स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से ‘भारत 2047’ का विजन रखा। उन्होंने 140 करोड़ देशवासियों को विकास के इस विजन के लिये एकजुट होने का संदेश दिया। वे देश को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने, राजनीति को सेवा में बदलने और राष्ट्रीय जीवन की विसंगतियों को मिटाने का संकल्प भी जताते दिखे लेकिन.. उनके भारत 2047 के ब्लू प्रिंट से प्रेस ‘गायब’ ही रही। क्या पीएम साहब को प्रेस ज़रूरी नहीं लगती? क्यों उन्होंने विकास के विजन में सहयोग के लिये प्रेस को योग्य ही नहीं माना? ये गहरे सवाल हैं, जिनके उत्तर ढूंढना बेजा ज़रुरी है।
मौजूदा दौर में मीडिया का जो हस्र हो रहा है, वो किसी से छिपा नहीं है। इसके लिये जितने पत्रकार जिम्मेदार हैं, उतनी ही जिम्मेदार सरकार भी है। मोदी सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं कि विकास के नए विजन वाली इस सरकार ने मीडिया को हाशिए पर लगा दिया है। केंद्र और राज्यों में भाजपा की सरकारों ने निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता को किसी भी स्तर पर संरक्षण नहीं दिया है। यही वजह है कि आज सरकारों के साथ पत्रकारिता भी विसंगतियों और आलोचनाओं से घिरी हुई है। आज अधिकतर मीडिया घरानों ने एथिक्स को छोड़कर इसे बिजनेस बना लिया है। कई पत्रकार साफतौर पर सत्ता के ‘दलाल’ कहे जाने लगे हैं। इंडियन मीडिया के लिये इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या ही होगा भला? सत्ता की खिलाफत करने वालों को तो सीधे क्रेश किया जाने लगा है। ऐसे में इतनी कमज़ोर मीडिया से कोई क्या ही उम्मीद रखे? विकास का विजन तो बहुत दूर की बात है। शायद इसीलिये पीएम मोदी ने भी इसे ‘भारत 2047’ के विजन में शामिल नहीं किया होगा।
..लेकिन सवाल उठता है कि मीडिया क्या कर सकती है? इसका जवाब पाने के लिये हमें इतिहास टटोलने की जरुरत है। जिस ‘स्वतंत्रता दिवस’ के मौक़े पर मोदी अपना विजन साझा कर रहे थे, उस ‘स्वतंत्रता दिवस’ को लाने में मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। ये मीडिया ही थी, जिसने देश में आए किसी भी संकट में अपनी भूमिका निभाई थी। अब, जब मीडिया देश को आज़ाद कराने में अपनी भूमिका निभा सकती है, तो फिर देश के मौजूदा हालात तो बदल ही सकती है। बस ! जरुरत है- निष्पक्ष, सकारात्मक पत्रकारिता की। मोदी सरकार से उम्मीद यही कि वे निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता को संरक्षण दे।
अगर भारत 2047 के विजन को कामयाब करना है तो निष्पक्ष और सकारात्मक मीडिया को संरक्षण देना बहुत ज़रुरी है। अगर पूरे देश से एक लाख स्किल्ड युवा राष्ट्रप्रेम की भावना से सकारात्मक पत्रकारिता की तरफ क़दम बढ़ाने लगे तो देश की तसवीर और तदबीर दोनों बदल सकती हैं। जब पीएम मोदी राजनीतिक सुधार के लिए एक लाख युवाओं को राजनीति में आने का आह्वान कर सकते हैं तो फिर उन्हें एक लाख युवाओं को पत्रकारिता में आने का आह्वान करना चाहिये। मोदी सरकार में निष्पक्ष आलोचना बर्दाश्त करने का साहस नज़र आता है, इसलिये उनसे कहा जा रहा है और ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है।
खैर, देश की जनता को अपने प्रधानमंत्री पर भरोसा है। मोदी का जीवन राष्ट्र को समर्पित है, यह बात देश का हर नागरिक महसूस करता है। उन्हें प्रेस को राष्ट्रीय लोकतंत्र में हाशिए पर समझने की भूल कतई नहीं करनी चाहिये। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे निष्पक्ष और सकारात्मक पत्रकारिता को संरक्षण दें। इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो सकेंगी।