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मेरी बात : अर्जुन राम जी ! क्षमा वाणीस्य भूषणं

गुरुवार को बीकानेर की एसकेआरएयू यूनिवर्सिटी में क़ानून मंत्री ने प्रेस के साथ जो बर्ताव किया, उस पर मैंने ‘मेरी बात’ के जरिये देशभर के पत्रकारों से सुझाव मांगे थे। ये आलेख देश के अमूमन हर राज्य के पत्रकार (कुल 468, जिसमें रवीश से लेकर प्रसून तक) के व्हाट्स अप पर पहुंचा। इस वाकये पर पत्रकारों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आईं। किसी ने इसे ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ पर हमला बताया तो किसी ने मंत्री के बर्ताव की निंदा की। किसी ने ‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ से शिकायत करने को कहा तो किसी ने पूरे प्रकरण का ब्योरा मांगा। किसी ने कहा कि “हम बीकानेर में रिपोर्टर को भेजकर किशमीदेसर की इस स्थानीय ख़बर को राष्ट्रीय बना देते हैं” तो किसी ने कुछ और कहा। यहां तक कि कल जब मैंने बीकानेर में भी ‘एडिटर्स एसोसियेशन ऑफ न्यूज़ पोर्टल्स’ के मंच से यह बात पत्रकारों के साथ साझा कि तो सबने एकजुट होकर कहा कि- “हम प्रेस के अधिकारों की रक्षा के लिये एकजुट हैं।” कुल मिलाकर बात का लब्बोलुआब यह रहा कि पत्रकार आज भी अपने अधिकारों के लिये सजग है, किसी भी व्यक्ति द्वारा पत्रकारिता के अधिकारों का हनन स्वीकार नहीं किया जाएगा। हमें इस बात की ख़ुशी है कि पत्रकारों ने न सिर्फ उम्मीदों से बढ़-चढ़कर सुझाव दिया, बल्कि हरसंभव सहयोग की भी बात कही।

बहरहाल, सबके सुझावों और सहयोग के लिये शुक्रिया लेकिन सवाल ये कि अब आगे क्या? यही सवाल जब मैंने एक संत से पूछा तो उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि- “अर्जुन राम जी ऐसा व्यवहार करते नहीं है, इसलिये उनसे ऐसी उम्मीद नहीं है। अभी पर्युषण पर्व चल रहा है, अगर उनसे कोई ग़लती हुई है तो उसे सुधारना चाहिये। इससे उनकी और उनके पद की गरिमा ही बढ़ेगी। क्षमा वीरस्य भूषणं, क्षमा वाणीस्य भूषणं।”

बात में बहुत गहराई थी। हम उनकी बात का समर्थन करते हैं। हम बिना किसी विकारों के पत्रकारिता के धर्म का पालन करेंगे। सत्य को सत्य कहते हुए पत्रकारिता धर्म निभाएंगे। वैसे, उपरोक्त बातचीत में 3 शब्दों का प्रयोग हुआ- ‘पर्युषण, ग़लती और क्षमा।’ इन तीनों शब्दों की कितनी अहमियत है, ये बीकानेर की सियासत में हुए कुछ वाकयों से समझ सकते हैं।

पहला वाकया- अर्जुनराम मेघवाल और देवीसिंह भाटी के इंटरव्यूज

मुझे याद है कि कुछ बरस पहले मैंने मेरे घर पर वर्तमान केंद्रीय क़ानून व न्याय मंत्री का इंटरव्यू लिया था। देवीसिंह भाटी से नाराज़गी से जुड़े एक सवाल के जवाब में मेघवाल ने इन्हीं ‘तीन शब्दों’ का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि “सुमित ! मैं बेसिकली एक स्प्रिच्युअल आदमी हूं। कोई ग़लती मुझसे होती है तो मैं शाम को ज़रूर इंट्रोस्पेक्ट कर लेता हूं। इंट्रोस्पेक्ट करने वाले आदमी से ग़लतियां कम होती है। मानव स्वभाव है, ग़लती हो सकती है। कोई ग़लती हुई है तो मैं क्षमा मांगने के लिये भी तैयार हूं।….. मैं उस क्षेत्र से बिलॉन्ग करता हूं, जहां जैन समाज का बड़ा प्रभाव है, जो एक दिन क्षमा याचना भी करते हैं। (यहां CLICK करके 18:10 पर ये देख सकते हैं।)

फिर यही सवाल जब हमने (अर्जुन राम के संदर्भ में) इस बार देवी सिंह भाटी से पूछा तो उन्होंने भी इन तीन शब्दों के इर्द-गिर्द बात करते हुए कहा था कि “मतभेद से किसी को कोई लाभ नहीं होता।…. हमने (मेघवाल के साथ) भी खम्मत खामणा कर लिया। अब मन में न तो कोई दुर्भावना है, न ही कोई ईर्ष्या और द्वेष। और जैसा भी है, हम मिल-जुलकर आगे बढेंगे।” (यहां CLICK करके 13:40 पर देख सकते हैं)

इसके बाद दोनों नेताओं के हाथ-मिलाकर हंसते हुए की तसवीरें पूरे देश ने देखी। जैन समाज के ‘खम्मत खामणा’ शब्द ने देश की सबसे बड़ी पार्टी में ख़ुशी की लहर ला दी। मेघवाल के समर्थक ख़ुश हुए, भाटी के समर्थक भी ख़ुश हुए। वे भी ख़ुश हुए, जो ‘मौक़ों’ को देखकर कभी भाटी के संग हुए तो कभी मेघवाल के संग हुए।

दूसरा वाकया- भाटी द्वारा पत्रकार पर नाराज़ होना।

ये घटना पिछले साल के जून महीने की है। तब पूर्व सिंचाई मंत्री देवीसिंह भाटी ‘कोलायत में सड़कों की ख़राब क्वालिटी’ के मुद्दे पर पीडबल्यूडी का घेराव करते हैं। इस पर एक पत्रकार उनसे इस घेराव को ‘चुनावी शक्ति प्रदर्शन’ से जोड़ते हुए सवाल पूछते हैं। इस सवाल पर भाटी को ग़ुस्सा आ जाता है और वे पत्रकार पर भड़क उठते हैं। तब भी ‘पत्रकारिता से अधिकारों’ से जुड़े इस वाकये पर ख़बर अपडेट (संभवत: इकलौते मीडिया हाउस) ने नीचे लिखे लेख के जरिये विरोध जताया था। हम इस घटना से जुड़े पत्रकारों (श्याम मारू और धीरज जोशी) के साथ खड़े थे। …लेकिन, यहां सुकून देने वाली बात यह थी कि इस घटना के 6-7 रोज़ बाद ख़ुद देवीसिंह भाटी ने ख़बर अपडेट के ऑफ़िस में चर्चा के दौरान इस बात पर खेद जताया था, बोले- “ध्यान रखेंगे कि आगे से ऐसा न हो। अरे ! हमें भी तो कोई सही-ग़लत बताने वाला हो।”

देवीसिंह भाटी का इतनाभर कहना ये बताता है कि उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ। यही होता है- कम बोलकर भी बहुत ज्यादा कहना। भाटी ने दोनों ही प्रकरणों में जैन समाज में अति महत्वपूर्ण और ऊपर उल्लेखित तीनों शब्दों का मन से मान रखा। वे यह कहते भी सुनाई दिये कि “मतभेद से किसी को कोई लाभ नहीं होता।…. हमने भी खम्मत खामणा कर लिया। अब मन में न तो कोई दुर्भावना है, न ही कोई ईर्ष्या और द्वेष। और जैसा भी है, हम मिल-जुलकर आगे बढेंगे।” और यह कहते भी सुनाई दिये कि “ध्यान रखेंगे कि आगे से ऐसा न हो। अरे ! हमें भी तो कोई सही-ग़लत बताने वाला हो।”

इसी तरह की घटना बीते गुरुवार को बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में घटित हुई। तब यूनिवर्सिटी में ‘प्राकृतिक खेती’ पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम से पहले क़ानून व न्याय मंत्री ख़बर अपडेट में छपे एक आलेख (यहां CLICK करके पढ़ें- जब दीया तले अंधेरा) को लेकर सार्वजनिक तौर पर नाराज़ हो गये। ये सब केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, एसकेआरएयू के कुलपति अरुण कुमार, महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के कुलपति मनोज दीक्षित, राजुवास के पूर्व कुलपति ए. के. गहलोत, डीन-डायेक्टर और प्रेस के कुछ साथियों के सामने हुआ। केंद्रीय मंत्री तो ऐसा करके चलते बने लेकिन पीछे छोड़ गये ‘प्रेस की अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को लेकर कई सारे सवाल। जिन पर देशभर में चर्चाएं हुईं।

इस तरह ये दो किस्म के एक जैसे वाकये बीकानेर के 2 बड़े नेताओं से जुड़े हैं। देवीसिंह भाटी 7 बार विधायक और सिंचाई मंत्री रह चुके हैं तो अर्जुनराम मेघवाल 4 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री। भाटी अपनी बॉल्डनेस और बिंदासपन के लिये जाने जाते हैं तो मेघवाल ‘मधुर व्यवहार’ और ‘संजीदगी’ के लिये। दोनों वाकयों में अलग-अलग तरह से ‘पर्युषण, ग़लती और क्षमा’ का अर्थ सामने आया। अब अर्जुन राम मेघवाल की बारी है। देखना है कि क्या अर्जुन राम मेघवाल वाकई जैसा बोलते हैं, वैसा करते हैं या फिर इन शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीति करने के लिये करते हैं।

तब मेघवाल ने उस इंटरव्यू में कहा था कि “मैं बेसिकली एक स्प्रिच्युअल आदमी हूं। कोई ग़लती मुझसे होती है तो मैं शाम को ज़रूर इंट्रोस्पेक्ट कर लेता हूं। इंट्रोस्पेक्ट करने वाले आदमी से ग़लतियां कम होती है। मानव स्वभाव है, ग़लती हो सकती है। कोई ग़लती हुई है तो मैं क्षमा मांगने के लिये भी तैयार हूं।….. मैं उस क्षेत्र से बिलॉन्ग करता हूं, जहां जैन समाज का बड़ा प्रभाव है, जो एक दिन क्षमा याचना भी करते हैं।”

मंत्री जी ! आप ‘आध्यात्मिक आदमी’ हैं, अभी रामसा पीर के मेळे वाला भाद्रपद का ‘आध्यात्मिक महीना’ भी चल रहा है। जिस ‘जैन समाज’ का आपने जिक्र किया, उनका ‘पर्युषण महापर्व’ भी चल रहा है। किसी भावावेश आपसे ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को लेकर कोई ग़लती भी हुई है। आप ‘इंट्रोस्पेक्ट’ भी करते हैं। फिर क्यों न, आप जैसा बोले, वैसा कर जायें? क्यों न अपनी ग़लती के लिये मीडिया से ‘खम्मत खामणा’ कर लें? क्यों ना विकारों का विसर्जन कर लिया जाए? बिना ‘साबुन और पानी’ के धो दिया जाए? क्यों न भाटी जी की तरह बोल दें कि “खम्मत खामणा कर लिया। अब मन में न तो कोई दुर्भावना है, न ही कोई ईर्ष्या और द्वेष।”

संतजन सही तो कहते होंगे न- “क्षमा वाणीस्य भूषणं।”

1 COMMENTS

  1. शानदार लेख, आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करता हुआ सटीकता के साथ पिरोए हुए शब्द। माननीय सांसद महोदय को संयम बरतने एवम सार्वजनिक रूप से अथवा निजी रूप से भी अपने कर्म एवम आचरण से क्षमाशील होना चाहिए।

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