
आज 538वां बीकानेर स्थापना दिवस है। बीकानेर की स्थापना 537 साल पहले, कोटा की स्थापना 394 साल पहले और जयपुर की स्थापना 297 साल पहले हुई थी। लेकिन.. शहरों के विकास की बात करें तो यह क्रम उल्टा हो जाता है। सबसे बाद में बसने वाला जयपुर.. आज राजस्थान की राजधानी बन चुका है। दूसरे नंबर पर बसने वाला कोटा इतना चमकने लगा है कि देखकर रश्क हो जाए। और सबसे पहले बसाया गया बीकानेर आज …………………………..?? इस खाली जगह को आप नीचे कमेंट बॉक्स में जाकर भर दीजियेगा और बताइयेगा कि विकास के मामले में बीकानेर को आप 100 में से कितने नंबर देंगे?
बीते हफ्ते इंदौर से मेरे एक रिश्तेदार आये। बीकानेर की बदहाली देखकर बोले “सुमित ! मुझे तो यह शहर आज भी वैसा ही दिखता है, जैसा 40 साल पहले दिखता था। बाद में बसे शहर कितने बदल गये हैं और बीकानेर आज भी …। यहां इतने बड़े-बड़े नेता हैं, कोई कुछ काम नहीं करवाता क्या?”
मैं क्या जवाब देता? वही.. जो आप सब कई मर्तबा ‘मेरी बात’ में पढ़ चुके हैं, सार्वजनिक तौर पर सुन चुके हैं। वैसे, बीकानेर में कितना विकास हुआ है, ये बीकानेर से बाहर रहने वाले ही बेहतर बता सकते हैं। हम बीकानेरी इसका सही आंकलन नहीं कर सकते। सवाल उठता है कि बीकानेर की इस बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार? ..तो जवाब है- हम सब। इस ‘हम’ में बीकानेर की जनता और यहां के नेता सब समाहित हैं। किवदंती है कि बीकानेर की स्थापना एक ‘ताने’ के चलते हुई थी। अब जब एक ताने पर शहर बसा दिया गया तो क्या एक और ‘ताने’ से इसे संवारा नहीं जा सकता? तो इस आर्टिकल को भी एक ‘ताना’ समझकर पढ़ा जाये। दिल पर लगे तो शहर को संवारने-सुधारने की कसम खा लेना।
पहला ‘ताना’ हमारे लिये ही है कि आख़िर हम कब तक ख़ुद को परम संतोषी, बेफिक्र और फक्कड़ कहलवाते रहेंगे? हम ऐसी झूठी उपमाओं-अलंकारों से ख़ुद को सुसज्जित करके बड़े संतोष के साथ बेफिक्री में जीये जा रहे हैं और दूसरे शहर चमकते जा रहे हैं। फिर कोई बाहर से आने वाला कहता है कि “बीकानेर आज भी वैसा ही दिखता है, जैसा पहले दिखता था।” तब हमें तकलीफ होती है। हमारे ‘भोळे’ साहित्यकारों को भी क्या ही पता कि उनके ऐसी ‘सर्वनामों’ रूपी चासनी का.. बड़ी चतुराई से फायदा उठाया जा रहा है.. जिम्मेदारों के दोनों हाथों में बरसों से खरे घी के लड्डू हैं और जनता बदहाली के कड़वे घूंट पी रही है।
अब आप ईमानदारी से बताइये कि आप क्या चुनना पसंद करेंगे? ख़ुद को ‘फक्कड़, बेफिकर’ कहलवाना या फिर बीकानेर को ‘विकसित शहर’ कहलवाना। बीकानेर के विख्यात समालोचक उमाकांत गुप्त ने एक बार कहा था कि “सबसे पहले विचार आता है। उसकी पुनरावृति से विचार.. व्यवहार में बदल जाता है.. और व्यवहार की पुनरावृति से वो आदत में तब्दील हो जाता है।” (यहां CLICK करके इंटरव्यू सुनें) बीकानेरियों के बारे में ‘फक्कड़ और बेफिक्री’ वाले विचार से आदत बनने की भी शायद यही यात्रा रही होगी। हमें इस ‘CATCH-22’ को खत्म करना होगा। इस झूठे ‘गौरव’ से बाहर निकलने की ज़रुरत है। असल में, यह दूसरोंं की नाकामियों को संतोष रूपी चासनी देने जैसा मालूम होता है। जबकि जरुरत तो.. कई साल पीछे जा चुके बीकानेर की सूरत बदलने की है। जरुरत.. चौड़े होकर बीकानेर के हक़ में आवाज़ उठाने की है।
दूसरा ‘ताना’ बीकानेर के राजनेताओं के लिये है कि आख़िर वे कब तक दूसरों से बीकानेरियों को शर्मिंदा करवाते रहेंगे? अब तो सार्वजनिक मंचों पर कहा जाने लगा है कि “बीकानेर में किसी को बुलाते हैं तो शर्म आती है।” (यहां CLICK करके पढ़ें)
जनप्रतिनिधियो ! आप तो ‘शक्तिशाली’ हैं, सक्षम हैं। पता लगाइये न ! कि आख़िर क्यों सबसे पहले बसा बीकानेर.. सबसे ज्यादा पिछड़ता जा रहा है? बीकानेर की तमाम व्यवस्थाओं को आप कुछ ज्वलंत मुद्दों, जैसे- देशनोक हादसा, रानीबाजार पुल मामला, बीजेपी कार्यकर्ता लक्ष्मण मोदी के मकान का मामला, साहित्यकार बुनियाद ज़हीन के बिजली के बिल के मामले से समझा जा सकता है। ये तो चंद मिसालें हैं, बीकानेर की आवाम इनसे भी कई गुना बड़ी समस्याओं से परेशां हैं। हमारे नेताओं की सहूलियत के लिये ‘बीकानेर के समग्र विकास’ पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म का लिंक (यहां CLICK करके देखें) दे रहा हूं। इसमें आपको बीकानेर के हर क्षेत्र की समस्याएं जानने को मिल जाएंगी। उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों की बाइट्स मिल जाएंगी। हमने तो यह फिल्म निजी खर्च, बड़ी शिद्दत और 100 दिनों की कड़ी मेहनत से बनाई थी, लेकिन आप 1 क्लिक में पूरे बीकानेर की समस्यायें सिर्फ 45 मिनट में जान सकते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं यह डॉक्यूमेंट्री देखने का सुझाव पहली बार दे रहा हूं। पहले भी दे चुका हूं। अजी ! पहले तो यह डॉक्यूमेंट्री दिखाने के लिये.. बीकानेर के कई राजनेताओं को.. प्रबुद्ध लोगों से खचाखच भरे.. वेटेरनरी ऑडिटोरियम में आमंत्रित कर चुका हूं। लेकिन पूर्व सूचना के बावजूद… हामी भरने के बावजूद.. वे नहीं आये। कोई बात नहीं। उनके पास जनहित की समस्याएं जानने के लिये समय नहीं होगा। लेकिन आज छुट्टी का दिन है। आज बीकानेर स्थापना दिवस है। वे बड़े आराम से ये डॉक्यूमेंट्री फिल्म देख सकते हैं। माननीयो ! इसे ‘सार्वजनिक’ हित में मेरा ‘व्यक्तिगत’ निवेदन समझें। अगर ये ‘ताना’ दिल पर लगे तो अगले स्थापना दिवस तक बीकानेर की सूरत और सीरत दोनों बदलकर रख दीजिये।
प्यारे बीकानेरियो ! बीकानेर को लेकर सच्चे मायनों में उसी को तकलीफ होती है, जिसके सीने में शहर के लिये प्रेम छलकता हो। आप ही बताइये, शहर की ऐसी बदहाली हो तो चुप्पियां कैसे साधी जा सकती हैं? कैसे चुप रहकर इस शहर की माटी का क़र्ज़ उतारा जा सकता है? बोलना तो पड़ेगा न? आख़िर कोई तो बोलेगा। अगर आप भी सच्चे अर्थों में बीकानेर स्थापना दिवस की शुभकामनाएं देना चाहते हो तो ये लेख कम 10 से कम 10 बीकानेरियों को शेयर करें। जनता को और आपके जनप्रतिनिधियों को भी। ध्यान रहे देश के हर कोने में बैठे हर बीकानेरी को यह सकारात्मक ‘ताना’ जरूर लगना चाहिये।
आप सबको बीकानेर स्थापना दिवस की अनेक शुभकामनाएं।
Note- इस आर्टिकल पर अपनी राय हमें नीचे कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।
आजादी से पहले बीकानेर एक गौरवशाली सशक्त देश था। मतलब आजाद हिंदुस्तान के समकक्ष। कारण यहां के सशक्त महाराजा गंगासिंहजी का ब्रिटेन की महारानी से सीधा सम्बन्ध था। उनके पश्चात देशी रियासतों के भारत संघ में शामिल करने हेतु महाराजा सार्दुलसिंहजी ने सर्वप्रथम एकीकरण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर राजस्थान राज्य निर्माण का रास्ता खोला।
हमारे नेताओं में शक्ति की कोई कमी नहीं है लेकिन इच्छाशक्ति शक्ति की नितांत कमी है। जबकि जनहित कार्यों के लिए शक्ति की कोई आवश्यकता भी नहीं है प
स्वतंत्रता पूर्व गौरवशाली इतिहास सांस्कृतिक विरासत लिए मेरा बीकानेर एक समृद्ध रियासत था। राष्ट्रीय पटल के माध्यम से चाहे गोलमेज सम्मेलन में जाना हो या बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लिए सहयोग करना हो बीकानेर सब में अग्रणी था कारण था यहां के महाराजाओं की स्पष्ट नीति जनहित की भावना और बीकानेर के समग्र विकास की जिजीविषा। यह महाराज महाराजा सार्दुलसिंहजी ही थे जिन्होंने राष्ट्र हितार्थ सर्वप्रथम एकीकरण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर राजस्थान राज्य निर्माण का रास्ता खोला। परंतु गत कई वर्षों से देख रही हूं बीकानेर का विकास अवरुद्ध हो गया है यहां की मुल्तानी मिट्टी गुजरात जाती है और तैयार माल पूरे भारत में बिकता है तो ऐसी फैक्ट्रियां बीकानेर में क्यों नहीं लगाई जाती यहां की एशिया की सबसे बड़ी उन मंडी क्यों बंद कर दी गई यहां से पढ़ने के लिए छात्र छात्राएं अन्य नगरों में जाते हैं, तो फिर यहां ऐसा तंत्र विकसित क्यों नहीं किया गया जबकि प्राचीन काल की यह तो छोटी काशी है, और आप जानते हैं प्राचीन काल में उत्तर प्रदेश की काशी में लोग पढ़ने जाते हैं तो छोटी काशी को भी तो इसी तरह का बनाया जा सकता था और सुनिए करणी सिंह जी के नाम से स्पोर्ट्स अकैडमी दिल्ली में देखने को मिलती है लेकिन बीकानेर में क्यों नहीं पर्यटन की दृष्टि से भी देखें तो बीकानेर में अपार संभावनाएं हैं जैसलमेर जो बीकानेर से छोटा है लेकिन पर्यटन में कितना विकसित है और हमारे यहां अमोलक हवेलियां,थातिया और कलाएं होते हुए भी हम आज भी बिछड़े हुए हैं,,, बहुत सारी बातें हैं जो मन को अंदर तक टीस पहुंचाती है और इसके लिए कहीं ना कहीं हम सभी जिम्मेदार हैं लिए आप और हम सब मिलकर के बीकानेर के समग्र विकास का संकल्प ले ताकि बीकानेर एक सशक्त और विकसित नगर बन सके ताकि विदेशों से आने वाले कोई भी पर्यटक इसको “बीकानेर एक बड़ा गांव” ना कहे।k
बीकानेर के राजनेताओं की राजनैतिक इच्छाशक्ति मृत प्राय है वो केवल एक नल की टोंटी लगा कर फोटो खिंचवाने से ऊपर उठकर कभी नहीं सोच पाए ,केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे पिछले पचास सालों में जो कार्य हुए हैं वे तो समय से बीस साल बाद मजबुरन हुए हैं वो विकास के क्रम में नहीं आते ये राजनेता चमचागिरी की राजनीति से कभी ऊपर उठकर विकास की बात नहीं सोच पाए आज भी यही हाल है हर कार्य समय से बीस पच्चीस साल बाद मजबुरन होता है और वाहवाही बटोरी जाती है यहां का नेता सड़क से बीस फुट ऊपर चलता है यह शहर कभी नहीं सुधर सकता ।
आपकी मुखरता को सलाम। बीकानेर की जनता इतनी मुखर होकर बोलने भी लग जाए तो इस शहर के संवरने-सुधरने की शुरुआत हो सकती है।
बीकानेर को बीकानेर की राजनीति गुटबाज़ी और एक विशेष समूह ने बहुत नुक़सान पहुंचाया है यहाँ के लोग कहने को तो छोटी काशी ज़रूर कहते हैं लेकिन यहाँ की फ़ज़ाएँ भी कोई कम ज़हरीली नहीं हैं चाहे साहित्य हो, राजनीति हो या दीगर शौचालय हो सब एक दूसरे की टांग खींचने में पेश पेश रहते हैं अगर आप बीकानेर को तरक़्क़ी की दौड़ में सबसे आगे देखना चाहते हैं तो अपने ज़ाति मफ़ाइद से ऊपर उठकर बीकानेर के लिए काम करना होगा