मेरी बात : Bikaner ने PM मोदी के सामने एक बड़ा ‘मौक़ा’ गंवा डाला?

जिस दिन ख़बर आई कि पीएम मोदी बीकानेर आ रहे हैं, उसी दिन से बीकानेर की जनता उत्साहित थी। फिर पता चला कि मोदी बीकानेर में जनसभा करेंगे और 26 हज़ार करोड़ की घोषणाएं करेंगे, फिर तो जनता का उत्साह दोगुना ही हो गया। जेहन में बीकानेर के चहुंमुखी विकास की चमकती तस्वीरें बनने लगी थीं।
22 मई को बीकानेर के पलाना में मोदी की जनसभा होती है। राजस्थान के तीखे-तपते तावड़े के बीच चारों दिशाओं से हुजूम उमड़ने लगता है। ऊंचा जाजम जमता है। मंच पर मोदी के साथ राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, अश्विनी वैष्णव, बीकानेर सांसद मेघवाल, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी समेत कई नेता बैठे दिखाई देते हैं। रेगिस्तान में बसा पलाना ‘नखलिस्तान’ की मानिंद लगने लगता है। सब जानना चाह रहे थे कि मोदी के ’26 हज़ार करोड़’ की घोषणाओं के पिटारे में बीकानेर के डेवलेपमेंट के लिये क्या है? एंकर स्वागत उद्बोधन के लिये बीकानेर सांसद को आमंत्रित करते हैं। जनता अपने सांसद को बड़े गौर से सुनना शुरु करती है।
सांसद और केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम बारी-बारी से मंचासीन नेताओं का नाम लेकर स्वागत करते हैं। पीएम को नौरंगदेसर दौरे की यादें ताज़ा करवाते हैं। फिर किसी कविता की लाइनें सुनाते हैं। इसके बाद केंद्र के कामों की तारीफ करते हैं। फिर जोर देकर बोलते हैं कि “प्रधानमंत्री जी ! आप मां करणी के मंदिर में दर्शन करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं।” और आख़िर में ऑपरेशन सिंदूर पर पीएम को धन्यवाद देकर अपनी बात खत्म कर देते हैं।
अल्लै ! ये क्या? मेघवाल साहब ने तो अपना भाषण ख़त्म ही कर दिया। लगा जैसे- बीकानेर ने पीएम मोदी के सामने एक बड़ा मौक़ा खो दिया। सांसद का भाषण- स्वागत, बीती यादें, कविता, तारीफ और धन्यवाद तक ही सिमटा कर रह गया। वे चाहते तो इतने बड़े मंच से पीएम के सामने बीकानेर के विकास की बड़ी योजनाओं का प्रस्ताव रख सकते थे। ऐसे मौक़े पर पीएम मोदी कतई मना न करते। फिर क्यों मेघवाल 26 हज़ार करोड़ की योजनाओं में से बीकानेर के विकास का एक छोटा सा हिस्सा भी बटोर नहीं पाये? बरसों से विकास को तरसते बीकानेर के लिये एक दुर्भाग्यपूर्ण सवाल है। लगा जैसे घनघोर बारिश आई, हमारा हिस्सा सूखा रह गया।
जबकि क़रीब 1 साल पहले ख़ुद पीएम मोदी ने.. इसी जनसभा की तरह.. अपने संसदीय क्षेत्र- वाराणसी में भी जनसभा की थी। तब भी उन्होंने 3,880 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया था। जिसमें बिजली, सड़क, शिक्षा और पर्यटन के क्षेत्र में विकास के कई बिंदु शामिल थे। इसके पीछे सांसद मोदी का मकसद था कि उनके संसदीय क्षेत्र- ‘वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों’ के समग्र विकास को बढ़ावा मिले। तब सांसद मोदी ने तब अपने लोकसभा क्षेत्र को ख़ास तरजीह दी थी। उसके विकास को तवज्जो परोसी थी। बावजूद इसके, कि वे देश के प्रधानमंत्री थे। लेकिन..इस जनसभा में बीकानेर संसदीय क्षेत्र के विकास के मामले में बीकानेर सांसद ने एक बड़ा मौक़ा खो दिया। वो भी तब.. जब पीएम मोदी ख़ुद 26 हज़ार करोड़ रुपयों की भारी-भरकम सौगात लेकर बीकानेर आये थे।
मेरे पिछले आलेख में (यहां Click करें) बीकानेर सांसद की इसी ‘राजनीतिक अकुशलता’ की ही तो बात की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि वे सरल-संजीदा इंसान हैं। मगर भोले हैं। वैसे भी, सरल लोगों का राजनीति जैसे जटिल विषयों में हाथ तंग होता है। ऐसे लोग छोटी-छोटी बातों में उलझकर बड़े मौक़े खो देते हैं। बीकानेर सांसद ने भी एक बड़ा मौक़ा खो दिया। वे अपना और हम सबका बड़ा नुक़सान करवा बैठे हैं। माननीय ! आप कविता फिर कभी सुना लेते, पुरानी बातें फिर कभी ताज़ा कर लेते, मगर ये मौक़ा तो न गंवाते। अब तो बीकानेर के सब मुद्दे भी आपको पता है। न हो तो यहां Click करके देख सकते हैं। फिर आपसे इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई? हम सब इतने बरसों से आपको पीएम के साथ देख रहे हैं। अब तो बच्चा-बच्चा जानने लगा है कि मोदी जी के पीछे दिखने वाले पगड़ी वाले मंत्रीजी हमारे बीकानेर के ‘गौरव’ हैं। अब तक तो आपमें पीएम साहब जैसी राजनीतिक कुशलता आ जानी चाहिये थी। अजी ! हम तो चाहते हैं कि हमारे मेघवाल साहब देश के अगले प्रधानमंत्री बने और आप हैं कि आया मौक़ा गंवा बैठते हैं।
देखिये, पीएम मोदी की राजनीतिक कुशलता.. कि उसी जनसभा से वे पूरे बीकानेर को अपना कायल बनाकर गये हैं। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपनी पहली जनसभा के लिये सीमावर्ती जिले- बीकानेर को इसलिये चुना ताकि पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे सके। बीकानेर की धरती पर खड़े होकर उन्होंने 26 हज़ार करोड़ की घोषणाएं करके समूचे राजस्थान का दिल जीत लिया।
मोदी ने मुट्ठी भींचकर जब कहा कि “यह संयोग ही है कि 5 साल पहले जब बालाकोट में एयर स्ट्राइक हुई थी, तब मेरी पहली जनसभा राजस्थान में हुई थी। यह वीर भूमि का प्रभाव ही है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद अब मेरी पहली जनसभा बीकानेर में हो रही है।”
इस बात पर तो ख़ुद आपका चेहरा भी खिल उठा था। सीएम साहब भी मुस्कुरा उठे थे। हां, वसुंधरा राजे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
ऑपरेशन सिंदूर का नाम लेकर उन्होंने जब कहा कि-
“22 अप्रैल को आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हमारी बहनों की मांग का सिंदूर उजाड़ा था। हमने 22 मिनट में आतंकियों के 9 ठिकानों को बर्बाद करके इसका जवाब दे दिया। जब सिंदूर बारूद बन जाता है, तो उसका नतीजा क्या होता है, यह पाकिस्तान को बता दिया गया है।”
तब पलाना की फिजा “मोदी… मोदी… मोदी…” के नारों से गूंज उठी थी। वे पलाना में खड़े होकर पूरी दुनिया को भारत का नजरिया बताने में कामयाब हुये।
तपते तावड़े के बीच..गर्म मंच से उन्होंने सबको दिमाग़ ठंडा रखने की सीख देते हुए कहा था कि-
“मोदी का दिमाग ठंडा है, ठंडा रहता है, लेकिन मोदी का लहू गर्म होता है। अब तो मोदी की नसों में लहू नहीं, गर्म सिंदूर बह रहा है। अब भारत ने साफ कर दिया है कि हर आतंकी हमले की पाकिस्तान को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ये कीमत, पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चुकाएगी।”
उनकी इस सीख से कौन सिखेगा, कौन नहीं? ये तो नहीं पता लेकिन पाकिस्तान ज़रूर समझ जाएगा कि “अठै काकड़िया कंवळा कायनी।” ये उनकी राजनीतिक कुशलता ही थी जो बळती दुपहरी में लाखों लोग उन्हें सुनने दौड़ चले आये। कुछ नेताओं से 500 लोग भी इकट्ठे न हो पाये।
एक कविता मोदी ने भी सुनाई थी। बोले कि–
यह शोध-प्रतिशोध का खेल नहीं, यह न्याय का नया स्वरूप है।
यह ऑपरेशन सिंदूर है।
पहले घर में घुसकर किया था वार,अब सीधा सीने पर प्रहार है।
यह ऑपरेशन सिंदूर है।
उनकी इस कविता पर बीकानेर झूम उठा था। पीएम ने बीकानेर के उस रिएक्शन से पूरी दुनिया को बता दिया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश कैसा महसूस करता है? और तो और लगे हाथ मोदी सरकार में विकास की तस्वीर भी देश के सामने रख दी।
ये होती है ‘राजनीतिक कुशलता’। पीएम ने जिन उद्देश्यों से बीकानेर में ये जनसभा की, वे उनमें हर मायने में सफल रहे। वहीं दूसरी तरफ, बीकानेर के विकास के मामले में ये जनसभा पूरी तरह विफल साबित हुई। बीकानेर के बरसों से लंबित मुद्दे अनदेखे ही रहे। किसी भी नेता को कोई तरजीह नहीं दी गई। यहां तक कि कई नेताओं की अपने नेताओं से नाराज़गी हो गई कि स्वागत सूची से उनके नाम हटा दिये गये। इसलिये..क्योंकि वे फलां नेताओं की हाज़िरी नहीं भरते। और तो और जिलाध्यक्षों की तरफ से दी गई सूची से भी नाम काट दिये गये। कुल मिलाकर.. हाथ कुछ नहीं आया। हाथ आई- कलह, शिकायतें और गुटबाज़ी। लेकिन बीकानेर की जनता और नेता ख़ूब ख़ुश हुये। भोळी जनता मोदी को सामने से देखकर ख़ुश हो गई और नेता देश के प्रधानमंत्री के साथ फोटो खींचवा कर। इस जनसभा का इतना भर ही हासिल है। छोटी-छोटी बातों में उलझने से फुर्सत मिले तो ये बड़े मौक़े समझ आए न? ..लेकिन ‘अब पछतावत होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत..।’ आप ही बताइये- क्या कहना ग़लत होगा कि हमारे बीकानेर ने पीएम मोदी के सामने एक बड़ा मौक़ा गंवा दिया।
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बहुत ही सुन्दर और सटीक विश्लेषण
Bikaner has immense potential for development as a heritage city, as a happy city and as an amazing centre for food processing and production – yet there has been no planned effort to give it the required momentum. You are one of the few persons who has been advocating for Bikaner (all alone….)
बेबाक लिखा है आपने। पूरे साहस के साथ।
बधाई प्रिय सुमित।