राजस्थान सरकार ने खेजड़ी के महत्व को समझते हुए उसे राज्य वृक्ष घोषित किया था। ताकि खेजड़ी का संरक्षण हो सके। लेकिन… बीते कुछ बरसों में इस घोषणा के उलट काम हो रहा है। पूरा पश्चिमी राजस्थान को सोलर हब बनाया जा रहा है। बड़े स्तर पर अलग-अलग ज़िलों में खेजड़ियों की कटाई जारी है। आलम यह है कि हर महीने बड़ी तादाद में खेजड़ियां काटी जा रही हैं। नाल, जयमलसर, नोखा दैया, भानीपुरा, बांद्रा वाला और रणधीसर गांव की लगभग 5000 बीघा सिंचित भूमि में से क़रीब 15,000 खेजड़ियां काट दी गई हैं। इसी तरह के आरोप और लोगों ने भी लगाए हैं। खेजड़ियों की कटाई को लेकर बीकानेर मुख्यालय और ज़िलेभर में धरने चल रहे हैं। कई थानों में खेजड़ियां काटने की पुलिस रिपोर्ट दर्ज हैं। आंदोलनकारियों ने कई अधिकारियों को लिखित रिपोर्ट दी है। मुख्यमंत्री, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री और विभागों के अधिकारियों को अवगत करवाया गया है। पिछले साल भर से ज्यादा समय से चल रही इस कवायद का सरकार के स्तर पर कोई असर नहीं हुआ है।
हकीकत तो यह है कि कोई भी योजना खेजड़ी काटने की स्वीकृति नहीं देती। माना कि सोलर ऊर्जा उत्पादन देश की प्राथमिकता है, लेकिन मरुस्थलीय पारिस्थितिकी का अहम वृक्ष खेजड़ी की कटाई की अनुमति पर नहीं है। लेकिन विडंबना देखिये, कोई भी जनप्रतिनिधि खेजड़ की कटाई को रोकने की पैरवी करने को तैयार नहीं है। राजस्थान में जिस रफ्तार से खेजड़ियां काटी जा रही हैं, उसी रफ्तार से एक सवाल उपजता जा रहा है कि क्या केंद्र सरकार को ‘राज्य वृक्ष’ का महत्व नहीं मालूम? क्यों सोलर ऊर्जा उत्पादन की क्रांति के नीतिकारों ने खेजड़ी के महत्व की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। ऐसा भी हो सकता है कि यहां के किसी ने जनप्रतिनिधि ने नीतिकारों का इस तरफ ध्यान ही नहीं दिलाया। नीतिकारों को क्या मालूम कि खेजड़ियां पूजी जाती हैं, उन्हें क्या मालूम कि हम राजस्थानी खेजड़ियों और उनकी सांगरियों को ‘खोखा म्हानै लागे चोखा’ जैसे गीतों में गाते हैं। उन्हें मालूम तो तब होता, जब हमारे बीच का कोई जनप्रतिनिधि उन्हें इससे अवगत करवाता। नीतिकारों को बताया जाना चाहिये कि खेजड़ी को राजस्थान की इकोलोजी का आधार स्तंभ माना गया है। खेजड़ी के कटने से मरूस्थल का पूरा प्राकृतिक चक्र प्रभावित होना तय है। खेजड़ी वन्य जीव जन्तुओ का भोजन और संरक्षण स्थली है। यही वजह है कि पूरे प्रदेश में खेजड़ी की कटाई का विरोध हो रहा है। साथ ही महाअभियान की तैयारी चल रही है। आयोजकों का नारा है कि “राज्य सरकार होश में आओ, खेजड़ी बचाकर सोलर लगाओ।”
बहरहाल, अब भाजपा के दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी ने इस मामले में अपनी आवाज़ बुलंद की है। उम्मीद है कि भाटी की इस घोषणा के बाद उनकी ‘भूल’ सुधार होगी। जनाधार वाले राजनेता भाटी के आव्हान पर हजारों लोग खड़े हो सकते हैं। जाहिर है कि जनता की आवाज बनने से ‘खेजड़ी बचाओ’ आंदोलन को आवाज मिलेगी। देवी सिंह भाटी भाजपा के बड़े और दबंग नेता है वे सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि यथार्थ को दिखा रहे हैं। खेजड़ी कटाई को लेकर एक महाभियान के उपजते हालात से सरकार को रू-ब-रू करवा रहे हैं। सोलर प्लांट की जरुरत और सभी पक्षों को इन आन्दोलनकारियों के सामने रखकर स्थिति स्पष्ट करने की जरुरत है। अन्यथा विवाद बढ़ सकता है और काम में भी बाधा आ सकती है।
…लेकिन सवाल उठता है कि हर बार देवीसिंह भाटी ही क्यों? क्या दूसरे जनप्रतिनिधियों को खेजड़ी पर चलती आरी और कुल्हाड़ी दिखाई नहीं देती? बाकी नेता सरकार और सोलर कंपनियों के सामने जमीनी हक़ीक़त क्यों नहीं ला रहे हैं?
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, सांसद हो या विधायक.. क्या किसी को राजस्थान के राज्य वृक्ष की परवाह नहीं है? ज़िला कलेक्टर, संभागीय आयुक्त को यह प्रकरण तथ्यों के साथ केंद्र और राज्य सरकार तक पहुंचाना चाहिए था। उनका रवैया भी कभी भी सजग जन सेवक का नहीं रहा। इन सबको आत्म चिंतन करना चाहिये। जहां कोई भी जनप्रतिनिधि खेजड़ी बचाने के लिये आगे नहीं आ रहा, अगर वहां देवी सिंह भाटी खेजड़ी बचाने में सफल होते हैं तो उनका जीवन सफल माना जाएगा। जो आंदोलन की आवाज़ है, वो नकारखाने में तूती ही साबित हुईं है। संघर्ष समिति के मोखराम धारणियां का कहना है कि “खेजड़ी कटाई के मुद्दे पर वे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राजस्थान सरकार के मंत्री सुमित गोदारा, डॉ. विश्वनाथ से भी मिले लेकिन कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। पुलिस और प्रशासन तो सुनने को तैयार नहीं है।”
यह मुद्दा दुश्चक्र में उलझा हुआ है। इसमें सोलर कंपनियों के दलाल, भू-माफिया और बिचौलिए अप्रत्यक्ष में मुनाफे का खेल खेल रहे हैं, जिसे सरकार और प्रशासन धरातल पर नहीं देख पा रही है। खैर..बीकानेर संभाग मुख्यालय, सूडसर,खेजड़ला में इसी मुद्दे पर धरना चल रहा है। इसके अलावा नागौर और फलोदी से बिश्नोई समाज के लोग और पर्यावरण संरक्षण में विश्वास रखने वाले लोगों का जमावड़ा है। बाक़ी नेताओं को भी देवी सिंह भाटी के साथ आगे आना चाहिए। क्या उनमें हिम्मत है ? मुद्दा सही है तो सांसद ,विधायक भी सही को सही तो कहें। आख़िर जनता ने उन्हें अपने जनप्रतिनिधि के तौर पर चुना है। क्या ये लोग बेवजह धरना दे रहे हैं या इनके मुद्दे किसी झूठे या राजनीति से प्रेरित हैं। अगर सरकार खेजड़ी काटने की बात को किन्हीं कारणों से सही मानती है तो इनको लॉजिक समझाकर धरना खत्म करवा दें। सौर ऊर्जा कंपनियों की ओर से खेजड़ी और अन्य पेड़ों की कटाई ग़लत है तो नोटिस लें। ऐसे जनता की आवाज़ अनसुना कर देना बिल्कुल ग़लत है। खेजड़ी की कटाई का जो आरोप जिम्मेदार लोग लगा रहे हैं या तो सरकार इसे ग़लत साबित करें। सोलर प्लांट लग रहे हैं। हजारों बीघा जमीन वृक्षहीन कर दी गई है। पेड़ काटने और प्लांट लगाने का काम जारी है। इस पीड़ा को सुनने और समझने को पटवारी, थानेदार, तहसीलदार और सरकार भी तैयार नहीं है। कानूनी कार्यवाही और रोकथाम तो दूर इस संबंध में प्रकृति प्रेमियों की तमाम लिखित शिकायतों का संतोषजनक जबाव तक नहीं दिया जा रहा है। सुनिये सरकार ! जिम्मेदारी प्रशासन और सरकार की ही है। भाटी जी ! आप आवाज दीजिए, जनता आपके साथ है।