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विमर्श: राजस्थान सरकार के बजट में गो उद्यमिता विकास की नीति उभरी

राजस्थान सरकार के पहले पूर्णकालिक बजट में राज्य में ब्लाक स्तर पर 50-50 किसानों को गो-वंश से जैविक खाद उत्पादन के लिए गोर्वधन जैविक उर्वरक योजना शुरु की है। खाद बनाने वाले हर किसान को 10 हजार रुपये की सहायता दी जाएगी। नरेगा के तहत गोर्वधन जैविक उर्वरक परियोजना में कम्पोस्ट पिट, फल-सब्जी और पौधरोपण पर 197 करोड़ 86 लाख की राशि ख़र्च की जाएगी। ऑर्गेनिक और कन्वेंशन फार्मिंग बोर्ड का गठन किया जाएगा। जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिए जिलों में यूनिट और लैब स्थापित होगी। राजस्थान सरकार की इस बजट घोषणा से यह नीतिगत रूप से तय हो गया है कि गोबर और गोमूत्र का खाद बनाने में उपयोग होना सुनिश्चित है। राजस्थान गो सेवा परिषद की पहल पर वेटरनरी विश्वविद्यालय, कृषि विभाग, पशुपालन विभाग ने बीकानेर ज़िले के हर गांव के 2-2 लोगों को गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने की ट्रेनिंग दी थी। इस तरह कुल 1480 लोग प्रशिक्षित हुए। 4 जुलाई 2024 को राजस्थान गो सेवा परिषद का शिष्ट मंडल जयपुर सीएमआर में मुख्यमंत्री से मिलने गया। सीएमआर के अधिकारी राज कुमार सिंह को परिषद का कंसेप्ट नोट दिया और बताया कि गोपालक को गोबर और गोमूत्र का पैसा मिले। गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बने और यह रसायनिक खेती का विकल्प हो। इससे प्रदेश में गो आधारित उद्यमिता का नया सेक्टर खुलेगा। इस मुद्दे पर सकारात्मक बातचीत हुई। अधिकारी ने इस कंसेप्ट को बहुत पॉजिटिव लिया था।

राजस्थान सरकार के इस बजट घोषणा से राजस्थान गो सेवा परिषद के कंसेप्ट को संबल मिला है। परिषद के शिष्टमंडल की तरफ से मुख्यमंत्री के नाम दिये गये नोट में कहा गया है कि “राजस्थान गो सेवा परिषद का गठन 2016 में किया गया था। यह एक पंजीकृत संस्था है। इसके गठन के मात्र दो ही उद्देश्य हैं, पहला- गोपालकों को गोबर और गोमूत्र की क़ीमत मिले। गोबर से खाद और गो मूत्र से कीट नियंत्रक बने। गो उद्यमिता का विकास हो। हर अनुदानित गोशाला में केवीके नॉर्म्स के अनुसार गोबर खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रण बनाने की अनिवार्यता हो। दूसरा- प्रदेश की गो उद्यमिता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं संगठित होकर एक मंच पर आए।”

इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 5 जनवरी 2019 में जयपुर में ऐसी संस्थाओं के प्रतिनिधियों का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन करवाया गया। जिसमें भारत सरकार और राजस्थान सरकार के मंत्रियों ने हिस्सा लिया। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऑनलाइन जुड़े। देशभर से करीब 125 प्रतिनिधियों ने इसमें शिरकत की। फिर, राजस्थान सरकार ने सम्मेलन की निष्कर्ष रिपोर्ट मांगी थी। गोबर से खाद और गोमूत्र से कीट नियंत्रक बनाने के लिए राज्य सरकार के निर्देश पर कमेटी गठित की गई। इस वैज्ञानिकों की कमेटी ने खाद और कीट नियंत्रक बनाने का डेमो तैयार किया और अनुशंसा दी। इस अनुशंसा के आधार पर परिषद ने राजस्थान सरकार, भारत सरकार और नीति आयोग को गोबर गोमूत्र प्रसंस्करण की नीति बनाने का अवधारणा नोट भेजा। इस पर कार्यवाही हुई है।

परिषद ने विभिन्न स्तरों पर सम्मेलन के मंच से इस विचार को आवाज दी है। इस मुद्दे पर राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विवि के साथ एमओयू किया गया। परिषद के प्रस्ताव पर इसी विश्व विद्यालय ने गोबर गो मूत्र प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय स्तरीय सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम इसी सत्र से शुरू किया है। परिषद ने गो उद्यमिता की तरफ सरकारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए राष्ट्रीय स्तरीय गो उद्यमिता प्रोत्साहन पुरस्कार की शुरुआत की है। परिषद देशभर में इस दिशा में काम करने वाली संस्थाओं के साथ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जुड़ी हुई है। अपने उद्देश्यों को लेकर परिषद सतत रूप से प्रयासरत है। हर क़दम पर सफलता मिलती जा रही है। राजस्थान सरकार के बजट घोषणा से यह कंसेप्ट नीति में परिणीत हो गया है।

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