भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं। बस ! औपचारिक घोषणा ही नहीं हुई है। दोनों तरफ से हमलों का दौर जारी है। ऐसे हालात को देखते हुए भारत के कई शहरों में बीती रात ब्लैक आउट किया गया। राजस्थान के सीमावर्ती जिलों- जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, श्रीगंगानगर और बीकानेर को अधिक सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर पर तो पाक ने हमले की कोशिश भी की है। राजस्थान हाई अलर्ट मोड पर है। लेकिन..यहां कहने में गुरेज नहीं कि बीकानेर जिला प्रशासन की तैयारियां नाकाफी हैं। इसे 7 मई की मॉक ड्रिल और 8 मई के ब्लैक आउट से बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। 7 मई को मॉक ड्रिल के दौरान न तो कई जगह सायरन बजे और न ही 8 मई के ब्लैकआउट के दौरान पूरी तरह से लाइटें बंद हुईं। ऐसा इसलिये हुआ.. क्योंकि बीकानेर प्रशासन ने जनता को जागरुक ही नहीं किया।
ख़बर अपडेट ने 9 दिन पहले यानी 1 मई को ही ‘मेरी बात’ में (यहां CLICK करके पढ़ें) नागरिक सुरक्षा के बिंदु समझाने की बात कही थी। बावजूद इसके, न तो कोई एसओपी जारी की गई और न ही नागरिकों को जागरुक किया। नतीजतन, बीती रात ब्लैक आउट के दौरान कई घरों की लाइटें नहीं बुझीं तो कई जगह सड़कों पर गाड़ियां सरपट दौड़ती रहीं। मॉक ड्रिल के दौरान तो कई जगह सायरन की आवाज़ ही सुनाई नहीं दी, रोड लाइट्स तक बंद नहीं की गईं। ऐसे में नागरिकों ने खुद ही सोशल मीडिया से जानकारी निकालकर सिविल डिफेंस के नियमों का पालन किया।
आपको बता दें कि देश में पिछली बार साल 1971 में मॉक ड्रिल हुई थी। इस बात को आधी शताब्दी बीत चुकी है। इसके 50 साल बाद 7 मई 2025 को फिर से मॉक ड्रिल हुई। और इसके अगले ही दिन सीधे ब्लैक आउट। आप ही बताइये, ऐसे में नागरिकों को क्या मालूम कि युद्ध जैसे हालातों में कैसे बर्ताव करना चाहिये? उन्हें यह समझाने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। लेकिन प्रशासन ने यह काम ढंग से नहीं किया। युद्ध जैसे संवेदनशील हालात में ऐसी लापरवाही असंवेदनशील है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक- “ख़ुद पुलिस-प्रशासन और खुफिया तंत्र ने.. मॉक ड्रिल और ब्लैक आउट की समीक्षा की है। जिसमें कई सारी खामियों को चिन्हित किया गया है। मसलन- शहर में लगे 10 सायरन में से 3 तो बजे ही नहीं। बाकी 7 की भी आवाज़ इतनी धीमी है कि 500 मीटर से आगे सुनाई नहीं देती।”
बहरहाल, यह समय लापरवाहियों का नहीं, बल्कि लापरवाहियों के ऐसे ‘युद्ध’ को फतेह करके असली युद्ध फतेह करने का है। यह चेतने और चेताने का समय है। जिला प्रशासन और जिले के हर नागरिक को अपनी-अपनी तरह से तैयारियां करनी चाहिये। प्रशासन द्वारा नागरिकों को सिविल डिफेंस के कायदे समझाने चाहिये, सोशल मीडिया से वीडियो जारी करने चाहिए, एसओपी जारी करनी चाहिये। सख्ती से उनकी पालना करवानी चाहिये। वहीं, नागरिकों को जिला प्रशासन और सरकारी निर्देशों की पालना करनी चाहिये। अगर नागरिक अनुशासनपूर्वक इन निर्देशों की पालना भी कर लें, तो यह भी युद्ध जीतने जैसा ही होगा। यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिये कि किसी भी स्तर पर.. किसी की भी एक छोटी सी ग़लती… बड़े स्तर पर सबको भारी पड़ सकती है। प्रशासन और हम सब नागरिकों को लापरवाहियों के ऐसे ‘युद्ध’ जीतने होंगे, तभी हम दूसरे युद्ध सही मायनों में जीत पायेंगे।