से नागरिक कर्तव्य और मनुष्य धर्म है। केवल सरकार और प्रशासन पर जिम्मेदारी डालना नागरिक धर्म की अवहेलना है।वैसे, पर्यावरण के प्रति हमारी बड़ी जिम्मेदारी होती है लेकिन हम ईमानदारी से ये जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। आध्यात्मिक मान्यताओं में ये पाप कर्म के समान है। जिसका नतीजा भी प्रकृति की नाराज़गी के तौर पर हम सब भुगत ही रहे हैं।
मित्रो ! पेड़ लगाने से कितना पुण्य मिलता है, यह शास्त्रों से जान लीजिये। इसे प्रकृति मां प्रसन्न रहती है, भावी पीढ़ी के लिये ख़ुशहाली के द्वार खोलती है, धन-धान्य से संपन्न करती है और समृद्धि लाती है। इन सबके लिये और भावी पीढ़ी के लिये ही सही, आइये एक पेड़ हम भी लगाएं।