मेरी बात : गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज की ये सकारात्मक ‘पहल’ सराहनीय है

-सुमित शर्मा, संपादक, ख़बर अपडेट

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः, स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

गुरुकुल से आए पंडितों ने जैसे ही वरमाला के लिये वैदिक मंत्रोच्चार शुरु किये, आसमान रौशनी से गुलज़ार होने लगा। पूरा पुष्पवीर रिसोर्ट आतिशबाज़ी से प्रकाशमान हो गया। ये चमक फकत आसमान में ही नहीं पसरी थी, बल्कि वहां मौजूद गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज के हर शख़्स के चेहरे पर थी। ..और हो भी क्यों न? मारवाड़ क्षेत्र में पहली मर्तबा ‘गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज सामूहिक विवाह’ जो हो रहा था।

पूरा समाज एक जाजम पर था। हर कोई इस ऐतिहासिक पहल को लेकर ख़ुशी जाहिर कर रहा था। जो सब हो रहा था, वो इतना कतई आसान न था। किसे मालूम कि इस पूरी कवायद के पीछे महीनों की मेहनत लगी है। मुझे लगता है कि समाज के उन सच्चे सिपहसलारों की मेहनत को रेखांकित ज़रूर किया जाना चाहिये। इसलिये ‘मेरी बात’ के कॉलम में आज ‘गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज के सामूहिक विवाह’ की बात। आपसे गुज़ारिश कि अगर लेख अच्छा लगे तो इसे औरों को भी शेयर करें ताकि इस सकारात्मक पहल का और प्रचार हो सके।

वो 30 मार्च 2025 की तारीख़ थी। बीकानेर के करमीसर रोड स्थित गौतम मंदिर में गौतम जयंती महोत्सव मनाया जा रहा था। जिसमें गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज के अलग-अलग परिवारों के वरिष्ठजन मौजूद थे। तब मंच से लक्ष्मण उपाध्याय नाम के एक युवा ने प्रस्ताव रखा कि- “क्या हमारे समाज में भी दूसरे समाजों की तरह ‘सामूहिक विवाह’ की परंपरा शुरु नहीं की जा सकती?” इस सवाल के जवाब में ज़ोरदार तालियां बजीं। ये तालियां समाज की स्वीकृति थी। इसके बाद डॉ. मोहन लाल जाजड़ा ने सबको संकल्पित भी कर दिया। यानी पहल का आग़ाज हो चुका था, अब अंजाम की तैयारी थी।

तैयारियां भी शुरु हुईं। सबसे पहले समाज के सक्रिय लोगों की टीमें तैयार की गईं। फिर कई दिनों तक बैठकों का दौर चला। आरंभ से अंत तक की रणनीति तैयार पर चर्चा हुई। निष्कर्ष निकला कि सामूहिक विवाह से पहले ‘गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज युवक-युवती सम्मेलन’ होना चाहिये, ताकि इच्छुक परिवार एक-दूसरे के बारे में जान सकें। इसके लिये गांव-शहर, ढाणी-मौहल्लों में जाकर समाज के परिवारों से जनसंपर्क करना होगा। टीम ने ‘जागौ, चेतौ, एकौ अर खड़कौ’ की तर्ज पर इसे पूरा करने का मानस बनाया। क्या नोखा, क्या लूणकरनसर, क्या डूंगरगढ़ और क्या कोलायत..घर-घर जाकर समाज बंधुओं से चर्चाएं कीं गईं।

फौरी तौर पर ये मालूम चला कि गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज.. विवाह से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहा है, मसलन-

-आजकल समाज में महंगी शादियां को ‘साख’ और ‘हैसियत’ का मापदंड माना जाने लगा हैं। कई समर्थ लोग महंगी शादियों से अपनी ‘अमीरी’ का शक्ति प्रदर्शन करने लगे हैं, जिसका खमियाजा निम्न और मध्यमवर्गीय परिवारों को भुगतना पड़ता है। उन्हें कर्ज़ लेकर इस हौड़ में शामिल होना पड़ता है।
-आजकल शादियों में फिजूलख़र्ची एक आम बात है। ज़रुरत से ज़्यादा खाने की वैरायटीज, दर्ज़नों मिठाइयां, डीजे-साउंड-म्यूजिक पर अनाप-शनाप ख़र्च जैसी समस्याओं ने कंपीटिशन की स्थिति पैदा कर दी है। ..और इस ‘होडाहौडा’ में सामान्य परिवारों के ‘गोडे’ फूट रहे हैं।
-आजकल शो-ऑफ के चलते शादी की रस्मों के स्वरूप बदलने लगे हैं। रस्म अदायगी के पारंपरिक तरीक़ों की जगह.. वैस्टर्न कल्चर ने ले ली है। जैसे- वरमाला आदि का तरीक़ा बिगड़ने लगा है।

इस तरह ऐसी अनेक समस्याएं थीं, जिनका एक ही समाधान नज़र आ रहा था- सामूहिक विवाह का आयोजन। इसी की नींव रखने के लिये ‘गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज युवक-युवती सम्मेलन’ रखा जा रहा था। 8 अगस्त 2025 को गंगाशहर के संपत पैलेस में यह सम्मेलन रखा गया। गणपत उपाध्याय एंड टीम ने व्यवस्थाएं संभालने की जिम्मेदारी ली। जिसमें क़रीब 200 युवकों के परिवारों ने हिस्सा लिया। ..लेकिन युवतियों के परिवारों ने तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम रुचि दिखाई। इस विडंबना भरी बात ने साबित कर दिया कि इस समाज में सामूहिक विवाह को लेकर लड़कियों के परिवारों की उतनी स्वीकार्यता नहीं आई है। वैसे तो हर नये प्रयास में ऐसा होना एक आम सी बात होती है लेकिन हां, समाज की इस प्रतिक्रिया ने टीम को मायूस ज़रूर कर दिया। यहां तक सबको समझ आ चुका था कि समस्या सिर्फ दिखावे और फिजूलख़र्ची की ही नहीं हैं, बल्कि ऐसी भी कुछ हैं, जो खुलकर सामने नहीं आई हैं। ..लेकिन और कौन-कौन सी समस्याए हैं? उन्हें समझना और बाद में उन परिवारों को उनके समाधान सुझाना ज़रुरी था। यही एकमात्र तरीक़ा था। यह एक लंबी प्रक्रिया थी, टीम ने महर्षि गौतम की जय बोलते हुये एक और बार हुंकार भरी और सब निकल पड़े- दुगुनी ऊर्जा के साथ, बदलाव की एक नई बयार बहाने..

समाज के वरिष्ठ नागरिक जगदीश जी मास्टर को सामूहिक विवाह आयोजन का संयोजक बनाया गया। उन्होंने पग-पग पर युवाओं सरीखा जोश दिखाया। कुछ टीमें जनसंपर्क में जुटीं, तो कुछ को सहयोग राशि इकट्ठी करने का काम दिया गया। इसी तरह अन्य व्यवस्थाओं के लिये काम बांट दिये गये। समाज के कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन को सफल बनाने का वायदा किया। जगदीश जी मास्टर, लक्ष्मण उपाध्याय, विजय पाईवाल, गणपत उपाध्याय, दिनेश जोशी, धीरज पंचारिया, शिव रतन पंचारिया, विजय कुमार जोशी, हरि गोपाल उपाध्याय, प्रकाश जोशी, राम किशन उपाध्याय, किशन जोशी, सुंदर जोशी, राजेंद्र उपाध्याय, देव शंकर जोशी, रामेश्वर पाणेचा, शिवदयाल बच्छ, शिव जाजड़ा, श्रवण पंचारिया, डॉ. पवन पंचारिया, बिरजू प्यारे, हरिकांत उपाध्याय, श्री प्रकाश, रघुवीर उपाध्याय, महादेव उपाध्याय, इंद्र जाजड़ा, रवींद्र जाजड़ा, वासु जोशी, महेंद्र जाजड़ा, रमेश उपाध्याय, एसपी उपाध्याय, शिव प्रसाद पाणेचा, राजेंद्र प्रसाद जैसे सक्रिय सदस्यों (एक-एक का नाम लिये बगैर) ने क़दम से क़दम मिलाते हुये काम किया।

जनसंपर्क टीम ने बीकानेर के आसपास के क्षेत्र जैसे- नोखा, पांचू, नाथूसर, सांईसर, मूंझासर, सियाणा, गुड़ा, चरकड़ा, श्रीबालाजी, गजनेर, कोलायत, बीठनोक, बज्जू, कोलासर, मेघासर, भोजूसर, उदासर, नापासर, सीथंल, छत्तरगढ़, कतरियासर, मकड़ासर, पंपालसर, दुलचासर, लूणकरनसर, डूंगरगढ़ समेत चारों दिशाओं में गांव-शहर, ढाणी-मौहल्लों में जाकर समाज के हर वर्ग से विचार-विमर्श किया। तब जाकर सामूहिक विवाह आयोजन से जुड़े कई डर और समस्याओं का खुलासा हुआ। जैसे-

किसी परिवार से कहा कि- “हम कोई ‘थाकियोड़े’ (आर्थिक रूप से कमज़ोर) थोड़े ही हैं, जो बेटी को सामूहिक आयोजन में ब्याहेंगे। वैसे भी कहा जाता है कि ‘बेटे रौ बाप माथै रो मौड़, बेटी रौ बाप, पगां री ठौड़’। इस आयोजन में शादी करके ‘बापड़ौ’ थोड़े ई बनणौ है। ई वास्तै म्हैं भी राजी अर म्हारै घर रा ऊंदरा भी राजी।”
टीम ने समझाया कि- “गिनायतां ! जित्ता मूंडा, बित्ती बातां.. किसी के कहने से कोई कमज़ोर-कमत्तर थोड़े ही होता है। बेटियां तो ‘जी री जड़ी’ होती है। आप किसी से कंपीटिशन मत कीजिये। कर्ज ख़राब चीज़ है। बिगाड़ै तो पलक लागै, सुधारणै मायं बरस लागै। …बल्कि इस पहल की पैरवी करके आप उनका मुंह बंद कर सकते हैं। वैसे भी, सामूहिक विवाह में बेटी का बाप आएगा तो बेटे के बाप को भी आना ही पड़ेगा न? हम आपसे वादा करते हैं कि सामूहिक विवाह आयोजन में बेटी रौ बाप, माथै री मौड़ होगा। पगां री ठौड़ नहीं।”

किसी ने कहा कि- “सामूहिक विवाह में सीमित संख्या में रिश्तेदारों को ही आमंत्रित किया जाता है। ऐसे में जिन्होंने हमें न्यौता, हम उन्हें नहीं बुला पाएंगे। ऐसे में फिर समठावणी, बेस-भागा, सीख-कंबल के उतर-पातर का ‘मेणा’ रह जाएगा। उनकी उधारी बाक़ी रह जाएगी।
टीम ने समझाया कि- “मालकां ! सगळा लोग तो मेह बरस्यां भी राजी कोनी हुवै। आ दुनिया चढिये नै भी हंसै, अर उपाळै नै भी हंसै। आप तो अपने सब रिश्तेदारों को बुलाइये। इस आयोजन में तो पूरा समाज ही आपका परिवार होगा। आप हिम्मत करके इस सकारात्मक पहल की पैरवी कीजिये।”

कई परिवारों ने तो टीम की बातों पर सहमति भी जताई लेकिन उन्हें समाज के तानों का डर सता रहा था, बोले- “आपकी बात सही हैं कि- ‘गीली गार रैत सूं, सीरो कोनी बणै।’ लेकिन अगर हमने सामूहिक आयोजन में शादी कर दी तो उम्रभर लोगों का ‘ठोला’ रह जायेगा। वे मौक़ों की तलाश में रहेंगे और मौक़ा मिलते ही वो ठोला मारेंगे।”
टीम ने कहा कि- “हुकम ! हांडी माथै ढकणी लागै, पण लोगां रै मूंडै पर ढकणी कौनी देइजै। सगो जी ! पूरा समाज आपको सराहेगा। आप तानों की परवाह मत कीजिये। ऐसा आयोजन होगा कि सब ओर सराहना मिलेगी। आ मिनखां री जबान है, अर जबान रा ई टका लागै।”

किसी ने कहा कि “लड़की की शादी पहले कर दी तो बाद में लड़के की शादी के लिये कौन तैयार होगा?” किसी ने कहा कि “आटा-साटा से ही शादी करेंगे।”
इस तरह इन सबको टीम ने अलग-अलग तर्कों से आश्वस्त करने की कोशिश कीं। जिसमें कभी शोभा मिली तो कभी डांट, कभी मान मिला तो कभी अपमान। कभी ताने तो कभी बहाने, कभी सफलता तो कभी विफलता। ये सब झेलते हुए 4 महीनों का वक़्त हो रहा था। …तमाम समझाइश के बावजूद लोगों के मन से ताने-उलाहने, ठोले-मेणे और कमतर होने का डर नहीं निकल पा रहा था। एक तरफ कई लोगों की कई महीनों की मेहनत थी, तो दूसरी तरफ ऐसे झूठे डर। ज़रा सोचियेगा, हम ये कैसा भयभीत समाज तैयार कर रहे हैं? जो झूठे डर के ‘झूठेपन’ को भी नकार नहीं पा रहा है? तिस पर कोई आगे बढ़कर बोल भी नहीं रहा है। आख़िर क्यों? ये क्यों रूपी सवाल भीतर तक कचोट रहा है, आपके पास जवाब हो तो इस लेख के नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।

खैर… तो क्या सारी कोशिशें सिफर हो गई? तो क्या कोई भी इस आयोजन में बेटी ब्याहने को तैयार नहीं हुआ? तो क्या सबको निराशा हाथ लगी? नहीं। होइहि सोइ, जो राम रचि राखा। इस तमाम पशोपेस के बीच सकारात्मक सोच वाले दो लोग आगे आए। मैं चाहूंगा कि इन दोनों पिताओं को पूरे समाज को शाबाशी देनी चाहिये, जिन्होंने झूठे डर से न डरकर टीम की कोशिशों को सफलता में बदल दिया। ये नाम हैं- पुरुषोत्तम उपाध्याय और गजानंद उपाध्याय।

पुरुषोत्तम उपाध्याय ने कहा कि “जब मेरा समाज हिम्मत करके ये सकारात्मक पहल शुरु कर सकता है तो फिर मैं यह हिम्मत क्यों नहीं करूं? इस सकारात्मक पहल के लिये मैं किसी नकारात्मक प्रतिक्रिया से नहीं डरने वाला। मैं मेरी बिटिया की शादी इस सामूहिक विवाह समारोह में ही करुंगा।”
इसी तरह गजानंद उपाध्याय ने कहा कि “मैं इस सकारात्मक पहल का स्वागत करता हूं। मैं अपनी 2 बेटियों की शादी इस सामूहिक विवाह आयोजन में करुंगा।”
गजानंद उपाध्याय के भाई दिनेश उपाध्याय ने कहा कि “बीते 5-7 दिनों में हम तरह-तरह की बातें सुनने को मिलीं। किसी ने कहा कि- आप पांचों भाई सक्षम हैं, फिर सामूहिक विवाह आयोजन में शादी क्यों कर रहे हैं? तो किसी ने ताने भी मारे। लेकिन हमारा जवाब यह है कि किसी अच्छी पहल के लिये आख़िर किसी को तो आगे आना पड़ेगा ना?”

खैर.. इस पूरी कवायद के बाद शादी के लिये 3 जोड़े तैयार थे। चौथा जोड़ा- तुलसी संग सालिग्राम जी था। देव प्रबोधिनी एकादशी का दिन (2 नवंबर 2025) भी आ गया। पुष्पवीर रिसोर्ट में इस आयोजन की व्यवस्थाओं ने सबको हैरान कर दिया। पूरा समाज एक परिवार की मानिंद नज़र आ रहा था। सामूहिक विवाह का ऐसा आयोजन हुआ, जिसकी अन्य लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी। ..और इस भव्य-दिव्य आयोजन का साक्षी बन रहा था- पूरा गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज।

इस समारोह ने सामूहिक विवाह आयोजन के कई सकारात्मक मापदंड स्थापित किये। जिनसे कई समस्याओं के समाधान स्वत: ही निकल गये, मसलन-

  1. फिजूलखर्ची पर रोक- इस समारोह में एक ही जगह.. एक ही खर्च में 3 जोड़ों के लिये शानदार आयोजन कर लिया गया। जिससे फिजूलखर्ची पर रोक लगी।
  2. सात्विक-संतुलित भोजन- मेहमानों के लिये सात्विक-संतुलित भोजन बनाया गया। जिसमें न तो बेशुमार मैन्यू थे और न ही दर्जनों तरह की मिठाइयां। सबने ‘उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाये नाली में’ की तर्ज पर आनंद से भोजन लिया।
  3. डीजे-डिस्पोजेब्स का उपयोग नहीं- इस समारोह में न तो डीजे का उपयोग हुआ और न ही डिस्पोजेबल्स का। ऐसा करके समाज ने पर्यावरण के प्रति सजगता का संदेश भी दिया।
  4. भव्य और दिव्य आयोजन- इस आयोजन को पुष्पवीर रिसोर्ट में रखकर इसे भव्य रूप दिया गया, ताकि इसमें शामिल परिवारों को कोई कमज़ोर-कमतर वाला ताना न दे सके।
  5. मेहमानों का विशेष स्वागत- समारोह में शिरकत करने वाले मेहमानों का ढोल-नगाड़ों से स्वागत किया गया। इससे संदेश गया कि गुर्जरगौड़ समाज.. सकारात्मकता पहल के पैरोकारों का पलक-पावड़े बिछाकर स्वागत करता है।
  6. पारंपरिक तरीकों से रस्म अदायगी- इस आयोजन में रस्म अदायगी के पारंपरिक तरीक़े अपनाये गये। जैसे- वरमाला को वैदिक मंत्रोच्चार से करवाकर परंपराओं को पुष्ट किया गया।
  7. बेटी का बाप माथै री मौड़- बेटियों के पिताओं को खास तवज्जो दी गई। ताकि समाज में यह संदेश जा सके कि बेटियों के बाप ‘पगां री ठौड़’ नहीं हैं, वे समाज के ‘माथै री मौड़’ हैं।
  8. समाज की स्वीकृति- दावा किया जा रहा है कि इस आयोजन में 5 हज़ार से ज्यादा समाज बंधुओं ने पहुंचकर जोड़ों को आशीर्वाद दिया। इससे साबित होता है कि ऐसी पहल को समाज की खुलेदिल से स्वीकृति है।
  9. बेटियों को विदाई में तोहफे- समाज ने तीनों बेटियों की विदाई के समय तोहफे भी दिये, ताकि बेटियां अपनों के इस साथ-सहयोग को हमेशा सहेज कर रख सकें।
  10. सबका सहयोग- इस आयोजन में समाज ही परिवार था। किसी का किसी से कोई कंपीटिशन नहीं। ऐसे में सबने अपने-अपने तरीके से, इसमें अपने-अपने हिस्से का सहयोग दिया।

उपरोक्त वजहों से इस आयोजन में जो भी शरीक हुआ, वो इसकी सराहना करने से ख़ुद को रोक न सका। फिर चाहे डॉ. बीडी कल्ला हो या भंवर सिंह भाटी या फिर ब्राह्मण समाज या अन्य समाज का कोई प्रबुद्ध व्यक्तित्व। भले ही इस बार जोड़ों की संख्या कम रही हो लेकिन इस आयोजन ने कई बेड़ियों को तोड़ने का काम ज़रूर किया है। समाज में ऐसी सकारात्मक पहली पहल करने वाले हिम्मतदां लोग ही असली नायक होते हैं। बदलाव ऐसे ही प्रयासों से आता है। इसलिये उन्हें सलाम। पूरे समाज को दिल खोलकर ऐसे प्रयासों की तारीफ करनी चाहिये। आप प्रोत्साहन ही अगले प्रयासों के लिये हौसलों की जमीन तैयार करेगा। वर्ना ये हौसले पस्त हो जाएंगे। वैसे भी, आज की दौड़ती-भागती दुनिया में किसके पास समय है, जो रुककर किसी से हाल-चाल भी जान लें। बहरहाल, हर नई कोशिश ऐसे ही शुरु होती है। महात्मा गांधी के शब्दों में- “पहले वे आपको अनदेखा करेंगे, फिर आप पर हंसेगे, फिर वे आपसे लड़ेंगे और तब आप जीत जाएंगे।” इस सकारात्मक पहल के पैरोकारों को ये जीत मुबारक। पूरी उम्मीद है कि अगले साल ये जीत और बड़ी होगी। गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज में ऐसी कई और सकारात्मक पहल करने की जरुरत है। उम्मीद है, हम आगे भी जीतते रहेंगे। समाज के साहित्यकार गोविंद जोशी के शब्दों में कहूं तो “सांसा सूं आसा है, अ’र आसा अमर धन है।”

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4 thoughts on “मेरी बात : गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज की ये सकारात्मक ‘पहल’ सराहनीय है

  1. श्री मान इस लेख के लिये तहेदिल से आप को धन्यवाद !
    समारोह की भव्यता देख के समाज के हर सदस्य का दिल प्रफुलित ओर मन से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था
    इस समारोह में समाज के लिये सभी संस्थाओं का एकजुट होना भी समाज के विकास के लिये सराहनीय कार्य था
    सभी समाज बन्धु जो इस सामाजिक एकजुटता के लिये कार्यशील है उन्हें दिल से धन्यवाद और ह्रदय से आभार !

  2. सकारात्मक एवं सराहनीय पहल।सभी मेरे स्वजातीय बंधुओं को जिन्होंने इस हेतु भगीरथ प्रयास किया,बहुत बहुत बधाई व कोटिश:प्रणाम!
    उम्मीद करता हूं आगामी होने वाले इस प्रकार के आयोजन में सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेंगे।
    किशन लाल उपाध्याय,मेघासर।
    Ex आरक्षण पर्यवेक्षक
    उत्तर पश्चिम रेलवे,,जोधपुर।

  3. जय श्री महर्षि गौतम ।
    एक कदम – सक्षम की ओर ।
    दृढ़ संकल्प – सुदृढ़ परिणाम ।

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