अलका विश्नोई आमरण अनशन पर बैठी है। पहले से ही खेजड़ी की सोलर कंपनियों की ओर से कटाई के विरुध्द कहीं दो महिनें से तो कहीं एक महिने या कुछ दिनों से बीकानेर जिले में चार जगह धरने चल रहे हैं। संघर्ष समिति ने हाल ही में प्रेस कान्फ्रेस कर खेजड़ी की कटाई के पर्यावरणीय और रेगिस्तान पर पारिस्थिकीय प्रभावों का लम्बा चौड़ा ब्यौरा दिया। क्या ब्यूरोक्रेसी, सरकार में बैठे लोग और बीकानेर से केन्द्रीय मंत्री और राजस्थान सरकार के कैबीनेट मंत्री को खेजड़ी का रेगिस्तानी इलाके में पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय महत्व पता नहीं है ? खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा तो राजस्थान सरकार ने इसके सभी तरह के महत्वों को समझकर ही दिया होगा ? फिर खेजड़ी बचाने के खातिर अलका विश्नोई को आमरण अनशन और संघर्ष समिति को धरना देने की जरूरत क्यों पड़ गई है? पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी किसकी है? सरकार की ना। वो जिम्मेदारी पूरी क्यों नहीं हो रही है। यह गंभीर सवाल है। संघर्ष समिति के राम किशन डेलू ने प्रेस के समक्ष गंभीर आरोप लगाया कि वन्य जीवों की हत्या और अवैध खेजड़ी और पेड़ कटाई के बीकानेर संभाग में विभिन्न स्तरों पर करीब 400 मुकदमे दर्ज करवाए गए हैं एक भी मामले में दोषी को सजा नहीं हुई है। क्यों ? जवाब था कि अफसरों और अपराधियों के बीच लेन देन चलता रहता है। यही सोलर कंपनियां कर रही है। नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से जमीनों से लेकर खेजड़ी की कटाई तक का पूरा दुष्चक्र चलता है। जमीनों के कुछ मामले तो सरकार के संज्ञान में आए है। यही कारण है जिसकी जिम्मेदारी है वे चुप है क्योंकि खुद मिले हुए हैं । प्रेस के सामने डेलू का यह आरोप गंभीर बात है।
अभी कोई जिम्मेदार अफसर, खेजड़ली के गीत गाने वाले केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल या राजस्थान सरकार के मंत्री, विधायक गण बोल क्यों नहीं रहे हैं ? जनता द्वारा चुनी हुई सरकार जनता की आवाज क्यों नहीं सुन रही है? जिम्मेदार लोग चुप हैं तभी तो धरना और अनशन की नौबत आ गई है। जैसा कि संघर्ष समिति के मोख राम धारणिया ने बताया कि “सरकार ने उनकी 12 सूत्रीय मांगों पर उचित कारर्वाई नहीं की तो मुकाम मेले में विचार विमर्श के बाद निर्यायक कदम उठाया जाएगा। संघर्ष को व्यापक रूप दिया जाएगा।”
यह सच है कि वन विभाग के बड़े अफसर, प्रशासन, पुलिस, विधायक, सांसद और प्रकृति, पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदार सरकार ने अभी तक संघर्षरत लोगों की एक नहीं सुनी। इससे इस संघर्ष के औचित्य पर भी शंका होने लगती है कि क्या सोलर से कमतर है खेजड़ी ? खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा देते वक्त सरकार ने जो दलीलें दी वही बात संघर्ष समिति के धरनार्थी कह रहे हैं फिर टकराव क्यों हैं? सोचो जरा…।