मेरी बात : अब ‘धरती के भगवानों’ को ख़ुद को साबित करना होगा

बीकानेर का ‘आयुष्मान हार्ट केयर सेंटर’ कई दिनों से सुर्खियों में है। आरोप है कि यहां इलाज में लापरवाही के चलते एक व्यक्ति की मौत हो गई। जिसे लेकर कांग्रेस युवा नेता रामनिवास कूकणा 10 सितंबर से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। उनका कहना है कि “इस अस्पताल और डॉ. बी. एल. स्वामी ने सैंकड़ों मरीजों और हज़ारों परिवारों के साथ खिलवाड़ किया है। इस प्रकरण के बाद लगातार मेरे पास लोग आ रहे हैं। जो लोग यहां सामान्य सी बीमारी में भी आते हैं, उनके स्टेंट डाल दिये जाते हैं। हम इनसे पीड़ित ऐसे हजारों परिवारों के साथ हैं। हम गांधीवादी तरीके से इस लड़ाई को लड़ते रहेंगे। हमारी मांगें हैं कि-

आयुष्मान हार्ट केयर सेंटर को बंद किया जाये।
डॉ. बी. एल. स्वामी पर मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया जाये।
डॉ. बी. एल. स्वामी को चिकित्सकीय पेशे से आजीवन प्रतिबंधित किया जाये।

उधर, दूसरी तरफ इस पूरे प्रकरण पर आज ‘मेडिकल प्रेक्टिशनर सोसायटी’ और ‘उपचार’ द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. बी. एल. स्वामी समेत कुछ अन्य डॉक्टरों ने अपनी बात रखी। इस पीसी में डॉक्टरों की पूरी टीम को पत्रकारों के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा। पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए डॉक्टरों ने कहा कि “कोई डॉक्टर अपने मरीज को बचाने के लिये पूरी कोशिश करता है। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में संबंधित हॉस्पिटल में तोडफ़ोड़, हंगामा, धरना-प्रदर्शन होने लगता है। इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। हम डॉक्टर्स ऐसे डर के माहौल में काम नहीं कर पाते हैं। अगर किसी को किसी डॉक्टर से शिकायत है तो वे कानूनी कार्रवाई करें, विरोध के ऐसे तरीके ठीक नहीं है।”

पत्रकारों ने ज़ोर देते हुए यह भी पूछा कि ऐसे विवादित मामलों में अक्सर डॉ. बी. एल.स्वामी का नाम क्यों आता है?

बहरहाल, तो ये थीं दोनों पक्षों की बातें और पत्रकारों के सवालात। वैसे, देखा जाए तो बीते कुछ सालों में चिकित्सकीय पेशे की साख तेज़ी से गिरी है। इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं, मसलन-

  1. डॉक्टरों द्वारा दिनभर में ज्यादा से ज्यादा मरीज देखने की होड़।
  2. ज्यादा कमीशन वाली और अपने हॉस्पिटल में ही मिलने वाली दवाइयां लिखने की प्रवृत्ति।
  3. मरीज को मरीज न समझकर, रुपये कमाने का जरिया समझना।
  4. कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा रुपये कमाने की ललक।
  5. रोगियों के लिये बेवजह दवाइयां और टेस्ट लिख देना।

ये तो फकत कुछ ही उदाहरण हैं, ऐसे कई सारी वजहें हो सकती हैं, जो सफेद कोट के पीछे की काली सच्चाई बयां करने के लिये काफी हैं। ये सब वजहें कहीं न कहीं इलाज में लापरवाही को संबल देती हैं। आइये, कुछ आंकड़ों से इसे समझने की कोशिश करते हैं-

  • दुनिया की सबसे बड़ी मेडिकल लाइब्रेरी ‘नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन’ की रिसर्च के मुताबिक- पूरी दुनिया में मेडिकल लापरवाही के सबसे अधिक मामले भारत में दर्ज किए जाते हैं। जहां 1 साल में मेडिकल लापरवाही के 52 लाख मामले सामने आए हैं।
  • इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स के मुताबिक- मेडिकल लापरवाही के कारण होने वाली 80% मौतें सर्जिकल गलतियों के कारण होती हैं।

ये आंकड़े सफेद एप्रिन पर दाग़ की तरह है, जो आमतौर पर डॉक्टरों को दिखाई नहीं देते। बेचारे मरीज इसलिये नहीं बोलते क्योंकि वे इलाज देने वाले डॉक्टरों से उलझना नहीं चाहते। मैं यह नहीं कहता कि सभी डॉक्टर्स ऐसे हैं, लेकिन जो ऐसे हैं, वे ये अपने दिल पर हाथ रखकर पूछें कि क्या उपरोक्त बातों से इनकार किया जा सकता है? आज से क़रीब 3 साल पहले भी मैंने ऐसा ही एक लेख ‘मेरी बात’ में लिखा था। तब बहुत से डॉक्टरों ने मुझसे नाराजगी जाहिर की थी। लेकिन.. उनकी नाराजगी के बावजूद ये कड़वा सच तब भी नहीं बदला था और आज भी नहीं बदला है। सच ‘सच’ ही रहा है।

बहरहाल, बीकानेर के इस ज्वलंत प्रकरण में कौन सही है, कौन ग़लत? ये तो समय ही बताएगा लेकिन इस मसले ने चिकित्सकीय पेशे की काली विडंबनाओं की परतें उघाड़ने का काम किया है। ऐसे ही सेवा के लिये पहचाने जाने वाला कोई पेशा मटमैला नहीं होता। लब्बोलुआब यही है कि पुण्य से जुड़ा ये पेशा पाप के कटघरे में खड़ा है। डॉक्टरों को इस गंभीर समस्या का इलाज करने की जरुरत है। उन्हें यह स्वीकारना चाहिये कि उनके पेशे की छवि तेज़ी से बिगड़ी है। डॉक्टरों को ‘धरती का भगवान’ कहा जाता है लेकिन अब ‘धरती के भगवानों’ को साबित करना होगा कि “हां, वे वाकई धरती के भगवान हैं।”

अगर ऐसा हो गया तो डॉक्टरों की बिगड़ती छवि में थोड़ा सुधार आ सकता है, नहीं तो ‘धरती के भगवानों’ को ऐसे ही धरने-प्रदर्शन झेलते रहने होंगे। बिना किसी शिकायत के, किसी शिकवा के..

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