बीकानेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री चुनाव जीत गए हैं। ये और बात है कि ये जीत उनके और उनकी पार्टी के लोगों के दावों की तुलना में बहुत छोटी है। बीकानेर की जनता में अपने सांसद को लेकर ग़ज़ब की नाराज़गी देखी गई। हर दूसरा आदमी यह कहते सुना गया कि “अर्जुन राम मेघवाल ने बीकानेर के लिये काम नहीं किया।” मेघवाल से नाराज़गी के बावजूद जनता में मोदी को लेकर दीवानगी थी। मेघवाल को इसका फायदा भी हुआ। वे चुनाव सभाओं में वे मोदी के गीत गा-गा कर कहते रहे कि “इस बार उम्मीदवार कमल है। देखना, हम भारी मतों से चुनाव जीतेंगे।” मोदी की इसी छत्रछाया के चलते मेघवाल एक बार फिर विजय द्वार तक पहुंचने में कामयाब हो गये। लेकिन क्या लाखों के वोटों से बड़ी जीत का दावा करके.. मामूली मार्जिन से जीतने को ‘विजयी’ होना कहा जाए? जाहिरी तौर पर ये मोदी और कमल की साख बढ़ाने वाली बात तो कतई नहीं है। हां, इसे ‘सच से सामना’ होना ज़रूर कहा जा सकता है।
खैर जो हुआ, सो हुआ। मेघवाल के लिये तो ये ख़ुशी की ही बात है कि वे चौथी मर्तबा चुनाव जीत गए हैं। लेकिन.. अब बहुत हुआ। अब अगले 5 साल उन्हें बीकानेर के विकास को समर्पित करने होंगे। अब उन्हें उपेक्षित बीकानेर के विकास करवाने के बारे में सोचना होगा। यही एक वो तरीक़ा है, जिससे वे बीकानेरियों की नाराज़गी दूर कर सकते हैं, अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर से पा सकते हैं। भले ही उनके ‘हंकारिये’ ठकुरसुहाती बातों से उन्हें ख़ुश कर दें लेकिन उन्हें दिल पर पत्थर रखकर सच को स्वीकार लेना चाहिये कि “बीकानेर के विकास की अनदेखी ने ही उनके वोटबैंक पर चोट की है।”
मेघवाल जी ! बीकानेर के विकास का भरसक प्रयास कर बीकानेर संसदीय क्षेत्र के प्रति दायित्व को निभाने में ही आपका सम्मान है। नहीं तो.. भले ही आप जीत गये हों लेकिन जनता का मन कभी नहीं जीत पाएंगे। पार्टी में गुटबंदी, पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी, जनता के बीच झूठी घोषणाओं, झूठे वादे करने के जमाने अब लद गये। आज की जनता सब समझती हैं। ऐसा करने वाला.. विकल्प के अभाव में भले ही जीत जाए, लेकिन क्या वो आईने के सामने खड़ा होकर ख़ुद को ‘विजयी’ कह सकने का साहस भर सकता है?
शेख़ ज़हूरूद्दीन का एक शे’र अर्ज़ है-
कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ,
धोना वही जो दिल की सियाही को धोइए।