मेरी बात : गोचर आंदोलन- “अरे भई ! किसका झींटिया, किसका तम..?”।

हम सबने अपने बचपन में कभी न कभी ‘झींटिये’ की कहानी ज़रुर सुनी होगी। हां ! वही झींटिया, जो अपनी चतुराई से अपना रास्ता निकाल लेता था और बोल पड़ता था-
“अरे भई, किसका झींटिया किसका तम ?
चल मेरी ढोलकी.. ढमा’क ढम..”
ऐसा बोलते हुए वो अपनी ढोलकी लुढ़का जाता और दही-बाटिये का आनंद लेकर सुरक्षित लौट आता।

बीकानेर में गोचर आंदोलन सुर्खियों में है। बीकानेर विकास प्राधिकरण अपने ‘मास्टर डेवलेपमेंट प्लान-2043’ में क़रीब 185 गांवों को शामिल करने की अधिसूचना जारी कर चुका है। इसी के साथ 2045 तक बीकानेर 40 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैल जाएगा।शरह नथानिया, सुजानदेसर, भीनासर, किसमीदेसर, गंगाशहर, उदयरामसर, देशनोक की गोचर-ओरण भी बीडीए का हिस्सा हो जाएंगी।
“हमें बीकानेर का ऐसा विकास नहीं चाहिए, जो गोचर के विनाश का कारण बने। हम इसका पुरज़ोर विरोध करेंगे। ये तो सरासर ज़िला प्रशासन की तानाशाही है।”
ऐसा कहते हुए बीकानेर के गौपालक, गौ-सेवक और गोचर संरक्षण करने वाली संस्थाएं आवाज़ बुलंद करने लगती हैं। ..और ज़ोर से नारा देती हैं-
“ज़िला प्रशासन बीकानेर,
गोचर भूमि खावै है..”
इसी के साथ ‘गोचर अधिग्रहण प्रस्ताव’ को लेकर विरोध के सुर तेज़ होने लगते हैं।

गायें बोल नहीं सकतीं इसलिए उनके हक़ की आवाज़ उठाने वाले दौड़कर बीकानेर विकास प्राधिकरण की मुखिया और ज़िला कलेक्टर के पास गये। कहा- “मैडम ! ये आपका बीडीए क्या कर रहा है?”
तिस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
इसके बाद गौसेवकों ने ‘गाय’ का रूप धारण करके गोचर बचाने का संदेश दिया। इन ‘गायों’ ने खुद बोलकर अपनी व्यथा-कथा संभागीय आयुक्त और बीडीए अध्यक्ष व जिला कलेक्टर को सुनाई। लेकिन..
इसी ‘लेकिन’ के साथ ही विरोध की ‘ढोलकी’ आगे लुढ़का दी गई।
किसका झींटिया किसका तम ?
चल मेरी ढोलकी.. ढमा’क ढम..।

“गौमाता की जय हो..
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो।
प्राणियों में सद्भावना हो..
विश्व का कल्याण हो।”
बीकानेर में धर्म यात्राओं के दौरान पूरे शहर की गलियां इन नारों से गूंज उठती हैं। इन्हीं धर्म यात्राओं से एक हिंदुवादी नेता तैयार होते हैं- जेठानंद व्यास। हमारे बीकानेर पश्चिम के विधायक। जिनके नारों की पहली पंक्ति में गौमाता के जयकारे गूंजते हैं। गोचर रक्षकों ने उनसे भी साथ मांगा। मिला- सिर्फ साथ का भरोसा।
और ‘ढोलकी’ फिर से लुढ़का दी गई।
किसका झींटिया किसका तम ?
चल मेरी ढोलकी.. ढमा’क ढम..।

देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर से हैं। गाय-गौरी, गोरो बिछियो, गोचर-ओरण, ‘खोखा-सांगरी’ आदि भली-भांति समझते हैं। वे गोचर आंदोलन से एक दिन पहले तक पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं, ‘टूर डे थार’ की बात करते हैं। गोचर आन्दोलन से जुड़े लोगों को लगा कि मंत्री जी से बात की जाये तो बात बन सकती है।वे उन तक अपनी बात पहुंचाते हैं। बोलते हैं- “आप कानून मंत्री हैं। जब गोचर ही नहीं बचेगी तो हमारी ‘गाय माता गौमती और टोगड़ियो गणेश’ कहां चरेंगे?”
मंत्री जी आश्वासन देते हैं कि “देखना होगा कि जोधपुर, अजमेर में विकास प्राधिकरण बनाने पर क्या किया गया था? हम मुख्यमंत्री से भी बात करेंगे।”
ढोलकी आगे लुढ़का दी गई।
अरे.. किसका झींटिया किसका तम ?
चल मेरी ढोलकी.. ढमा’क ढम..

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। वही पार्टी, जो कभी गाय को लेकर राजनीति करती आई है। तब गाय के मुद्दे पर बीजेपी को जनता का ख़ूब साथ मिला था। लेकिन विडंबना है कि आज उसी बीजेपी की सरकार में गाय को उसकी ही गोचर से निकालने की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में, सरकार को लेकर सूबे में संदेश जा रहा है कि-
किसकी गोचर, किसका तम..?
चल मेरी सरकार, घमा’क घम्म

कुल मिलाकर ‘गोचर अधिग्रहण प्रस्ताव’ पर विरोध की ढोलकी जहां-जहां गईं, वहां-वहां से इसे दूसरी तरफ लुढ़का दी गई। हर जवाबदेह से यही जवाब मिला कि-
किसका झींटिया किसका तम ?
चल मेरी ढोलकी.. ढमा’क ढम..
इधर-उधर लुढ़कने के बाद अंततोगत्वा ‘ढोलकी’ की दशा-दिशा तय होने लगती है। विरोध के सुर जनता के सुर बनने लगते हैं। 19 सितंबर को कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं, गो सेवकों, गोचर रक्षकों, साधु-संतों और गोचर-ओरण की संस्कृति को समझने वाले एक जाजम पर बैठते हैं। बीकानेर कलेक्ट्रेट के सामने धरना-प्रदर्शन होता है। हज़ारों का हुजूम उमड़ता है। क़रीब 5 हजार से ज्यादा लोग प्रपत्र भरकर विरोध दर्ज करवाते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. बी. डी. कल्ला मंच पर दिखाई देते हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता देवीसिंह भाटी का ऑडियो सन्देश सुनाई पड़ता है। धीरे-धीरे यह विरोध एक स्वप्रेरित जनआंदोलन में तब्दील होने लगता है। जनता ही जिसका चेहरा है, जतना ही जिसकी आवाज़ है। इस आंदोलन की गूंज बीकानेर से बाहर तक गूंजती है। शासन को कड़ा संदेश जाता है कि राजस्थान सरकार समझें, विचारें और इस कानून को बदलें। नगरीय विकास के कई और भी रास्ते हो सकते हैं। जिस तरह हाई-वे बनाने के लिये.. निजी जमीनें ख़रीदी जाती हैं, उसी तरह नगरीय विकास के लिये भी निजी जमीनें ख़रीदी जा सकती हैं या कोई अन्य विकल्प अपनाये जा सकते हैं। बीडीए इतना ‘लऊ-झऊ’ क्यों कर रही है?
कुल मिलाकर ‘ढोलकी’ अब पूरी तरह से जनता के पाले में है। ये आंदोलन ने ‘ढोलकी’ के बार-बार लुढ़काव को रोकने में कामयाब साबित होता है। बहुत हद तक संभव है कि ये अपनी मंजिल तक पा ले, बशर्ते भटकाव न हो और पब्लिक अपनी पॉवर दिखाती रहे।
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नए परिप्रेक्ष्य का पूरानी कहानियों के साथ मिला कर अच्छा समायोजन
अति उत्तम
Integrated development is the pathway of progress. Modern development and ecological setting should have convergence, not divergence. Maintaining ecological integrity would always be in the interest of the land and the people.
The article is impressive in content and thought-provoking in effect.
Thanks for sharing,
किसका झींटिया किसका तम लोक कथा के माध्यम से आपने गोचर भूमि बचाओ आंदोलन पर बेबाकी से लिखा है।
गौ माता के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा की सरकार है किंतु अफसोस कि गौ माता की औरण की रक्षा पर मौन है।
जन आंदोलन ही सरकार को झुकायेगा और गोचर भूमि की रक्षा करेगी।